अषाढ: २४७९ : १९५ :
२–अनादिकाळथी द्रव्यमां पर्यायोनो जे प्रवाह चाली रह्यो छे तेमां अनंतर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय ते
उपादानकारण अने अनंतर उत्तरक्षणवर्ती पर्याय ते कार्य छे.
३–दरेक समयनी पर्यायनी योग्यता ते उपादानकारण अने ते समयनी पर्याय पोते ज कार्य.
––आ रीते त्रण प्रकारे उपादानकारणनी व्याख्या थाय छे. उपादानकारण ते ज कार्यनुं खरुं कारण छे.
(प) संकलेश परिणाम:– तीव्र कषायरूप पापपरिणाम ते संकलेश परिणाम छे, जेमके हिंसा वगेरे पाप
परिणाम ते संकलेश परिणाम छे.
(६) प्रध्वंसाभाव:– एक जीवनी वर्तमान संसारपर्यायनो तेनी भावि सिद्धपर्यायमां अभाव ते
प्रध्वंसाभाव छे.
(७) चेतना:– जेमां पदार्थोनो प्रतिभास एटले के जाणवुं–देखवुं थाय छे तेने चेतना कहे छे, चेतना ते
जीवनुं लक्षण छे.
• प्रश्न: ६ (ब) •
नीचेना दोहाओनो भावार्थ समजावो––
(१) उपादान बल जहं तहां, नहि निमित्तको दाव, एक चक्रसों रथ चले, रविको यहै स्वभाव.
(२) सधै वस्तु असहाय जहां, तहां निमित्त है कौन? ज्यों जहाज परवाहमें तिरे सहज विन पौन.
• उत्तर: ६ (ब) •
(१) निमित्त वगरनुं एकलुं उपादान बलहीन छे––एम प्रश्नकार दलील करे छे तेना जवाबमां आ
दोहामां कहे छे के–
उपादान बल जहं तहां, नहि निमित्तको दाव,
एक चक्रसों रथ चले, रविको यहै स्वभाव.
तेनो भावार्थ ए छे के ज्यां जुओ त्यां सघळे कार्य थवामां उपादाननुं ज बळ छे, परंतु निमित्तनो
जरापण दाव नथी एटले के निमित्त कांई पण करी शकतुं नथी, एकला उपादानना बळथी ज सर्वत्र कार्य थाय
छे. जेम सूर्यनो रथ एक ज चक्रथी चाले छे (–सूर्यना रथने एक ज पैडुं छे एम लोकमां कहेवाय छे तेथी अहीं ते
द्रष्टांत तरीके लीधुं छे) तेम ज्यां जुओ त्यां एकला उपादानना बळथी ज कार्य थाय छे, ते वखते बीजुं निमित्त
होय छे खरुं परंतु कार्य थवामां ते निमित्तनो कांई दाव (सामर्थ्य) नथी.
(२) निमित्तनो पक्षकार प्रश्न करे छे के जो एकला उपादानथी ज कार्य थतुं होय तो पाणीमां चालतुं
वहाण पवननी सहाय विना केम थाकी जाय छे? ––तेना उत्तरमां आ दोहामां कहे छे के––
सधै वस्तु असहाय जहां, तहां निमित्त है कोण?
ज्यों जहाज परवाह में तिरे सहज विन पौन.
तेनो भावार्थ ए छे के–ज्यां बधी वस्तुओ परनी सहाय वगरनी ज सिद्ध थाय छे त्यां निमित्त ते कोण
छे!! असहाय वस्तुमां स्वयमेव कार्य थाय छे, तेमां निमित्त कांई पण कार्यकारी नथी. जेम पाणीना प्रवाहमां
वहाण पवन वगर ज सहजपणे तरे छे, तेम द्रव्यना परिणमनरूप प्रवाहमां उपादाननुं कार्य निमित्तनी
सहायमदद वगर स्वयमेव पोताथी ज थाय छे.
आ.त्मा.नी.श.क्ति
• बधाय पदार्थोने जाणे एवी सर्वज्ञत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे.
परनी क्रियाने न करे एवी अकर्तृत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे.
* पण आत्मा परनी क्रिया करे एवी तो कोई शक्ति आत्मामां कदी नथी.