Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: १९०: आत्मधर्म: ११७
(७) मृगजळ:– पुद्गलद्रव्यना वर्णगुणनी विभाव अर्थपर्याय छे.
(८) सूक्ष्मत्व: ते जीवद्रव्यनो विशेष गुण छे अने प्रतिजीवी छे.
• प्रश्न: ६ अ •
नीचेना पदार्थोनी व्याख्या लखो––
(१) वर्गणा (२) निश्चयनय (३) अवांतर सत्ता (४) आहारवर्गणा (प) लोकाकाश अने (६) चक्षुदर्शन.
• उत्तर: ६ अ •
(१) वर्गणा: वर्गोना समूहने वर्गणा कहे छे.
(२) निश्चयनय:– श्रुतज्ञाननुं जे पडखुं पदार्थना असली स्वरूपने बतावे तेने निश्चयनय कहे छे.
(३) अवांतरसत्ता:– महासत्तामांथी कोईपण विवक्षित पदार्थनी सत्ताने आंवतरसत्ता कहे छे.
(४) आहारवर्गणा:– औदारिक, वैक्रियिक अने आहारक ए त्रण शरीररूपे जे परिणमे तेने
आहारवर्गणा कहे छे.
(प) लोकाकाश:– आकाशना जेटला भागमां छए द्रव्यो रहेला छे तेने लोकाकाश कहे छे.
(६) चक्षुदर्श:– चक्षुन संबंधी मतिज्ञान थतां पहेलांं सामान्य प्रतिभासरूप दर्शननो जे वेपार थाय छे
तेने चक्षुदर्शन कहे छे.
• प्रश्न: ६ ब •
नीचेना बंनेमां उत्पाद–व्यय–ध्रुव समजावो––
(१) ताव उतरी गयो.
(२) एक जीवे क्रोध मटाडीने क्षमा करी.
• उत्तर: ६ ब •
(१) ‘ताव उतरी गयो’ त्यां पहेलांं पुद्गलद्रव्यना स्पर्शगुणनी जे उष्ण पर्याय हती तेनो व्यय थयो,
ठंडी पर्यायनो उत्पाद थयो, अने परमाणु तथा स्पर्शगुण कायम ध्रुवपणे टकी रह्यां.
(२) ‘जीवे क्रोध मटाडीने क्षमा करी’ त्यां पहेलांं ते जीवना चारित्रगुणनी क्रोधपर्याय हती तेनो व्यय
थयो, क्षमापर्यायनो उत्पाद थयो अने ते जीवद्रव्य तथा तेनो चारित्रगुण कायम ध्रुवपणे टकी रह्यां.
––ए रीते एक ज समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुव छे.
खरो जिज्ञासु
संसार परिभ्रमणनो जेने थाक लाग्यो छे अने बीजा बधाथी उदासीन थईने
एकमात्र शुद्ध आत्माने ओळखवानी ज जेने जिज्ञासा छे एवो शिष्य श्रीगुरुना
चरणे जईने कहे छे के: हे प्रभो! अनादिकाळथी हुं मारा आत्माने अशुद्ध अने
संयोगवाळो ज मानीने अत्यार सुधी संसारमां रखड्यो, पण शुद्धनयथी में मारा
आत्माने कदी ओळख्यो नहिं, हवे मारे शुद्धनयअनुसार मारा आत्मानुं स्वरूप
जाणवा योग्य छे, माटे हे गुरु! मने मारा आत्मानुं शुद्धस्वरूप बतावो, –के जे
जाणवाथी सम्यग्दर्शन थईने मारी मुक्ति थाय... ने आ भवभ्रमणनो अंत आवे.
जिज्ञासु शिष्यने पोतानो शुद्धआत्मा जाणवानी ज प्रधानता छे, बीजी
अप्रयोजभूत बाबत जाणवानी प्रधानता नथी. ज्ञानना उघाडथी बीजी
अप्रयोजभूत बाबत जणाय तो तेनुं अभिमान नथी अने न जणाय तो तेनो खेद
नथी, शुद्धआत्माने जाणवानी ज धगश अने उत्साह छे.
–प्रवचनमांथी