Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय वैशाखः २४७९ः १पपः
जेवो छे, शुभराग पण संसार छे, ते रागना अवलंबनथी संसार मटे नहि, पण रागरहित चैतन्य स्वभावना
अवलंबने संसार मटे. संसारमार्ग अने मोक्षमार्ग ए बंने भावोनी जात जुदी छे. अनादिकाळथी जे भावे
संसारमां रखडयो ते भावे मोक्षमार्गनी शरूआत केम थाय? अज्ञानी कहे छे के शुभराग तो व्यवहार तो छे
ने!! पण अरे भाई! शुभरागने व्यवहार कयारे कहेवाय?–के तेनी रुचि छोडीने निश्चय प्रगट करे त्यारे.
चैतन्यज्ञायकतत्त्वनी अस्तिने कबूलीने विकारनी–व्यवहारनी रुचि छोड तो तारा शुभरागने व्यवहार कहेवाय.
जे पहेलो व्यवहार अने पछी निश्चय–एम माने छे तेने तो रागनी–व्यवहारनी रुचि छे, तेना शुभरागने तो
खरेखर व्यवहार पण नथी कहेवातो.
जुओ, आ दिगंबर संतोनी वाणी!! दिगंबर संतोए यथार्थ मोक्षमार्ग टकावी राख्यो छे. निश्चयनय
एवा प्रौढ विवेकवाळो छे के तेना अवलंबने आत्मा अने रागनुं भेदज्ञान थाय छे. व्यवहारना अवलंबने
भेदज्ञान थतुं नथी. जे क्षणे पोते ज्ञायकआत्मानी द्रष्टि करे त्यारे शुभरागने व्यवहार कहेवाय छे. निश्चयनी द्रष्टि
सिवाय बधुं वृथा छे. व्यवहार हो भले, निमित्त हो भले, पण तेना आश्रये आत्मानो धर्म प्रगटे टके के वधे
एम नथी. निश्चय ज्ञायकस्वभावना आश्रये ज धर्म प्रगटे छे–टके छे ने वधे छे.
उपदेशवचनमां पाप भावथी छोडाववा कोईवार एम कहेवाय के शुभराग करशे तो धर्मनां निमित्त तो
ऊभां रहेशे! पण खरेखर उपादानमां धर्म प्रगटया वगर निमित्त कोनुं? अशुभ छोडाववा पूरती ते वात करी
छे, त्यां कांई शुभ करतां करतां धर्म थशे एम कहेवानो आशय नथी, शुभने मोक्षमार्ग कहेवो नथी. जीवोने
विषयकषायना तीव्र पाप भावोथी छोडाववा अर्थे शास्त्रोमां शुभ भाव करवानो पण उपदेश आप्यो छे. परंतु
त्यां शुभ भाव करतां करतां मोक्षमार्ग थई जशे–एवो सिद्धांत स्थापवानो आशय नथी. शुभ रागने पकडीने
तेनी जे होंस अने उत्साह करे छे ते जीवो प्रौढ विवेकवाळा निश्चय पर चडया नथी–एटले के मोक्षमार्गमां
आव्या नथी पण अनादिना व्यवहारमां ज मूढ थईने पडया छे. व्यवहारमां मूढ थईने ऊंधा मार्गे चडया ते
चडया, परंतु अनादिथी ते शुभराग करवा छतां हजी पार न आव्यो. मोक्षमार्गमां वच्चे शुभराग आवे खरो
पण ते रागना अवलंबने मोक्षमार्ग नथी, मोक्षमार्ग तो आत्मा भूतार्थ स्वभावना अवलंबने ज छे. आवा
निश्चय मोक्षमार्गने जेओ जाणता नथी ने रागने मोक्षमार्ग मानीने तेमां ज मूढपणे पडया छे ते जीवो आत्माना
परमार्थ स्वभावमां अनारूढ वर्तता थका शुद्ध आत्माने देखता नथी.
भगवान एटले के महिमावंत एवो तो भूतार्थरूप शुद्ध आत्मा छे, जेओ तेनो महिमा करता नथी अने
अनादिना रागने व्यवहार मानीने तेनो महिमा करे छे तेओ व्यवहारमां मूढ मिथ्याद्रष्टि छे, तेओने मुनिपणुं तो
कयांथी होय?
‘बहु दळ दीसे जीवनां जी व्यवहारे शिवयोग–एटले के व्यवहारना अवलंबनथी घणा जीवो मुक्ति
पाम्या’–आम व्यवहाराभासी अज्ञानी कहे छे. अहीं तो कहे छे के निश्चय पर जे आरूढ छे ते ज मोक्ष पामे
छे. जे जीव निश्चय पर आरूढ नथी ने अनादिना रूढ व्यवहारमां ज मूढ छे तेनी त्रणकाळमां मुक्ति थती
नथी. भूतार्थस्वभावना भान वगर तो बधा एकडा वगरनां मींडां छे. जेओ भगवान चैतन्यस्वरूप शुद्ध
आत्माने जाणीने प्रौढ विवेकवाळा निश्चय पर आरूढ वर्ते छे तेमने ज अल्पकाळे मुक्ति थाय छे, बीजाने कदी
मुक्ति थती नथी.
*
यथार्थ मोक्षमार्ग शुं छे ते अहीं ओळखावे छे. शुद्ध आत्माना आश्रये ज निश्चय मोक्षमार्ग छे; तेने जेओ
जाणता नथी अने एकला व्यवहारनो–शुभरागनो ज आश्रय करीने तेने ज मोक्षमार्ग माने छे तेओ अनादिरूढ
व्यवहारमां ज मूढ छे. अनादिथी निगोदमां रहेलो जीव, अने अनंतवार नवमीगै्रवेयके जनारो व्यवहारना
पक्षवाळो द्रव्यलिंगी साधु–ते बंने जीवो अनादिरूढ व्यवहारमां ज मूढ छे, व्यवहारना पक्षनी अपेक्षाए ते बंने
जीवोमां कांई फेर नथी; केम के परमार्थ आत्मानुं भान बंनेने नथी.
जीवने कर्म वगेरे पर द्रव्यो तरफनुं वलण तो अनादिथी ज छे, परद्रव्य तरफना वलणथी शुभ–
अशुभभावोनो पलटो अनादिकाळथी जीव करतो आवे छे, तेथी ते व्यवहार तो अनादिनो रूढ छे, मोक्षमार्ग तो
आत्माना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय ते ज छे. मूढ पुरुषो व्यवहारमां ज मोहित थईने
बाह्यव्रतादिने अने रागने मोक्षनुं