Atmadharma magazine - Ank 118
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: २१८ : आत्मधर्म–११८ : श्रावण : २००९ :
मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कहे छे के––
“पुण्यनो उदय थतां ईन्द्रियसुखना कारणभूत सामग्री स्वयं मळे छे, तथा पापनो उदय दूर थतां दुःखना
कारणभूत सामग्री स्वयं दूर थाय छे.” (पानुं–८)
* “चार अघाति कर्मोना निमित्तथी आत्माने बाह्य सामग्रीनो संबंध बने छे. त्यां वेदनीय वडे तो
शरीरमां वा शरीरथी बाह्य नाना प्रकारनां सुख–दुःखना कारणरूप परद्रव्योनो संयोग जोडाय छे. ––ए प्रमाणे
अघाति कर्मोवडे बाह्य सामग्री एकठी थाय छे.”
(पानुं २८)
* “अघातिकर्मना उदयथी बाह्य सामग्री मळी आवे छे, तेमां शारीरादिक तो जीवना प्रदेशोथी
एकक्षेत्रावगाही थई एक बंधनरूप ज होय छे, तथा धन–कुटुंबादिक जे आत्माथी भिन्नरूप छे ए बधां कांई
बंधनां कारण नथी.” (पानुं–३०)
* “अघातिकर्मोमां वेदनीय कर्मना उदयथी शरीरमां बाह्य अनेक सुख–दुःखनां कारणो नीपजे छे.
शरीरमां अरोगीपणुं, रोगीपणुं, दुर्बळपणुं ईत्यादि तथा क्षुधा, तृषा, रोग, खेद, पीडा ईत्यादि सुख–दुःखनां
कारणो मळी आवे छे. शरीरथी बहार पण मनगमतां ऋतु–पवनादिक वा ईष्ट स्त्री, पुत्र, मित्र, धनादि, तथा
अणगमतां ऋतु–पवनादिक वा अनिष्ट स्त्री, पुत्र, शत्रु, दारिद्र्य, वध, बंधनादिक सुख–दुःखनां कारणो मळी
आवे छे...ए प्रमाणे कारणोनुं मळवुं वेदनीय कर्मना उदयथी थाय छे. त्यां सातावेदनीयना उदयथी सुखनां
कारणो मळी आवे छे तथा असातावेदनीयना उदयथी दुःखनां कारणो मळी आवे छे.” (पानुं ४प–४६)
* “वेदनीय कर्मना उदयथी दुःख–सुखनां कारणोनो संयोग थाय छे. तेमां कोई तो शरीरमां ज एवी
अवस्था थाय छे, कोई शरीरनी अवस्थाने निमित्तभूत बाह्यसंयोग थाय छे तथा कोई बाह्य वस्तुओनो ज
संयोग थाय छे. असातावेदनीय कर्मना उदयथी शरीरमां भूख, तरस, उश्वास, पीडा अने रोगादिक थाय छे,
शरीरनी अनिष्ट अवस्थाने निमित्तभूत बाह्यथी अति टाढ, ताप, पवन अने बंधनादिकनो संयोग थाय छे
तथा बाह्य शत्रु–कुपुत्रादिक वा कुवर्णादि सहित पुद्गलस्कंधोनो संयोग थाय छे. वळी सातावेदनीय कर्मना
उदयथी शरीरमां अरोगीपणुं, बळवानपणुं ईत्यादिक थाय छे, शरीरनी ईष्ट अवस्थाने निमित्तभूत बाह्य खान–
पानादिक वा रुचिकर पवनादिकनो संयोग थाय छे, तथा बाह्य मित्र, सुपुत्र, स्त्री, नोकर–चाकर, हाथी, घोडा,
धन, धान्य, मंदिर अने वस्त्रादिकनो संयोग थाय छे.”
(पानुं ६१–६२)
* वळी मुख्यपणे केटलीक सामग्री साताना उदयथी प्राप्त थाय छे तथा केटलीक असाताना उदयथी प्राप्त
थाय छे, तेथी ए सामग्रीओ वडे सुख–दुःख भासे छे, परंतु निर्णय करतां मोहथी ज सुख–दुःखनुं मानवुं थाय
छे, पण अन्यद्वारा सुख–दुःख थवानो नियम नथी. केवळी भगवानने साता–असातानो उदय तथा सुख–दुःखना
कारणरूप सामग्रीनो पण संयोग छे, परंतु मोहना अभावथी तेमने किंचित् मात्र पण सुख–दुःख थतुं नथी.”
(पानुं–६४)
* “अघाति कर्मोमां मुख्यपणे तेमने (एकेन्द्रिय जीवोने) पाप प्रकृतिओनो ज उदय होय छे. असाता
वेदनीयनो उदय थतां तेना निमित्तथी तेओ महा दुःखी होय छे, पवनथी तूटी जाय छे, शीत–उष्णताथी अने
जळ न मळवाथी वनस्पति सुकाई जाय छे, अग्निथी बळी जाय छे, कोई छेदे छे, भेदे छे, मसळे छे, खाय छे,
तोडे छे ईत्यादि अवस्था थाय छे.” (पानुं–६८)
* “वेदनीयमां मुख्यपणे एक असातानो ज तेमने (नारकीओने) उदय होवाथी त्यां वेदनानां निमित्त
थई