Atmadharma magazine - Ank 119
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः २४७९ः २३६ः
[‘उपादानविधि निरवचन है निमित्त उपदेश’]
समय समयनुं उपादान स्वाधीन–स्वयं सिद्ध छे.
अहो! आवी स्वतंत्रतानी वात लोकोने अनंतकाळथी बेठी
नथी, ने पराधीनता मानीने रखडी रह्या छे. उपादाननी
स्वाधीनतानो जेने निर्णय नथी तेने सम्यग्दर्शन पामवानी
योग्यता नथी.
*
उपदेशमां तो अनेक प्रकारथी कथन आवे, त्यां निमित्तना अने व्यवहारना कथनने ज अज्ञानी वळगी
रहे छे, पण ते कथननो परमार्थ आशय शुं छे तेने ते समजतो नथी.–शुं थाय!! पोते अंदरमां पात्र थईने
वस्तुस्थिति समजे तो समजाय, एनी पात्रता विना ज्ञानी शुं करे? एनी पात्रता थया विना साक्षात् तीर्थंकर
भगवान पण तेने समजावी शके नहि. उपादाननी लायकात विना बीजो शुं करे? उपादानमां लायकात होय तो
बीजामां निमित्त तरीकेनो उपचार आवे.
अहो! ज्यां जुओ त्यां उपादाननी विधिनो एक ज प्रकार छे. अमुक वखते अमुक प्रकारनी पर्याय केम
थई?–के एवी ज ते उपादाननी योग्यता. सम्यग्दर्शन केम थयुं?–के पर्यायनी लायकातथी; राग केम थयो?–के
पर्यायनी तेवी लायकातथी; आ रीते उपादान निरवचन छे एटले के तेमां एक ज प्रकार छे, एक ज उत्तर छे,
‘आम केम?’ के ‘एवी ज ते उपादाननी योग्यता.’
ए खास ध्यान राखवुं के ‘उपादाननी योग्यता’ एम जे वारंवार कहेवामां आवे छे ते त्रिकाळी
शक्तिरूप नथी पण एक समयनी पर्यायरूप छे, एकेक समयनी पर्यायमां पोतानी स्वतंत्र ताकात छे तेने
उपादाननी योग्यता कहेवामां आवे छे. समय समयनी पर्यायना स्वतंत्र उपादाननी लोकोने खबर नथी एटले
निमित्त आवे तो पर्याय थाय–एम भ्रमथी माने छे, तेमां एकली संयोगी–पराधीनद्रष्टि छे. अहो! एकेक
समयनी पर्यायनुं स्वतंत्र उपादान!–तेनो निर्णय करवामां तो वीतरागीद्रष्टि थई जाय छे. वस्तुस्वरूप ज आ छे,
पण अत्यारे तो लोकोने आ वात कठण थई पडी छे.
उपादाननी योग्यता कहो, पर्यायनी ताकात कहो, अवस्थानी लायकात कहो, पर्यायधर्म कहो, स्वकाळ
कहो, काळलब्धि कहो, पोतानो उत्पाद कहो, पोतानो अंश कहो, क्रमबद्ध पर्याय कहो, नियत कहो के ते प्रकारनो
पुरुषार्थ कहो–ए बधुं एक ज छे, तेमांथी एक पण बोलनो जो यथार्थ निर्णय करे तो तेमां बधुं आवी जाय छे;
निमित्तने लीधे कांई फेरफार के विलक्षणता थाय–ए वात तो कयांय रहेती नथी.
उपदेशमां तो अनेक प्रकारे निमित्तथी कथन आवे, परंतु त्यां सर्वत्र उपादाननी स्वतंत्रताने द्रष्टिमां
राखीने ते कथननो आशय समजवो जोईए. मूळ द्रष्टि ज ज्यां ऊंधी होय त्यां शास्त्रना अर्थ पण ऊंधा ज
भासे. केटलाक लोको मोटा त्यागी के विद्वान गणाता होय छतां