तीर्थंकरो भविष्यमां थशे; भगवाने कहेलुं वस्तुस्वरूप समजीने जे पोतामां आनंद प्रगट करे तेने भगवान
आनंदनुं निमित्त छे अने निमित्त तरीके भगवान आनंदना दातार छे. पण जे पोते न समजे तेने कांई
भगवान समजावी देता नथी अने तेने माटे भगवान आनंदनुं निमित्त पण नथी. भगवाननो परम आनंद
भगवान पासे रह्यो, आ जीव पोते शुद्धनयनुं अवलंबन लईने स्वभावनो आश्रय करे तो तेने कल्याण अने
आनंदनी प्राप्ति थाय छे. शुद्धनयना आश्रय वगर कदी कल्याण के आनंदनी प्राप्ति थती नथी. त्रणेकाळना
जीवोने माटे साचो आनंद प्राप्त करवानी आ एक ज रीत छे. अरिहंत भगवंतोए आ ज उपायथी पोताना
आत्मामां पूर्ण अतीन्द्रिय आनंद प्रगट कर्यो अने बीजा जीवोने आ ज उपाय उपदेश्यो.
उत्तरः– जुओ भाई! पहेली वात तो ए छे के पोताने पोतानुं जोवानुं छे. समाजनुं गमे ते थाय–तेनी
रोकातो पण हुं दरियामां डूबतो केम बचुं?–ते माटे ज उपाय करे छे, तेम संसारसमुद्रमां रखडतां मांड मांड
मनुष्यभव मल्यो छे त्यारे मारा आत्मानुं हित केम थाय, मारो आत्मा संसार–भ्रमणथी केम छूटे–ए ज जोवानुं
छे, पारकी चिंतामां रोकाय तो आत्महित चूकाई जाय छे. आ वात तो पोते पोतानुं हित करवानी छे. दरेक जीव
स्वतंत्र छे, तेथी समाजना बीजा जीवोनुं हित थाय तो ज पोतानुं हित थई शके एवुं कांई पराधीनपणुं नथी.
माटे हे जीव! तुं तारा हितनो उपाय कर.
जीवोनुं कल्याण थशे. कल्याणनो पंथ बधा जीवोने माटे त्रणकाळे एक ज प्रकारनो छे. त्रणेकाळना सर्वे जीवोने
सत्यथी ज लाभ थाय, असत्यथी कदी कोईने लाभ थाय ज नहि.
भले शुभराग करे पण ते धर्म नथी, तेम ज ते शुभरागना फळमां साची शांति मलती नथी.
जगतमां बहु विरल छे, तो ते समजनारा तो विरल ज होय–एमां शुं आश्चर्य छे! योगसारमां कहे छे के–
विरला ध्यावे तत्त्वने, विरला धारे कोई. ६६.
विरलाः भावयन्ति तत्त्वं विरलानां धारणा भवति।।२७९।।
धारणा तो विरलाने ज थाय छे.
करे छे. ‘अहो! आ तो हुं अनंतकाळथी जे नथी समज्यो एवी मारा स्वभावनी अपूर्व वात छे’– एम
अंतरथी आदर लावीने सांभळनारा जीवो विरला होय छे. मूढ जीवोने व्यवहारनी एटले के रागनी