Atmadharma magazine - Ank 119
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः २४०ः आत्मधर्मः ११९
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(१७)
अगुरुलघुत्व शक्ति
वे, आत्मानी अनंतशक्तिओमां ‘अगुरुलघुत्व’ नामनी शक्ति छे तेनुं वर्णन करे छे. षट्स्थानपतित
वृद्धिहानिरूपे परिणमेलो अने स्वरूपप्रतिष्ठित्वना कारणरूप एवो जे विशिष्ट गुण ते–स्वरूप अगुरुलघुत्व शक्ति
छे. आत्मानी पर्यायमां छ प्रकारनी वृद्धि–हानि थवा छतां ते पोताना स्वरूपमां एवो ने एवो टकी रहे छे–एवो
तेनो अगुरुलघुस्वभाव छे. आ सूक्ष्मस्वभाव केवळीगम्य छे.
१. अनंतगुणवृद्धि१. अनंतभागहानि
२. असंख्यगुणवृद्धि२. असंख्यभागहानि
३. संख्यातगुणवृद्धि३. संख्यातभागहानि
४. संख्यातभागवृद्धि४. संख्यातगुणहानि
प. असंख्यभागवृद्धिप. असंख्यातगुणहानि
६. अनंतभागवृद्धि६. अनंतगुणहानि
–उपर प्रमाणे छ प्रकारे वृद्धि तथा छ प्रकारे हानि थाय छे, ते रूपे अगुरुलघुगुणनुं कोई सूक्ष्म परिणमन
थाय छे ते केवळीगम्य छे.
वळी आ अगुरुलघुत्व शक्तिने लीधे द्रव्य पोताना स्वरूपमां ज प्रतिष्ठित रहे छे, वस्तु पोताना
स्वरूपमां ज टकी रहे छे. अनंत गुणनो भंडार आत्मा कदी पण पोताना स्वरूपने छोडीने पररूपे थतो नथी,
तेना अनंत गुणो विखाईने छिन्नभिन्न थई जता नथी. आ अगुरुलघुस्वभाव द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां
व्यापेलो छे एटले द्रव्य पोताना स्वरूपने छोडीने अन्यथा थई जतुं नथी. द्रव्यनो कोई पण गुण पोताना
स्वरूपने छोडीने अन्यगुणरूप थई जतो नथी, तेम ज द्रव्यनी कोई पर्याय बीजी पर्यायरूपे थई जती नथी, सौ
पोतपोताना स्वरूपमां टकी रहे छे. द्रव्य अनादिअनंत पोताना स्वरूपमां टकी रह्युं छे तेनाथी ज तेनी शोभा छे.
पोताना द्रव्यनी त्रिकाळी शोभाने भूलीने, परथी पोतानी शोभा मानीने जीव संसारमां रखडी रह्यो छे. तेने
अहीं आचार्यदेव स्वभावनी शोभा बतावे छेः अरे जीव! रूपाळुं शरीर वगेरे जडमां तो तारी शोभा नथी, अने
जीव संसारमां रखडयो–एवी बंधननी वात करवी तेमां पण तारी शोभा नथी, तारो आत्मा पोताना
एकत्वशुद्धस्वरूपमां प्रतिष्ठित छे तेमां ज तारी त्रिकाळी शोभा छे, अने तेनी ओळखाणथी पर्यायमां शोभा
प्रगटे छे. पर्याय तो नवी प्रगटे छे, अहीं द्रव्यनी वात छे. पोताना स्वरूपमां प्रतिष्ठाथी आत्मा त्रिकाळ शोभी
रह्यो छे–एवो तेनो अगुरुलघुत्व स्वभाव छे. लोको बहारनी प्रतिष्ठा अने शोभाथी मोटाई माने छे, अहीं
आचार्यभगवान आत्मानी स्वरूप–प्रतिष्ठा बतावीने तेनो महिमा समजावे छे; आ समजतां पर्याय पण द्रव्य
तरफ वळीने निर्मळपणे शोभी ऊठे छे. आ सिवाय पैसाथी, शरीरथी, वस्त्रथी के दागीनाथी, अरे! पुण्यथी पण
आत्मानी शोभा मानवी ते खरी शोभा नथी पण कलंक छे. स्वरूपमां प्रतिष्ठित एवो आत्मा पोते स्वयं
शोभायमान छे, कोई बीजा वडे तेनी शोभा नथी. आत्मा परमात्मा थाय एना जेवी कई शोभा! अने जेमांथी
अनंत काळ परमात्मदशा प्रगटया करे–ए द्रव्यसामर्थ्यनी शोभानी तो शी वात!! मोटी शोभा त्रिकाळ द्रव्यमां
छे तेना ज आधारे पर्यायमां शोभा