
प्रगटयो त्यारे रागमां आरोप करीने तेने व्यवहार कहेवाय छे. निश्चय प्रगटया वगर एकला रागने
व्यवहार कई रीते कहेवो? व्यवहारने व्यवहार कहेवडावनार निश्चय जाग्या विना व्यवहारने ‘पहेलो’ केम
कहेवो? केम के एवो व्यवहार तो अनादिथी करी ज रह्यो छे तेथी ते तो अनादिनो रूढ छे. शुं अनादिकाळमां
रागनी मंदता नथी करी? अनंतवार करी छे. छतां मोक्षमार्गमां तेने जे पहेलां माने छे ते अनादिथी जे
व्यवहार कर्यो छे तेमां ज मूढ छे.
थती नथी. आत्माए अनादिकाळथी संसारमां रखडतां देव–गुरु–शास्त्रनी व्यवहारश्रद्धा करी छे, शास्त्रनुं ज्ञान
कर्युं छे ने पंचमहाव्रत पाळ्यां छे, ए प्रमाणे व्यवहार–रत्नत्रय एटले के शुभराग तो अनादिथी कर्यो छे, ते
व्यवहारमां ज जे ममकार करे छे एटले के मोक्षमार्गमां व्यवहार पहेलो परिणमे–एम जे माने छे ते जीव
अनादिना रूढ व्यवहारमां मूढ छे, अनादिनी संसारदशामां तेने कांई फेर पडयो नथी, मोक्षमार्गमां निश्चय शुं
अने व्यवहार शुं–ते एकेयनुं तेने भान नथी. रागने व्यवहार कहेनारो कोण? निश्चयनुं भान करीने जे जाग्यो
ते शुभरागने व्यवहार तरीके जाणे छे. निश्चय विनानो एकलो व्यवहार तो आंधळो छे.
आचार्यदेवे महान सिद्धांत मूकी दीधो छे. परमार्थस्वरूप आत्माना श्रद्धा–ज्ञान तो करतो नथी ने कषायनी
मंदतामां ज लाग्यो रहीने तेनाथी परमार्थ मोक्षमार्ग प्रगटी जशे–एम जे जीव माने छे ते जीव अनादिरूढ थई
गयेला व्यवहारमां विमूढ–मिथ्याद्रष्टि छे. पहेलो व्यवहार परिणमे एम मानीने जेओ व्यवहारना आश्रयमां ज
लाग्या रहे छे. व्यवहारनो आश्रय छोडीने भूतार्थस्वभावनो आश्रय कर्या वगर कदी पण सम्यग्दर्शन के
मोक्षमार्ग थाय नहि ने मिथ्यात्व टळे नहि.
ज ‘सांभळ्युं’ कहेवाय छे. जेने चैतन्यनी रुचि नथी ते जीवे आत्मानी वात अनादिथी सांभळी ज नथी. आगळ
चोथी गाथामां ज ए वात करी हती के शुद्धआत्मानी वात जीवे कदी सांभळी ज नथी. शब्दो तो काने पडया छतां
कहे छे के ‘सांभळ्युं ज नथी’ केम के अंदरमां ते प्रकारनी रुचि प्रगट न करी, एटले निश्चय विना व्यवहार कोनो
कहेवो? उपादान जाग्या विना श्रवणने निमित्त कोनुं कहेवुं?
शुभ–अशुभवृत्ति आवे ते मोक्षनुं कारण नथी. शुद्धोपयोगने ज मोक्षनुं कारण कह्युं छे. त्यां वच्चे मुनिने शुभराग
केवो होय तेनी ओळखाण करावी, पण ते शुभने कोई मोक्षनुं कारण मानी ल्ये तो कहे छे के शुभ तो मोक्षनुं
कारण नथी, मोक्ष तो शुद्धोपयोगथी ज थाय छे.
तो व्यवहारनुं ज्ञान थाय. पण चैतन्यवस्तुने पकडवामां