गणधर थनार छे–ईत्यादि वात आवे त्यां सुपात्र जीव पोतानी लायकात प्रमाणे समजे छे के अमुक वात मारे
माटे छे. जे जीव पोतामां अभेदद्रष्टि अने स्वाश्रयभाव प्रगट करीने धर्मनी वृद्धि करे ते ज धर्मनो खरो श्रोता
छे, तेणे ज भगवाननी वाणीने पोतामां धर्मवृद्धिनुं निमित्त बनावी छे. समयसारमां आचार्यदेव कहे छे के जेणे
पोतामां स्वाश्रये धर्म प्रगट कर्यो तेणे ज भगवाननी वाणी सांभळी छे, अने जेणे पोतामां धर्म प्रगट न कर्यो
तेणे आत्मानी वात सांभळी ज नथी, भगवाननी वाणीना शब्दो काने पडवा छतां तेणे आत्मानी वात कदी
सांभळी ज नथी. जुओ, आ निमित्त–नैमित्तिकनी अपूर्व संधि!
कारण छे. जे श्रोता अभेद आत्मस्वभावनुं अवलंबन लईने पोतामां धर्मनी वृद्धि करे तेने ज भगवाननी
वाणी धर्मनुं निमित्त छे. वाणीमां तो बधी वात आवे छे पण जे सांभळनार श्रोता तेमांथी धर्मवृद्धिनो आशय
न काढे ने व्यवहारना पक्षनो आशय काढे ते जीव खरो श्रोता नथी, भगवाननी वाणीने पोताना धर्मनुं निमित्त
बनाववानी तेनामां लायकात नथी. उपादानमां जेटली योग्यता होय तेटलो वाणीमां आरोप आवे छे.
भगवाननी दिव्यवाणीनो यथार्थ श्रोता तेने कहेवाय के जे जीव शुद्धनयना अवलंबननो आशय समजीने
पोतामां धर्मनी वृद्धि करे. अनंतसंसारमां रखडनार जीवोनी वात करीने भगवाने ते जातना बीजा जीवोनुं ज्ञान
कराव्युं छे, ते पण पोताने माटे तो धर्मनी वृद्धिनुं ज निमित्त छे. तेने बदले जे जीव ऊंधो आशय काढीने एम
शंका करे छे के ‘भगवाने अगियारमा गुणस्थानेथी पडीने संसारमां रखडनार जीवो जोया छे तो हुं पण
संसारमां रखडीश तो? ’ ––आम शंका करनार मिथ्याद्रष्टि छे; तेम ज कोई एम माने के कर्मना जोरने लईने
जीव अगियारमा गुणस्थानेथी पडे छे–तो ते पण मिथ्याद्रष्टि छे, ते खरेखर धर्मकथा सांभळतो नथी पण
बंधकथा ज सांभळे छे. तेना नैमित्तिकभावमां बंधभावनुं पोषण छे तेथी निमित्तमां पण बंधकथानो ज आरोप
आपीने कह्युं के ते बंधकथा ज सांभळे छे.
जीव आत्माना स्वभावने लक्षमां ल्ये छे ते ज खरो श्रोता छे. भगवाननी वाणी धर्मनी वृद्धिनुं निमित्त छे,
एटले जेणे पोतामां शुद्धआत्मानो आश्रय करीने धर्मवृद्धिनो भाव प्रगट कर्यो तेणे ज खरेखर भगवाननी
वाणी सांभळी छे. आ रीते जेणे भगवाननी दिव्यवाणी सांभळी तेने द्रव्यद्रष्टिथी अल्पकाळमां मुक्ति थई जाय
छे. भगवाने पोते पोताना परमार्थस्वभावना आश्रये भावमुक्ति प्रगट करी छे अने दिव्यध्वनिमां पण
परमार्थस्वभावनो आश्रय करवानुं ज भगवाने फरमाव्युं छे. जेणे परमार्थस्वभावनी द्रष्टि पोतामां प्रगट करी
ते भगवाननो खरो श्रोता अने भक्त थयो, हवे अल्पकाळमां स्वभावनो पूर्ण आश्रय प्रगट करीने ते पण
भगवान जेवो मुक्त थई जशे. शुद्धनयना अवलंबनना बळथी केवळज्ञान थतां भगवानने भावमोक्ष थयो अने
तेमणे कहेली शुद्धनयना अवलंबननी वात जे समजे तेने वर्तमानमां द्रष्टि–अपेक्षाए मोक्ष थयो अने
अल्पकाळमां भावमोक्ष थई जशे. आ रीते भगवाननी वाणीनो यथार्थ श्रोता पोते पण अल्पकाळमां भगवान
थई जाय छे.