Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः १प६ः आत्मधर्मः ११प
कारण माने छे, पण जेनाथी भेदज्ञान थाय छे एवा निश्चयने तो तेओ देखता नथी; जे मूळ वस्तुना अवलंबने
मोक्षमार्ग प्रगटे छे ने विकार टळे छे तेने तो तेओ जाणता नथी, ने रागने ज मोक्षमार्ग माने छे. रागना
अवलंबने कदी भेदज्ञान थतुं नथी पण जेमां रागनो अभाव छे एवा प्रौढ विवेकवाळा निश्चयना आश्रये ज
भेदज्ञान थाय छे.
शास्त्रमां कोईवार शुभरागने परंपरा मोक्षनुं कारण कह्युं छे–पण ते कथन कोने लागुं पडे? के जेने
रागरहित ज्ञायक स्वरूपनी द्रष्टि तो वर्तमानमां प्रगटी छे ने रागनी रुचि नथी एवो धर्मी जीव क्रमे क्रमे रागनो
अभाव करीने मुक्ति पामवानो छे माटे त्यां उपचारथी तेना रागने परंपरा कारण कह्युं. स्वभावना अवलंबने
यथार्थ कारण प्रगटयुं त्यारे रागमां परंपरा कारणनो उपचार थयो. पण जेने मोक्षमार्गनी शरूआत ज प्रगटी
नथी ने हजी तो रागनी रुचिमां पडयो छे तेने ‘परंपरा’ शेनी कहेवी? जेने पुण्यनी रुचि छे एवा मिथ्याद्रष्टिने
तो पुण्य परंपरा अनर्थनुं कारण छे–एम कह्युं छे. जीव गमे ते क्षेत्रे हो, गमे ते काळे के गमे ते संयोगे हो पण
भूतार्थस्वरूपनुं अवलंबन ते ज भेदज्ञाननुं कारण छे, त्रणेकाळना कोई पण जीवने भूतार्थस्वरूपना अवलंबने
ज मोक्षमार्ग छे. जेओ निश्चयने जाणता नथी ने व्यवहारनी रुचि करीने तेना उपर जोर आपे छे तेमने कदी
भेदज्ञान के मोक्षमार्ग थतो नथी.
*
सम्यक्त्वसन्मुख
जीवनी पात्रतानुं वर्णन
म्यग्दर्शननी सन्मुख थयेला जीवनी पात्रता केवी होय तेनुं आ वर्णन छे. जे हजी सम्यग्दर्शन पाम्यो
नथी पण सम्यग्दर्शन पामवा माटे तत्त्वनिर्णय वगेरेनो उद्यम करे छे–एवा जीवनी आ वात छे. जेने आत्मानुं
हित करवानी भावना थई छे, सम्यग्दर्शन प्रगट करीने आत्मानुं कल्याण करवानी धगश जागी छे एवा जीवने
प्रथम तो कषायनी मंदता थई छे, तत्त्वनो निर्णय करवा जेटली ज्ञाननी शक्ति ऊघडी छे, निमित्त तरीके साचा
देव–गुरु–शास्त्र मळ्‌या छे अने पोताने तेमनी प्रतीत थई छे, ज्ञानी पासेथी यथार्थ उपदेश मळ्‌यो छे ने पोते
पोताना प्रयोजन माटे मोक्षमार्ग वगेरेनो उपदेश सांभळ्‌यो छे; कया भावो आत्माने हितकारी छे ने कया भावो
अहितकारी छे, साचा देव–गुरु–शास्त्रनुं स्वरूप शुं छे ने कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र केवा छे? जीवादि नवतत्त्वोनुं
स्वरूप शुं छे? द्रव्य–गुण–पर्याय शुं, उपादान–निमित्तनुं स्वरूप शुं, मोक्षमार्गनुं खरुं, स्वरूप शुं–इत्यादि
प्रयोजनभूत बाबतोनो यथार्थ उपदेश गुरुगमे मळ्‌यो छे ने पोते अंतरमां तेनो निर्णय करीने समजवानो
प्रयत्न करे छे. ते समजीने पोते पोतानुं ज प्रयोजन साधवा मागे छे. उपदेशनी धारणा करीने हुं बीजाने
संभळावुं के बीजाने समजावी दउं–एवा आशयथी नथी सांभळतो, पण समजीने पोतानुं कल्याण करवानी ज
भावना छे.
जुओ, आ तो हजी सम्यग्दर्शन पाम्या पहेलांनी पात्रता बतावे छे. जे पोतानुं कल्याण करवा मागे छे
तेने मंदकषाय अने ज्ञाननो उघाड तो होय ज; ए उपरांत, पहेलां तो ज्ञानी पासेथी साचो उपदेश मळवो
जोईए, अज्ञानी–कुगुरुओना उपदेशथी यथार्थ तत्त्वनिर्णय थाय नहि. जेने कुदेव–कुगुरु तो छूटी गया छे,
निमित्त तरीके