: १८८: आत्मधर्म: ११७
भिन्न चीज छे; आत्मा अने शरीरनो एकबीजामां अत्यंत अभाव होवाथी तेओ एकबीजानुं कांई करी शके
नहि; तेम ज अगुरुलघुत्व नामनो गुण होवाथी एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूपे परिणमतुं नथी. खरेखर कोई जीव
परनो उपकार करी शकतो नथी, मात्र तेवा भाव करे छे.
(प्रश्न: ग) सम्यग्दर्शन अने चक्षुदर्शनमां शुं फेर छे?
ते बंनेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव सरखावो.
(उत्तर: ग) सम्यग्दर्शन ते श्रद्धागुणनी पर्याय छे, ज्यारे चक्षुदर्शन तो दर्शनगुणनी पर्याय छे. चक्षुदर्शन तो
अज्ञानीने पण होय छे, ने सम्यग्दर्शन तो ज्ञानीने ज होय छे. सम्यग्दर्शन साथे मोक्षमार्गनो संबंध छे, पण चक्षुदर्शन
साथे मोक्षमार्गनो संबंध नथी. सम्यग्दर्शन अने चक्षुदर्शन ए बंनेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव नीचे प्रमाणे छे–
(१) ते बनेमां द्रव्य तो जीव छे, तेथी द्रव्य बंनेनुं सरखुं छे.
(२) ते बंनेनुं क्षेत्र पण जीव प्रमाणे ज एक सरखुं छे.
(३) क्यारेक सम्यग्दर्शन अने चक्षुदर्शन बंने एक साथे पण होय छे ने क्यारेक एक साथे नथी पण
होता; आ अपेक्षाए क्यारेक तेमने काळभेद नथी होतो, ने क्यारेक काळभेद होय छे. पर्यायअपेक्षाए तो बंनेनो
काळ एक समयनो ज छे.
(४) सम्यग्दर्शन तो निर्विकल्प प्रतीतिरूप छे, अने चक्षुदर्शन तो सामान्य अवभासरूप उपयोग छे, ––
ए रीते बंनेमां भावभेद छे.
[प्रश्न: ध] एक विद्यार्थीए बीजा पासेथी मानस्तंभनी प्रतिष्ठा वखते जे निमंत्रण पत्रिका नीकळी हती
तेनी विगत सांभळी. पछी तेणे ते निमंत्रण–पत्रिका पोताना हाथमां लईने मानस्तंभनुं चित्र जोयुं. तेना
उपरथी मानस्तंभ केवो होय तेनो ते विशेष विचार करवा लाग्यो. –आमां श्रवण, चित्रनुं जोवुं अने विशेष
विचारमां क्या क्या उपयोग थया ते अनुक्रमे लखो.
[उत्तर: ध] पत्रिकानी विगत सांभळी ते मतिज्ञान थयुं; तेनी पहेलांं अचक्षुदर्शननो उपयोग थयो.
पछी मानस्तंभनुं चित्र जोयुं ते मतिज्ञान थयुं; तेनी पहेलांं चक्षुदर्शननो उपयोग थयो.
चित्र जोया पछी मानस्तंभनो विशेष विचार कर्यो ते श्रुतज्ञान थयुं.
ए रीते पहेलांं अचक्षुदर्शन, पछी मतिज्ञान, पछी चक्षुदर्शन, पछी मतिज्ञान अने पछी श्रुतज्ञान–ए
प्रमाणे उपयोग थया.
• प्रश्न ३ तथा तेनो उत्तर •
नीचेना प्रश्नोना जवाब कारणसहित लखो––
(१) चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शन बंने एक ज समये होय?
उत्तर: न होय; कारणके ते बंने एक ज गुणनी जुदी जुदी पर्यायो छे, एक गुणनी बे पर्यायो एक साथे
होय नहि.
(२) सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान बंने एक साथे होय?
उत्तर: हा; कारणके सम्यग्दर्शन सहितनुं ज्ञान ते सम्यग्ज्ञान छे, तेथी ते बंने साथे ज होय छे.
(३) एक द्रव्यमां बे व्यंजनपर्याय एक समये होय?
उत्तर: न होय; कारणके एक द्रव्यना एक गुणनी बे पर्यायो एकसाथे न होय.
(४) अस्तित्वगुण अने स्थितिहेतुत्व गुण बंने एक साथे क्या द्रव्यमां होय?
उत्तर: अधर्मास्तिकाय द्रव्यमां ते बंने गुणो एक साथे होय छे.
(प) गति (अर्थात् गमन) अने गतिहेतुत्व–ए बंने एक ज द्रव्यमां होय?
उत्तर: ना; गति तो जीव अने पुद्गलोने ज होय छे, पण तेमनामां गतिहेतुत्व नथी; गतिहेतुत्व ते
धर्मास्तिकाय द्रव्यनो विशेष गुण छे पण ते पोते गति करतुं नथी. गति ते क्रियावती शक्तिनी पर्याय छे, ने
क्रियावती शक्ति तो जीव ने पुद्गलमां ज छे; तथा गतिहेतुत्वगुण धर्मास्तिकायमां ज छे. आथी