केमके ते जीवने जिनसूत्रनी श्रद्धा नहीं होवाथी ते मिथ्याद्रष्टि छे अने मिथ्यात्वनुं फळ निगोद छे.
लेशे –एवी तेमनी आत्मजागृति छे. –आवा मुनिवरो मंगलरूप छे, लोकमां उत्तम छे अने भव्यजीवोने
शरणरूप छे. ए धन्यदशामां दुःख के कलेश नथी पण सिद्ध भगवान जेवो अपूर्व महाआनंद छे. आवी
मुनिदशामां घणुं दुःख छे एम जे माने छे ते मूढ छे, मुनिनी अद्भुत अंतरदशानुं तेने भान नथी. आ
मोक्षमार्गी मुनिवरो आगमचक्षुवाळा होय छे, तेनुं वर्णन करतां प्रवचनसारमां (गा. २३४ नी टीकामां) कहे छे
के : सर्वत: चक्षुपणानी सिद्धिने माटे भगवंत श्रमणो आगमचक्षु होय छे. तेओ ते आगमरूप चक्षुवडे...स्व–
परनो विभाग करीने, महामोहने जेमणे भेदी नाख्यो छे एवा वर्तता थका, परमात्माने पामीने, सतत
ज्ञाननिष्ठ ज रहे छे.
लक्षणी धर्म अथवा पर्युषणपर्व तरीके ऊजवाशे. आ दिवसो दरमियान
उत्तमक्षमा वगेरे दस धर्मो उपर पू. गुरुदेवश्रीना खास अध्यात्म प्रवचनो थशे.
हाजर रहेवा विनंति छे.
आठ दिवसो धार्मिक दिवसो तरीके ऊजवाशे ने आ दिवसोमां पू. गुरुदेवश्रीनां
खास प्रवचनो थशे. आ दिवसो दरमियान घणाखरा मुमुक्षुओने कामधंधाथी
निवृत्तिनो विशेष अवकाश मळतो होवाथी तेओ लाभ लई शके ते हेतुए आ
आठ दिवसो राखवामां आवे छे.