(अनुसंधान टाईटल पृष्ठ २ थी चालु)
–मानस्तंभनी चारे बाजु वावडी अने तेमां खीलेलां कमळ जोतां एवुं लागे छे के: जिनेन्द्रदेवना अपार
वैभवने [मानस्तंभने] देखवा माटे जाणे के पृथ्वीए अनेक नेत्रो धारण कर्यां होय, अने ए नेत्रो खोलीने
पृथ्वी चारे बाजुथी भगवानना अद्भुत वैभवने निहाळती होय! अहो! तीर्थंकरभगवानना अंतरना
आत्मवैभवनी तो शी वात! परंतु तेमनो बाह्य वैभव पण अद्भुत अने आश्चर्यकारी होय छे.
सोनगढमां मानस्तंभ थतां ए तीर्थधामनी शोभामां अद्भुत वृद्धि थई छे.
उमराळामां जे स्थाने पू. गुरुदेवश्रीनो जन्म थयो हतो ते ज स्थाने जन्मभूमि–स्थान–मंदिर बांधवानुं
काम चाली रह्युं छे. तेमां भगवानना जिनबिंबने बिराजमान करवानी पण भावना छे.
सवारना प्रवचनमां हाल मोक्षमार्ग–प्रकाशक अने बपोरना प्रवचनमां समयसार–कर्ताकर्म अधिकार–
वंचाय छे. बीजा बधा कार्यक्रमो पण नित्य प्रमाणे चाले छे.
सूचना
(१) सोनगढमां श्री मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव वखते बे पाकीट हाथ आव्या छे, तेमांथी एक
पाकीटमां अमुक रूपिया छे अने बीजामां परचुरण छे; आ पाकीट जेमना होय तेमणे खात्री आपीने लई जवां.
(२) प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे ऊछामणी वगेरेमां बोलायेली रकमो भरवानुं जेमने बाकी होय तेमने ते
रकम तुरत मोकली देवा विनंति छे.
–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)