Atmadharma magazine - Ank 117
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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अषाढ: २४७९ : १८७:
[२]
• श्री जैनदर्शन शिक्षणवर्गनी परीक्षा •
[बीजा वर्ग (मध्यम श्रेणी) मां पूछायेला प्रश्नो अने तेना जवाबो]
[विषय: द्रव्यसंग्रहमां जीवना नव अधिकार: गाथा १ थी १४ जैनसिद्धांत प्रवेशिकाना प्रश्नो: १ थी ७४]
• प्रश्न: १ •
जीवना नव अधिकारनां नाम लखी तेमांथी भोक्तृत्व अने अमूर्तत्व अधिकारमां जे जे नयथी कथन
करवामां आव्युं होय ते लखो, अने ते दरेक नय शुं बतावे छे ते जणावो.
• उत्तर: १ •
१–जीवत्व, २–उपयोगमयत्व, ३–अमूर्तित्व, ४–कर्तृत्व, प–स्वदेहपरिमाणत्व, ६–भोक्तृत्व, ७–संसारित्व,
८–सिद्धत्व अने ९–स्वाभाविक ऊर्ध्वगमनत्व. आ प्रमाणे जीवना नव अधिकार छे. तेमांथी भोक्तृत्व
अधिकारमां एक कह्युं छे के:–
(१) निश्चयनयथी जीव पोताना शुद्ध दर्शन अने शुद्ध ज्ञानस्वरूप भावोने भोगवे छे.
(२) अशुद्ध निश्चयनयथी जीव पोताना हर्ष–शोक वगेरे विकारी भावोने भोगवे छे. अने
(३) व्यवहारनयथी जीव ज्ञानावरण आदि कर्मोना फळने तथा परना संयोग–वियोगने भोगवे छे.
खरेखर तो आत्मा परना संयोग–वियोग वगेरेनो भोक्ता नथी, छतां परनो भोक्ता कहेवो ते व्यवहारकथन छे.
अमूर्तित्व अधिकारमां एकम कह्युं छे के:–
(१) निश्चयनयथी जीवमां वर्ण वगेरे २० गुणो नहि होवाथी ते अमूर्तिक छे; अने
(२) व्यवहारनयथी जीवने कर्मनुं बंधन होवाथी मूर्तिक कहेल छे. वास्तविक रीते तो वर्णादि २० गुणो
पुद्गलद्रव्यना होवाथी पुद्गलद्रव्य ज मूर्तिक छे, जीव मूर्तिक नथी.
आमां निश्चयनयनुं कथन तो वस्तुना असली स्वरूपने बतावे छे, अशुद्धनिश्चयनयनुं कथन पर्यायनी
अशुद्धता बतावे छे अने व्यवहारनयनुं कथन अन्य पदार्थना संयोगनी अपेक्षाए कथन करे छे.
अहीं एम समजवुं के निश्चयनयथी जीव पोताना अमूर्त–अतीन्द्रिय आत्मस्वरूपनुं संवेदन करवाना
स्वभाववाळो छे; पण तेने भूलीने मूर्त एवा पांच इंद्रियोना विषयोमां आसक्त थवाथी मूर्त कर्म बंधायुं,
तेना निमित्ते शरीर वगेरे मूर्त पदार्थ साथे संबंध थयो तेथी जीवने व्यवहारथी मूर्त कह्यो छे, पण निश्चयथी तो
मूर्त एवा पुद्गलद्रव्यथी तथा तेना वर्णादि गुणोथी भिन्न होवाथी जीव अमूर्त छे. आवुं अमूर्तिकपणुं समजीने,
विषयकषायोथी निवृत्त थई शुद्धता प्राप्त करवानो आ गाथानो उपदेश छे.
ए ज प्रमाणे भोकतृत्व अधिकारमां पण–संयोगनो के विकारनो भोक्ता थवानो खरो स्वभाव नथी पण
पोताना शुद्ध ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वभावनो भोक्ता थवानो ज तेनो खरो स्वभाव छे, एम जाणीने ते शुद्ध
ज्ञानादि भावोनुं भोक्तापणुं प्रगट करवानो उपदेश छे.
• प्रश्न: २ तथा तेनो उत्तर •
(प्रश्न:) उपयोगनी व्याख्या लखो.
(उत्तर: ) चैतन्यने अनुसरीने थता आत्माना परिणामने उपयोग कहे छे; अथवा आत्माना ज्ञान–
दर्शननो वेपार ते उपयोग छे.
(प्रश्न: ) कोई जीव परोपकारी कार्य करवामां शरीरनो उपयोग करी शके के नहि? ते कारण आपी
समजावो.
(उत्तर: ) कोई पण जीव कोई कार्यमां शरीरनो उपयोग करी शकतो नथी, कारण के शरीर ते आत्माथी