Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: १९६ : आत्मधर्म: ११७
धर्मवर्ध्धक दिव्यध्वनि अने तेना यथार्थ श्रोता
[केवळज्ञान – कल्याणक प्रसंगनुं प्रवचन]
भगवानने शुद्धनयना अवलंबनना बळथी केवळज्ञान थतां भावमोक्ष थयो...
तेमणे कहेली शुद्धनयना अवलंबननी वात जे समजे तेने वर्तमानमां द्रष्टिअपेक्षाए
मोक्ष थयो अने अल्पकाळमां भावमोक्ष थई जशे. आ रीते भगवाननी वाणीनो
यथार्थ श्रोता पोते पण अल्पकाळमां भगवान थई जाय छे...
[सोनगढमां मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव दरमियान श्री नेमिनाथ प्रभुना केवळज्ञान कल्याणक प्रसंगे
भगवानना दिव्यध्वनि तरीकेनुं पू. गुरुदेवश्रीनुं खास प्रवचन: वीर सं. २४७९ चैत्र सुद ९] (गया अंकमां
छापवो बाकी रही गयेल हतो ते लेख)
जुओ, हमणां अहीं नेमिनाथ भगवानने केवळज्ञान थयुं. कई रीते थयुं? के पोताना भूतार्थ स्वभावनो
संपूर्ण आश्रय लेतां केवळज्ञान थयुं. भगवानने केवळज्ञान थतां ईन्द्रोए आवीने केवळज्ञान कल्याणकनो
महोत्सव कर्यो ने दिव्य समवसरणनी रचना करी; ते समवसरणमां भगवानना सर्वागेथी दिव्यध्वनि छूट्यो,
अने सौ श्रोताजनो पोतपोतानी भाषामां पोतानी लायकात प्रमाणे समज्या. भगवानना दिव्यध्वनिमां एम
आव्युं के: हे जीवो! आत्मा त्रणेकाळ केवळज्ञानशक्तिथी परिपूर्ण छे; दरेक आत्मा एक समयमां केवळज्ञान
लेवानी ताकातवाळो छे. ते शक्तिनो विश्वास करीने तेमां अंतर्मुखताथी ज सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञान थाय छे.
अमे आ ज विधिथी केवळज्ञान पाम्या छीए अने तमारे पण केवळज्ञान पामवा माटे आ ज विधि छे.
भगवाननो उपदेश धर्मवृद्धिनुं ज निमित्त छे. पूर्वे साधकदशामां धर्मवृद्धिना विकल्पथी वाणीना रजकणो
बंधाया, ते धर्मवृद्धिना भावे बंधायेली वाणी बीजा जीवोने पण धर्मवृद्धिनुं ज निमित्त छे. आत्मानो पूर्ण स्वभाव
बतावीने तेनो आश्रय करवानुं ज भगवाननी वाणी बतावे छे. भगवाननी वाणीमां पराश्रय भावोनुं पण ज्ञान
कराव्युं छे पण ते पराश्रय भावो छोडाववा माटे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. वळी अगियारमा गुणस्थानेथी जीव पाछो
पडे छे अने कोई जीव अनंत–संसारमां रखडे छे––एम भगवाननी वाणीमां आव्युं–तेमां पण पाछा पाडवानो
आशय नथी पण धर्मवृद्धिनो ज आशय छे. जे जीव पाछा पडवानो अभिप्राय काढे छे ते जीव खरेखर भगवाननी
वाणीने समज्यो नथी. जगतमां अनंतसंसारी जीवो छे ने अभव्य जीवो पण छे, ––पण ते वात पोताने माटे नथी,
ते तो जगतना पर जीवोनुं ज्ञान करवा माटे छे. जेने अनंतसंसारीपणानी के अभव्यपणानी शंका छे ते जीव
भगवाननी वाणी सांभळवानो पात्र नथी. भगवाननी वाणीमां एम आवे