Atmadharma magazine - Ank 116
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४७९ः १६३ः
साधकना आंगणे मोक्षना मांडवा
अने
सिद्धोनी स्थापना
*
अपूर्व सम्यग्दर्शन थवानी रीत
सिद्धदशाने साधवा नीकळेला साधक जीव
पोताना मोक्षना मांडवे भगवानने
उतारतां कहे छे केः हे सिद्ध भगवान!
मारा आत्मामां बिराजो...हुं मारा
आत्मामां सिद्धपणुं स्थापु
छुं....द्रव्यद्रष्टिथी जेणे पोताना आत्माने
सिद्धसमान प्रतीतिमां लीधो तेणे ज
आत्मामां सिद्धपणुं स्थाप्युं....तेना
आंगणे मोक्षना मांडवा नंखाया....हवे
अल्पकाळमां तेने सिद्धदशा थया विना
रहेशे नहीं.
अहो! सम्यग्दर्शन तो जगतमां अपूर्व–
अचिंत्य–महिमावंत चीज छे; सम्यग्दर्शन थतां
ज आखुं परिणमन फरी जाय छे. जेने
सम्यग्दर्शन थयुं तेना चैतन्य–आंगणे
मुक्तिना मांडवा नंखाया, तेना आत्मामां
सिद्धभगवानना संदेश आवी गया.....एने
अनंत भवमां रखडवानी शंका टळी गई अने
अल्पकाळमां मुक्ति थवानो निःसंदेह विश्वास
प्रगट थयो.–आवुं अपूर्व–परम–अचिंत्य
सम्यग्दर्शन प्रगट करवा माटे शुं उपाय छे ते
आ लेखमां वांचो.
[मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव दरमियान
चैत्र सुद एकमना दिवसे बपोरना प्रवचनमांथीः (१) ]
भगवाननी प्रतिष्ठानो महोत्सव छे. आत्मामां सिद्धभगवानने स्थापीने ज आचार्यदेवे
समयसारनी शरूआत करी छे. जेम दीकराना लग्न वखते जानमां साथे मोटा श्रीमंतोने राखे छे के जेथी कन्याने
परण्या वगर पाछा न आवे. तेम अहीं साधक जीव पोताना मोक्षना मांडवे भगवानने उतारे छे. सिद्धदशाने
साधवा नीकळेला साधक कहे छे के हे सिद्ध भगवान! मारा आत्मामां बिराजो; हुं मारा आत्मामां सिद्धपणुं
स्थापुं छुं; आत्मामां सिद्धपणुं स्थाप्युं हवे मारी सिद्धदशा पाछी न फरे, अल्पकाळमां सिद्धदशा प्रगटये ज छूटको.
जेणे पोताना आत्मामां सिद्धभगवानने स्थाप्या ते जीव व्यवहारना आश्रयथी लाभ न माने पण सिद्ध जेवा
पोताना भूतार्थस्वभावनो आश्रय करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करे. आ रीते सम्यग्दर्शन प्रगट करीने मोक्षना
महोत्सव ऊजववानी आ वात छे. खरेखर द्रव्यद्रष्टि वगर आत्मामां सिद्धपणानी स्थापना थती नथी;
पर्यायद्रष्टिथी जुओ तो तो आत्मामां विकार छे; ते विकारनी द्रष्टि छोडीने, द्रव्य–द्रष्टिथी जेणे पोताना आत्माने
सिद्ध समान प्रतीतमां लीधो तेणे ज आत्मामां सिद्धपणुं स्थाप्युं...तेना आंगणे मोक्षना मांडवा नंखाया....हवे
अल्पकाळमां तेने सिद्धदशा थया विना रहेशे नहीं.