खळभळाट फेलाई गयो. भगवाननुं दिव्य समवसरण रचायुं...ए समवसरणमां बिराजमान भगवाननुं
भक्तिपूर्वक पूजन करीने हजारो भक्तजनो दिव्यध्वनि सांभळवा उत्सुक बन्या. आ प्रसंगे भगवानना
दिव्यध्वनि तरीके अपूर्व प्रवचन करतां पू. गुरुदेवश्रीए कह्युं केः “भगवाननो उपदेश धर्मवृद्धिनुं ज निमित्त
छे....भूतार्थस्वभावना आश्रये ज लाभ थवानुं भगवाने कह्युं छे.....जे जीव शुद्धनयथी भूतार्थस्वभावनो आश्रय
करीने पोताना आत्मामां धर्मनी वृद्धि करे ते ज भगवाननी दिव्यवाणीनो खरो श्रोता छे....”
आवी जाय छे तेनी पण अज्ञानीने खबर नथी.....जेना ज्ञानमां
केवळज्ञाननो स्वीकार छे तेने अनंतभवनी शंका नथी अने जेने
अनंतभवनी शंका छे तेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार थयो
नथी, जेम केवळी भगवानने भव नथी तेम केवळज्ञाननी प्रतीत
करनारने भवनी शंका रहेती नथी. केवळज्ञाननी प्रतीत अने
अनंत भवनी शंका–ए बंने साथे रही शकता नथी...ज्ञानी
बेधडकपणे कहे छे के भवरहित एवा केवळज्ञाननो जेणे निर्णय
कर्यो तेने अनंत भव होता ज नथी, केवळी भगवाने तेना अनंत
भव देख्या ज नथी. *
केवळी भगवानने जेणे पोताना ज्ञानमां स्वीकार्या तेने ज्ञायकभाव प्रतीतमां आवी गयो; हवे ‘मारे अनंतभव
हशे’–एवी शंका तेने होय ज नहि केम के ज्ञानस्वभावमां भव नथी. केवळी भगवाननो पोताना ज्ञानमां
स्वीकार करे अने अनंत भवनी शंका पण रहे–एम कदी बने नहि. जेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार छे तेने
अनंत भवनी शंका नथी, अने जेने अनंत भवनी शंका छे तेना ज्ञानमां केवळज्ञाननो स्वीकार थयो नथी. जेम
केवळज्ञानी भगवानने भव नथी तेम ते केवळज्ञाननी प्रतीत करनारने भवनी शंका रहेती नथी.
‘केवळी भगवान छे’ एम कहे, पण केवळज्ञानी केवा होय ते