मोक्ष थयो अने अल्पकाळमां भावमोक्ष थई जशे. आ रीते भगवाननी वाणीनो
यथार्थ श्रोता पोते पण अल्पकाळमां भगवान थई जाय छे...
महोत्सव कर्यो ने दिव्य समवसरणनी रचना करी; ते समवसरणमां भगवानना सर्वागेथी दिव्यध्वनि छूट्यो,
अने सौ श्रोताजनो पोतपोतानी भाषामां पोतानी लायकात प्रमाणे समज्या. भगवानना दिव्यध्वनिमां एम
आव्युं के: हे जीवो! आत्मा त्रणेकाळ केवळज्ञानशक्तिथी परिपूर्ण छे; दरेक आत्मा एक समयमां केवळज्ञान
लेवानी ताकातवाळो छे. ते शक्तिनो विश्वास करीने तेमां अंतर्मुखताथी ज सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञान थाय छे.
अमे आ ज विधिथी केवळज्ञान पाम्या छीए अने तमारे पण केवळज्ञान पामवा माटे आ ज विधि छे.
बतावीने तेनो आश्रय करवानुं ज भगवाननी वाणी बतावे छे. भगवाननी वाणीमां पराश्रय भावोनुं पण ज्ञान
कराव्युं छे पण ते पराश्रय भावो छोडाववा माटे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. वळी अगियारमा गुणस्थानेथी जीव पाछो
पडे छे अने कोई जीव अनंत–संसारमां रखडे छे––एम भगवाननी वाणीमां आव्युं–तेमां पण पाछा पाडवानो
आशय नथी पण धर्मवृद्धिनो ज आशय छे. जे जीव पाछा पडवानो अभिप्राय काढे छे ते जीव खरेखर भगवाननी
वाणीने समज्यो नथी. जगतमां अनंतसंसारी जीवो छे ने अभव्य जीवो पण छे, ––पण ते वात पोताने माटे नथी,
ते तो जगतना पर जीवोनुं ज्ञान करवा माटे छे. जेने अनंतसंसारीपणानी के अभव्यपणानी शंका छे ते जीव
भगवाननी वाणी सांभळवानो पात्र नथी. भगवाननी वाणीमां एम आवे