
मोक्षमार्ग प्रगटे छे ने विकार टळे छे तेने तो तेओ जाणता नथी, ने रागने ज मोक्षमार्ग माने छे. रागना
अवलंबने कदी भेदज्ञान थतुं नथी पण जेमां रागनो अभाव छे एवा प्रौढ विवेकवाळा निश्चयना आश्रये ज
भेदज्ञान थाय छे.
अभाव करीने मुक्ति पामवानो छे माटे त्यां उपचारथी तेना रागने परंपरा कारण कह्युं. स्वभावना अवलंबने
यथार्थ कारण प्रगटयुं त्यारे रागमां परंपरा कारणनो उपचार थयो. पण जेने मोक्षमार्गनी शरूआत ज प्रगटी
नथी ने हजी तो रागनी रुचिमां पडयो छे तेने ‘परंपरा’ शेनी कहेवी? जेने पुण्यनी रुचि छे एवा मिथ्याद्रष्टिने
तो पुण्य परंपरा अनर्थनुं कारण छे–एम कह्युं छे. जीव गमे ते क्षेत्रे हो, गमे ते काळे के गमे ते संयोगे हो पण
भूतार्थस्वरूपनुं अवलंबन ते ज भेदज्ञाननुं कारण छे, त्रणेकाळना कोई पण जीवने भूतार्थस्वरूपना अवलंबने
ज मोक्षमार्ग छे. जेओ निश्चयने जाणता नथी ने व्यवहारनी रुचि करीने तेना उपर जोर आपे छे तेमने कदी
भेदज्ञान के मोक्षमार्ग थतो नथी.
हित करवानी भावना थई छे, सम्यग्दर्शन प्रगट करीने आत्मानुं कल्याण करवानी धगश जागी छे एवा जीवने
प्रथम तो कषायनी मंदता थई छे, तत्त्वनो निर्णय करवा जेटली ज्ञाननी शक्ति ऊघडी छे, निमित्त तरीके साचा
देव–गुरु–शास्त्र मळ्या छे अने पोताने तेमनी प्रतीत थई छे, ज्ञानी पासेथी यथार्थ उपदेश मळ्यो छे ने पोते
पोताना प्रयोजन माटे मोक्षमार्ग वगेरेनो उपदेश सांभळ्यो छे; कया भावो आत्माने हितकारी छे ने कया भावो
अहितकारी छे, साचा देव–गुरु–शास्त्रनुं स्वरूप शुं छे ने कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र केवा छे? जीवादि नवतत्त्वोनुं
स्वरूप शुं छे? द्रव्य–गुण–पर्याय शुं, उपादान–निमित्तनुं स्वरूप शुं, मोक्षमार्गनुं खरुं, स्वरूप शुं–इत्यादि
प्रयोजनभूत बाबतोनो यथार्थ उपदेश गुरुगमे मळ्यो छे ने पोते अंतरमां तेनो निर्णय करीने समजवानो
प्रयत्न करे छे. ते समजीने पोते पोतानुं ज प्रयोजन साधवा मागे छे. उपदेशनी धारणा करीने हुं बीजाने
संभळावुं के बीजाने समजावी दउं–एवा आशयथी नथी सांभळतो, पण समजीने पोतानुं कल्याण करवानी ज
भावना छे.
जोईए, अज्ञानी–कुगुरुओना उपदेशथी यथार्थ तत्त्वनिर्णय थाय नहि. जेने कुदेव–कुगुरु तो छूटी गया छे,
निमित्त तरीके