
कोई रागनुं–व्यवहारनुं अवलंबन छे ज नहि; विकल्पातीत वस्तुने पकडवामां बीजुं साधन छे ज नहि.
‘ज्ञायक’ ने पकडमां लीधो त्यारे रागनो जाणनारो जाग्यो अने त्यारे रागने व्यवहार कह्यो. आ चीज बहारना
क्षयोपशमनी के शास्त्रोनी पंडिताईनी नथी, आ तो अंतरनी द्रष्टिनी चीज छे. जे मोक्षमार्गमां पहेला व्यवहारने
माने छे ते जीव जैनमार्गने जाणतो नथी पण अनादिना व्यवहारमां मूढ छे.
भाषाना आधारे धर्म छे? ‘भाई! तुं सांभळ’ एम कह्युं त्यां कथनमां व्यवहार तो आव्यो, पण तेथी कांई
व्यवहार माने अथवा व्यवहारना आश्रयथी मोक्षमार्ग थवानुं माने तो
ते मिथ्याद्रष्टि छे–एम कुंदकुंदाचार्य वगेरे दिगंबर संतोए दांडी पीटीने
स्पष्ट जाहेर कर्युं छे. भगवान! शांत था, शांत था! वादविवादने छोडीने
वस्तुस्थिति समजवानो प्रयत्न कर. शुभरागपरिणति तो अनादिथी
चाली आवेली छे. तेने व्यवहार केम कहेवाय? माटे ते अनादिरूढ
व्यवहारनो आग्रह छोड, ने ज्ञायकतत्त्वने द्रष्टिमां हुं ज्ञायक छुं एम
भूतार्थ स्वभावने द्रष्टिमां लीधो त्यारे निश्चय प्रगटयो ने त्यारे ज
रागने उपचारथी व्यवहार कहेवायो, माटे मोक्षमार्गमां निश्चयनी ज
वगर व्यवहार कोनो? उपादान वगर निमित्त कोनुं?
शुद्ध आत्मा छे तेने ते जाणतो नथी. पंचमहाव्रत वगेरे शुभ विकल्पोने मोक्षमार्ग मानीने तेनो ममकार करे
छे ते जीव अनादिना रूढ व्यवहारमां मूढ वर्ते छे, अने आत्माना निश्चय स्वभावमां ते अनारूढ वर्ते छे.
शुभ–अशुभ राग’ अनादिकाळथी करतो आवे छे तेमां ज मोहित थईने मूढपणे वर्ते छे, पण ते शुभाशुभ
लागणी तो क्षणिक छे ने हुं तो ज्ञायकतत्त्व भूतार्थ छुं–एवो प्रौढ विवेक ते अज्ञानी करतो नथी, तेने कदी
धर्म थतो नथी. शुभने व्यवहार ज त्यारे कहेवाय के ज्यारे तेनो निषेध करनारो निश्चय प्रगटे; ए
सिवायना शुभने व्यवहार तरीके पण गणता नथी. जे शुभरागथी पोताने मुनि के श्रावक माने छे ते जीव
अनादिरूढ व्यवहारमां मूढ छे अने प्रौढ विवेकवाळा निश्चय पर ते अनारूढ छे. आचार्यदेवे एकला
व्यवहारने माटे ‘अनादिरूढ’ विशेषण वापर्युं अने निश्चयने माटे ‘प्रौढ विवेकवाळो’ एवुं विशेषण
वापर्युं–एम सामसामा विशेषण वापर्या छे. शुभरागमां मोक्षमार्ग मानीने तेमां वर्ते छे तेने कहे छे के
तारो व्यवहार तो अनादिरूढ छे; राग अने विकल्पथी पार भूतार्थ चैतन्यस्वभावने द्रष्टिमां लेवो ते
प्रौढविवेक छे. एवा प्रौढ विवेक वडे भूतार्थ स्वभावनुं अवलंबन करतो नथी ने अनादिना रागनुं
अवलंबन छोडतो नथी,–शुभराग करतां करतां निश्चय मोक्षमार्ग प्रगटी जशे एम जे माने छे ते जीव
अनादिरूढ व्यवहारमां मूढ छे ने प्रौढ विवेकवाळा निश्चय पर ते अनारूढ छे; जे भावथी अनादिकाळथी
संसारमां रखडी रह्यो छे तेमां ज ते मूढ छे.
तेने धोवाथी धोळो न थाय. तेम संसार काळा कोलसा