सत्यधर्म * शुद्धनयना आश्रये ज आनंदनी प्राप्ति *
भगवान कोना उपर प्रसन्न थया? * आनंदनी प्राप्ति केम
कल्याणनो पंथ एक ज छे * सत्य तत्त्वनी विरलता *
चैतन्य–महिमाने चूकीने मूढ जीव जडनो ने रागनो स्वामी थाय
कोलाहल छोडीने अभ्यास करे तो अल्पकाळमां स्वरूपनी प्राप्ति
थाय * केवळज्ञान *नेमिनाथ प्रभुने केवळज्ञान अने
दिव्यध्वनि तरीकेनो उपदेश.
भूतार्थने आश्रित जीव सुद्रष्टि निश्चय होय छे.
आश्रये धर्म मानीने अज्ञानी जीवो संसारमां रखडी रह्या छे, पण आत्माना भूतार्थस्वभावनी द्रष्टि
अनंतकाळमां कदी एक सेकंड पण प्रगट करी नथी, अने एवी द्रष्टि कर्या वगर कदी धर्म थतो नथी. अज्ञानी जीवो
व्यवहारना आश्रयथी धर्म थवानुं मानी रह्या छे, परंतु व्यवहारना आश्रयनुं फळ तो संसार छे. परिपूर्ण
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा ते भूतार्थ छे, ते भूतार्थस्वभावनो पक्ष एटले के आश्रय जीवे पूर्वे कदी कर्यो नथी. मोक्ष
तो आत्माना भूतार्थस्वभावना अवलंबने ज थाय छे, तेथी भव्य जीवोना कल्याणने माटे आचार्यदेवे भूतार्थ
स्वभावना अवलंबननो ज उपदेश आप्यो छे अने व्यवहारनुं अवलंबन छोडवानो उपदेश कर्यो छे.