Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः १प०ः आत्मधर्मः ११प
व्यवहारमूढ जीवोनो अभिप्राय
दिगंबर अने श्वेतांबर वच्चेनो मोटो सिद्धांत भेद
*
आत्माना भूतार्थ स्वभावना आश्रये ज
मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे, तेने बदले ‘मोक्षमार्गमां
पहेलो व्यवहारनय परिणमे अने पछी निश्चय’–एम
जेनो अभिप्राय छे ते व्यवहारमूढ छे, तेने आचार्यदेव
समजावे छे के अरे भाई! तारो व्यवहार तो अनादिरूढ
छे, आत्माना निश्चयस्वभावना भान वगर आवो शुभराग तो तें
अनादिकाळथी कर्यो छे,–तेमां तें नवुं शुं कर्युं? अभव्यजीव पण एवो
व्यवहार तो करे छे, तो तेनामां अने तारा अभिप्रायमां फेर शुं पडयो?
‘पहेलो व्यवहार अने पछी निश्चय’ एम माननारना अभिप्रायमां
अने अनादिना मिथ्याद्रष्टि जीवना अभिप्रायमां कांई फेर नथी, बंने
व्यवहारमूढ छे.–आ संबंधमां दिगंबर मत अने श्वेतांबर मत वच्चे
मोटो द्रष्टिभेद छे,–तेनुं पू. गुरुदेवश्रीए आ प्रवचनमां खास
स्पष्टीकरण कर्युं छे. दरेक जिज्ञासु जीवोए आ विषय बराबर समजवो
जरूरी छे.
(श्री समयसार गाथा ४१३ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन)
*
त्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे, तेना धु्रवस्वभावमां श्रद्धा–ज्ञान ने एकाग्रता ते ज मोक्षमार्ग छे, तेने बदले
शुद्धआत्माना भान वगर एकला व्यवहार रत्नत्रयना शुभरागने ज जे मोक्षमार्ग माने छे तेने आचार्यदेव
व्यवहारमूढ कहे छे. जेवो व्यवहार ते करे छे तेवो व्यवहार तो अनादिथी जीवे कर्यो छे ने अभव्य जीव पण करे
छे, माटे जेओ व्यवहारनो आश्रय करीने तेने मोक्षमार्ग माने छे ते जीवो अनादिना रूढ व्यवहारमां ज मूढ छे
अने यथार्थ विवेकवाळा निश्चयमां तेओ अनारूढ छे.
दिगंबर संतो कहे छे केः निश्चयस्वभावना आश्रये ज मोक्षमार्ग छे; निश्चयपूर्वक ज व्यवहार होय छे,
निश्चय वगर व्यवहार होतो ज नथी, निश्चयनो आश्रय करे ते ज समकिती छे.–आ यथार्थ वस्तुस्थिति छे. परंतु–
व्यवहार मूढ मिथ्याद्रष्टि जीवो तेनी सामे विरोध करतां कहे छे केः मोक्षमार्गमां पहेलो व्यवहार परिणमे
छे ने पछी निश्चय छे एटले व्यवहारी ते समकिती छे.–पण एनी वात महा विपरीत छे.
श्रावकना के मुनिना व्यवहार व्रतादिना शुभरागने ज जेओ मोक्षनुं कारण माने छे अने आत्माना
परमार्थस्वभावने जाणता नथी तेओ अनादिकाळथी चाल्या आवता व्यवहारमां ज मूढ छे ने प्रौढ विवेकवाळा
निश्चय पर तेओ अनारूढ छे, परमार्थसत्य एवा शुद्धआत्माने तेओ देखता नथी.
पंचमहाव्रत, अठ्ठावीस मूळगुण, देव–गुरु–शास्त्रनो विनय वगेरेना शुभ रागने अंगीकार करीने जे
एम माने छे के ‘आ ज मोक्षनुं कारण छे, आ व्यवहार करतां