Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय वैशाखः २४७९ः १प७ः
साचा देव–गुरु–शास्त्र मळ्‌या छे ने कषायनी मंदतापूर्वक तत्त्वनिर्णयनो उद्यम करे छे–तेवा जीवनी आ वात छे.
जुओ, आमां शुं करवानुं कह्युं?–तत्त्वनिर्णयनो उद्यम करवानुं कह्युं. जेओ कुदेव–कुगुरुने माने, सर्वज्ञने आहार
माने, मुनिओने वस्त्र माने, व्यवहारना अवलंबनथी मोक्षमार्ग थवानुं माने–एवा जीवो तो तीव्र मिथ्याद्रष्टि
छे, तेमने तो सम्यक्त्व थवानी पात्रता नथी, जैनधर्मनुं जे मूळ छे एवा सर्वज्ञने पण जे न ओळखतो होय ते
तो गृहीत मिथ्याद्रष्टि छे, एवा जीवोनी अहीं वात नथी. अहीं तो, जे जीव सर्वज्ञने ओळखीने माने छे, साचा
गुरुने माने छे अने तेमणे कहेलां यथार्थ तत्त्वोनो निर्णय करीने सम्यग्दर्शन प्रगटवा माटेनो उद्यम करे छे–एवा
जीवनी वात छे. जुओ, ते सम्यक्त्व–सन्मुख जीवमां केवी केवी पात्रता होय ते बतावे छेः
(१) प्रथम तो मंदकषाय थयो छे; आत्मानुं हित करवानी जिज्ञासा थई त्यां मंदकषाय थई ज गयो;
तीव्र विषयकषायना भावमां डूबेला जीवने तो आत्माना हितनो विचार ज ऊगतो नथी.
(२) मंदकषायथी ज्ञानावरणादिनो एवो क्षयोपशम थयो छे के तत्त्वनो विचार अने निर्णय करवा
जेटली ज्ञाननी शक्ति प्रगटी छे. जुओ, तत्त्वनिर्णय करवा जेटली बुद्धि तो छे पण जेने आत्मानी दरकार नथी ते
जीव तत्त्वनिर्णयमां पोतानी बुद्धि जोडतो नथी ने बहारना विषय–कषायमां ज बुद्धि लगावे छे.
(३) जे सम्यक्त्व सन्मुख छे ते जीवने मोहनी मंदता थई छे तेथी ते तत्त्वविचारमां उद्यमी थयो छे,
दर्शनमोहनी मंदता थई छे तेमज चारित्रमोहमां पण कषायोनी मंदता थई छे, पोताना भावमां मिथ्यात्वादिनो
रस घणो मंद थई गयो छे अने तत्त्वना निर्णय तरफ झूकाव थयो छे. संसारना कार्योनी लोलूपता घटाडीने
आत्मानो विचार करवामां उद्यमी थयो छे. संसारनां काममांथी नवरो थाय (–तेनो रस घटाडे) त्यारे आत्मानो
विचार करे ने! संसारनी तीव्र लोलूपतामां पडयो होय तेने आत्मानो विचार क्यांथी आवे? जेना हृदयमांथी
संसारनो रस ऊडी गयो छे अने जे आत्माना विचारनो उद्यम करे छे के ‘अरे! मारे तो मारा आत्मानुं सुधारवुं
छे, दुनिया तो एम ने एम चाल्या करशे, दुनियानी दरकार छोडीने मारे तो मारुं हित करवुं छे’– आवा जीवनी
आ वात छे.
(४) ते जीवने बाह्य निमित्त तरीके साचा देव–गुरु–शास्त्रादि मळ्‌या छे; तेने कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनी
मान्यता छूटी थई छे ने सर्वज्ञवीतरागदेवने ज माने छे, अरिहंत भगवाननी वीतरागी प्रतिमा ते पण देव छे.
शास्त्रमां नवदेव पूज्य कह्या छे; पंचपरमेष्ठी, जिनधर्म, जिनवाणी, जिनचैत्य अने जिनबिंब–ए नवेय देव
तरीके पूज्य छे. सर्वज्ञवीतरागदेवने ओळखे तेम ज दिगंबरसंत भावलिंगी मुनि मळे ते गुरु छे तेम ज कोई
ज्ञानी सत्पुरुष निमित्त तरीके मळे ते पण ज्ञानगुरु छे. पात्र जीवने निमित्त तरीके ज्ञानीनो उपदेश ज होय छे.
नरक वगेरेमां मुनि वगेरेनुं सीधुं निमित्त नथी पण पूर्वे ज्ञानीनी देशना मळी छे तेना संस्कार त्यां निमित्त थाय
छे. देव–गुरु वगर एकलुं शास्त्र ते सम्यग्दर्शननुं निमित्त न थाय. माटे कह्युं के सम्यक्त्व सन्मुख जीवने
कुदेवादिनी परंपरा छोडीने साचा देव–गुरु–शास्त्रनी परंपरा मळी छे.
(प) वळी ते जीवने सत्य उपदेशनो लाभ मळ्‌यो छे. आवां निमित्तोनो संयोग मळवो ते तो पूर्वनां
पुण्यनुं फळ छे अने सत्यतत्त्वनो निर्णय करवानो उद्यम ते पोतानो वर्तमान पुरुषार्थ छे. पात्र जीवने निमित्त
केवां होय ते पण ओळखावे छे के निमित्त तरीके सत्य उपदेश मळवो जोईए. यथार्थ मोक्षमार्ग शुं, नवतत्त्वोनुं
स्वरूप शुं, साचा देव–गुरु–शास्त्र केवां होय, स्व–पर, उपादान–निमित्त, निश्चय–व्यवहार, सम्यग्दर्शनादि
हितकारी भावो तथा मिथ्यात्वादिक अहितकारीभावो ए बधानो उपदेश यथार्थ मळ्‌यो, उपदेश मळवो ते तो
पुण्यनुं फळ छे, पण ते उपदेश सांभळीने तत्त्वनो निर्णय करवानी जवाबदारी पोतानी छे, ए वात हवे कहे छे.
(६) ज्ञान पासेथी यथार्थतत्त्वनो उपदेश मळ्‌या पछी पोते सावधान थईने तेनो विचार करे छे; एम ने
एम उपर उपरथी सांभळी लेतो नथी पण बराबर ध्यानपूर्वक सांभळीने सावधानपणे तेनो विचार करे छे.
अने उपदेश सांभळतां बहुमान आवे छे केः अहो! मने आ वातनी तो खबर ज नथी, आवी वात तो में पूर्वे
कदी सांभळी ज नथी. जुओ, आ जिज्ञासु जीवनी लायकात! एने जगतनी दरकार नथी, बीजा घणा जीवोने
समजावी दउं के बीजानुं कल्याण करी दउं–एवा विचारमां ते अटकतो नथी, पण मारा आत्मानुं हित कई रीते
थाय–एनी ज