वनवास रह्यो मुखमौन रह्यो द्रढ आसन पद्म लगाय दियो.
वह साधन वार अनंत कियो तदपि कछू हाथ हजू न पर्यो.
अब कयों न विचारत है मनसें कछू ओर रहा उन साधनसें.
साधनने समज्यो नहि अने बहारमां साधन मान्युं. अंतरमां चिदानंदी भगवान आत्मा पोते कोण छे तेना
आत्माना स्वभावमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वगेरेनुं परिपूर्ण सामर्थ्य भर्युं छे तेमांथी ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
प्रगटे छे, कोई निमित्तमांथी के रागना अवलंबनथी ते सम्यग्दर्शनादि थता नथी. सम्यग्दर्शन पोते पर्याय छे
परंतु पर्यायना आश्रये ते प्रगटतुं नथी, भूतार्थ द्रव्यना आश्रये ज सम्यग्दर्शन प्रगटे छे. निमित्तमां, व्यवहारमां
के पर्यायमां एवी ताकात नथी के तेनुं अवलंबन करवाथी सम्यग्दर्शन प्रगटे, अंतरना भूतार्थस्वभावमां ज एवी
ताकात छे के तेना अवलंबने सम्यग्दर्शन प्रगटी जाय छे. शक्ति छे तेमांथी व्यक्ति थाय छे, तेथी पोतानी
स्वभावशक्ति उपर धर्मीनी द्रष्टि छे, निमित्त वगेरे संयोग उपर धर्मीनी द्रष्टि नथी. आवी अंर्तशक्तिने द्रष्टिमां
लईने तेनुं अवलंबन करवुं ते अपूर्व धर्म छे. अनादिकाळथी जीवे आवी द्रष्टि कदी प्रगट करी नथी. अज्ञानी
जीवोने भेदरूप व्यवहारनो पक्ष तो अनादिकाळथी ज छे अने एनो उपदेश पण बहुधा सर्व प्राणीओ परस्पर
करे छे. जिनवाणीमां पण व्यवहारनो घणो उपदेश छे, परंतु ते व्यवहारना आश्रयनुं फळ तो संसार ज छे.
परमार्थस्वभाव समजावतां वच्चे भेदरूप व्यवहार आवी जाय छे, परंतु ते व्यवहारना आश्रयथी लाभ नथी;
व्यवहारना आश्रयथी लाभ माननार तो संसारमां ज रखडे छे; ते जीवोने शुद्धनयनो पक्ष एटले के आश्रय तो
कदी आव्यो नथी अने तेनो उपदेश पण विरल छे–क्यांक क्यांक छे; तेथी उपकारी श्रीगुरुए शुद्धनयना ग्रहणनुं
फळ मोक्ष जाणीने तेनो उपदेश प्रधानताथी दीधो छे. शुद्धनय भूतार्थ छे–सत्यार्थ छे, एनो आश्रय करवाथी ज
सम्यक्त्व थाय छे; एने जाण्या विना जीव ज्यांसुधी व्यवहारमां मग्न छे त्यांसुधी आत्मानां ज्ञान–श्रद्धानरूप
वीतरागभाव छे. जैनधर्मनी खरी अहिंसा तो ए छे के ज्ञानस्वभावना अवलंबनमां टकतां रागादिभावोनी
उत्पत्ति ज न थाय. लोको परजीवनी अहिंसामां धर्म मानीने अटकी गया छे; पण अरे भाई! ‘हुं परने बचावुं
ने रागथी मने लाभ थाय’–एवी मिथ्या मान्यताने लीधे तारो आत्मा ज हणाई रह्यो छे; पहेलां साची
तेमांथी नथी आव्युं पण वर्तमानमां आत्मद्रव्य परिपूर्ण शक्तिनो पिंड छे तेमां अंतर्मुख थईने तेना अवलंबने ज
केवळज्ञान प्रगटयुं छे; द्रव्यमां सामर्थ्यरूपे हतुं ते ज पर्यायमां व्यक्त थयुं छे. साडात्रण हाथनो सुंदर मोर कयांथी
आव्यो?–नाना ईंडामां तेवी शक्ति हती तेमांथी एन्लार्ज एटले के विकास थईने मोर थयो छे. तेम आत्मानी