Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 21

background image
: १९४ : आत्मधर्म: ११७
कर्यो एम कहेवुं–अथवा तो अंतराय कर्मनो अभाव थवाथी जीवने अनंतवीर्य प्रगट्युं––एम कहेवुं ते
व्यवहारकथन छे केमके तेमां निमित्तअपेक्षाए कथन छे. स्वद्रव्याश्रित कथन होय ते निश्चय छे अने परद्रव्याश्रित
कथन होय ते व्यवहार छे.
(३) भगवाननो दिव्यध्वनि जीवोने तत्त्वज्ञाननुं कारण छे.
थाय एम कहेवुं ते उपचार होवाथी व्यवहारकथन छे. खरेखर जीवोने पोताना ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज
तत्त्वज्ञान थाय छे––ए निश्चय छे.
(४) अनादिकाळथी अज्ञानी जीव पोताना अज्ञान तथा मोहभावने लीधे संसारमां परिभ्रमण करे छे.
(उत्तर) ––आ कथन निश्चयनुं छे एटले के खरेखर एम ज छे, केम के जीव पोते पोतानी भूलथी ज रखडे
छे. कर्मे जीवने संसारमां रखडाव्यो––एम कहेवुं ते व्यवहारकथन छे, केमके कर्म तो परद्रव्य छे–संयोगरूप छे.
(प) श्री सीमंधर भगवानना दर्शन करवाथी मने शुभभाव थयो.
(उत्तर) –आ कथन व्यवहारनुं छे, केमके परने कारणे शुभभाव थयो एम कहेवुं ते संयोगनुं कथन छे;
खरेखर पोताना चारित्रगुणनी तेवी लायकातथी ज शुभभाव थयो छे–ते निश्चय छे, केमके ते स्वाश्रित कथन छे.
(६) धर्मास्तिकायना अभावने लीधे सिद्धभगवान अलोकमां जई शकता नथी.
(उत्तर) ––आ कथन व्यवहारनुं छे, केमके परद्रव्याश्रित छे. खरेखर सिद्धभगवाननी लायकात ज
लोकना छेडे रहेवानी छे, अलोकमां जवानी लायकात ज तेमनामां नथी तेथी तेओ अलोकमां जता नथी–एम
कहेवुं ते निश्चयकथन छे, कारणके ते स्वाश्रितभावने सूचवे छे.
(७) श्रेणिक राजा नरकगतिनामकर्मना उदयने लीधे नरकमां गया.
(उत्तर) ––आ कथन व्यवहारनयनुं छे केम के ते परद्रव्याश्रित कथन छे. खरेखर कर्म परद्रव्य छे तेने
लीधे जीव नरकमां नथी जतो पण श्रेणिक राजा पोताना आत्मानी ज ते प्रकारनी लायकातथी नरकमां गया छे,
नरकगति ते पण आत्मानो ज औदयिकभाव छे––आ कथन निश्चयनुं छे.
स्वद्रव्याश्रित कथन ते निश्चय छे अने परद्रव्याश्रित कथन ते व्यवहार छे. निश्चयकथन यथार्थ
वस्तुस्थिति बतावे छे अने व्यवहारकथन संयोग बतावे छे.
• प्रश्न: ६ (अ) •
नीचेना शब्दोनी व्याख्या लखो–
(१) अवग्रह (२) मंगल (३) मोक्षमार्ग (४) उपादानकारण (प) संकलेश परिणाम (६)
प्रध्वंसाभाव (७) चेतना.
• उत्तर: ६ (अ) •
(१) अवग्रह: ते मतिज्ञाननो एक भेद छे; ईन्द्रिय अने पदार्थना योग्यस्थानमां रहेवाथी, सामान्य
प्रतिभासरूप दर्शननी पछी अवान्तर सत्ता सहित विशेष वस्तुना ज्ञानने अवग्रह कहे छे.
(२) मंगल: ‘मं’ एटले पाप, तेने जे ‘गालयति’ एटले नाश करे ते मंगल छे; मिथ्यात्वादि
पापभावोनो जे भावथी नाश थाय ते मंगल छे. अथवा ‘मंग’ एटले पवित्रता, तेने ‘लाति’ एटले लावे–
आपे ते मंगल छे. आ रीते आत्माना जे भावथी पाप टळे अने पवित्रता प्रगटे ते मंगल छे.
(३) मोक्षमार्ग: एटले मुक्तिनो मार्ग; सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए त्रणेनी एकता ते
मोक्षमार्ग छे.
(४) उपादानकारण: (१) जे पदार्थ स्वयं कार्यरूपे परिणमे तेने उपादानकारण कहे छे–जेमके घडो
थवामां माटी; केवळज्ञान थवामां जीव.