कर्मथी भिन्नतानी द्रष्टि थईने द्रव्यनो आश्रय थई जाय छे ने मिथ्यात्वनो जरूर नाश थई जाय छे. कर्म साथेना
निमित्त–नैमित्तिक संबंध उपर द्रष्टि राखीने क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय थई शकतो नथी, केमके क्रमबद्धपर्यायनो
प्रवाह तो द्रव्यमांथी आवे छे माटे द्रव्यसन्मुख द्रष्टिथी ज तेनो निर्णय थाय छे; अने जेणे आवो निर्णय कर्यो
तेनी वर्तमानपर्याय तो द्रव्य तरफ झूकी गई छे तेथी ते पर्यायमां मिथ्यात्व रह्युं ज नहि तेम ज मिथ्यात्वना
क्रमनी शंका पण त्यां रहे ज नहीं. जेम केवळज्ञाननी प्रतीत अने अनंतभवनी शंका–ए बंने कदी साथे होय
नहि, तेम क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थ निर्णय अने मिथ्यात्वनो क्रम–ए बंने पण साथे होय ज नहीं. जेने
क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थ निर्णय थयो होय तेने कर्म अने आत्मानी भिन्नतानो विवेक थई ज गयो होय, अने
तेनी द्रष्टि पर उपरथी खसीने आत्मा तरफ वळी गई होय, तेने अनंतसंसार होवानो संदेह होय नहि. ‘मारे
हजी अनंतसंसार बाकी हशे तो?’–एम जेने संदेह छे तेनी द्रष्टि कर्म उपर ज छे, तेने क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय
थयो ज नथी.
पर्याय थवानो स्वभाव छे तेवी ज पर्याय थाय छे, तेने जाणवानो आत्मानो स्वभाव छे, क्रमबद्धपर्यायो तो ज्ञेय
छे, तेने जाणनारुं ज्ञान छे, ते ज्ञानस्वभावना निर्णय वगर ज्ञेयनो एटले के क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय करशे
कोण? सर्वज्ञताना निर्णयपूर्वक जेणे क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय कर्यो तेना अनंतभव सर्वज्ञे जोया ज नथी. खरेखर
जेणे क्रमबद्धपर्यायनो अने सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे तेणे पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर्यो छे, तेने
वर्तमानमां ज परीतसंसारीपणुं थई गयुं छे, अने सर्वज्ञदेवे पण एम ज जोयुं छे. जेने अनंतकाळ पछी
संसारपरीत थवानुं केवळी भगवाने जोयुं तेने वर्तमानमां परीतसंसार थई जाय एम कदी न बने,–परंतु
केवळज्ञाननो आवो निर्णय जेना ज्ञानमां थयो तेना अनंतभव केवळी भगवाने जोया होय–एम पण न बने.
मारे अनंतभव करवा पडशे–एवा भयवाळा जीवे खरेखर सर्वज्ञने मान्या ज नथी. सर्वज्ञने ओळखे अने
अनंतभवनो भय न मटे –एम बने ज नहीं. जुओ तो खरा, वस्तुस्थितिनो मेळ! अंतरमां ‘ज्ञा...न’ नो
निर्णय करवो ते अपूर्व चीज छे, पण बाह्यद्रष्टिवाळा जीवोने तेनी किंमत भासती नथी.
संसारप्राप्त न जाणतो ते सर्व रीते सर्वने. १६०.
छे पण पर्यायमां ते पोताना अपराधथी ढंकायेलो छे, जड कर्मे ढांक्यो एम कहेवुं ते तो निमित्तनुं कथन छे.
खरेखर जडकर्मे ज्ञानने ढांकयुं नथी. खरेखर जडकर्मने लीधे आत्मानुं ज्ञान रोकाई गयुं एम जे माने तेनी द्रष्टि
अभव्य जेवी छे. एक तो–आत्मामां सर्वज्ञतानी शक्ति छे एम नहि माननारा, अने बीजा–कर्मने लीधे
आत्मानी ज्ञानशक्ति रोकायेली छे एम माननारा,–ते बंने प्रकारना जीवो मिथ्याद्रष्टि छे, तेमनी द्रष्टि अज्ञानथी
विमोहित थई गई छे, तेओ खरेखर कर्मने ज आत्मा माननारा छे.
व्यवहारमूढ मिथ्याद्रष्टि छे; तेओ कर्मने ज आत्मा माननारा छे, कर्मथी भिन्न आत्माने तेओ जाणता नथी.
करावे छे ए