Atmadharma magazine - Ank 116
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४७९ः १७१ः
* नेमिनाथ प्रभुने केवळज्ञान अने दिव्यध्वनि तरीकेनो उपदेश *
–मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव दरमियान चैत्र सुद नोमना दिवसे उपरनुं प्रवचन चाली रह्युं हतुं त्यां
तो भगवान श्री नेमिनाथप्रभुने केवळज्ञान प्रगटयुं अने अचानक ए केवळज्ञान–कल्याणकनो आश्चर्यकारी
खळभळाट फेलाई गयो. भगवाननुं दिव्य समवसरण रचायुं...ए समवसरणमां बिराजमान भगवाननुं
भक्तिपूर्वक पूजन करीने हजारो भक्तजनो दिव्यध्वनि सांभळवा उत्सुक बन्या. आ प्रसंगे भगवानना
दिव्यध्वनि तरीके अपूर्व प्रवचन करतां पू. गुरुदेवश्रीए कह्युं केः “भगवाननो उपदेश धर्मवृद्धिनुं ज निमित्त
छे....भूतार्थस्वभावना आश्रये ज लाभ थवानुं भगवाने कह्युं छे.....जे जीव शुद्धनयथी भूतार्थस्वभावनो आश्रय
करीने पोताना आत्मामां धर्मनी वृद्धि करे ते ज भगवाननी दिव्यवाणीनो खरो श्रोता छे....”
केवळज्ञान–कल्याणक प्रसंगनुं आ प्रवचन आ अंकमां जुदुं आपवामां आव्युं छे.
*
केवळज्ञाननो स्वीकार करनार जीवने
अनंत भवनी शंका रहेती नथी
[मानस्तंभ–प्रतिष्ठा महोत्सव दरमियान चैत्र सुद एकमना दिवसे बपोरना प्रवचनमांथी (२) ]
* अहो! केवळज्ञान शुं छे तेना महिमानी जगतने खबर
नथी, अने ते केवळज्ञाननी प्रतीत करवामां केवो अपूर्व पुरुषार्थ
आवी जाय छे तेनी पण अज्ञानीने खबर नथी.....जेना ज्ञानमां
केवळज्ञाननो स्वीकार छे तेने अनंतभवनी शंका नथी अने जेने
अनंतभवनी शंका छे तेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार थयो
नथी, जेम केवळी भगवानने भव नथी तेम केवळज्ञाननी प्रतीत
करनारने भवनी शंका रहेती नथी. केवळज्ञाननी प्रतीत अने
अनंत भवनी शंका–ए बंने साथे रही शकता नथी...ज्ञानी
बेधडकपणे कहे छे के भवरहित एवा केवळज्ञाननो जेणे निर्णय
कर्यो तेने अनंत भव होता ज नथी, केवळी भगवाने तेना अनंत
भव देख्या ज नथी. *
श्री सीमंधर भगवान महाविदेहक्षेत्रमां केवळज्ञानसहित अत्यारे बिराजी रह्या छे, त्यां बीजा पण अनेक
केवळी भगवंतो विचरे छे. केवळी भगवाननो आत्मा राग–द्वेषरहित एकलो ज्ञायकबिंब थई गयो छे. आवा
केवळी भगवानने जेणे पोताना ज्ञानमां स्वीकार्या तेने ज्ञायकभाव प्रतीतमां आवी गयो; हवे ‘मारे अनंतभव
हशे’–एवी शंका तेने होय ज नहि केम के ज्ञानस्वभावमां भव नथी. केवळी भगवाननो पोताना ज्ञानमां
स्वीकार करे अने अनंत भवनी शंका पण रहे–एम कदी बने नहि. जेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार छे तेने
अनंत भवनी शंका नथी, अने जेने अनंत भवनी शंका छे तेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार थयो नथी. जेम
केवळज्ञानी भगवानने भव नथी तेम ते केवळज्ञाननी प्रतीत करनारने भवनी शंका रहेती नथी.
अहो! केवळज्ञान शुं छे तेना महिमानी जगतने खबर नथी अने ते केवळज्ञाननी प्रतीत करवामां केवो
अपूर्व पुरुषार्थ आवी जाय छे तेनी पण अज्ञानीने खबर नथी. जैनसंप्रदायमां जन्म्या एटले साधारणपणे तो
‘केवळी भगवान छे’ एम कहे, पण केवळज्ञानी केवा होय ते