
संपत्ति नथी. अनंतगुणनुं निधान अंदर त्रिकाळ भर्युं छे ते शाश्वत संपदाने अज्ञानी ओळखतो नथी. जो ते
निधानने ओळखे तो परनुं अभिमान छूटी जाय ने अनादिकाळनी दीनतानो अंत आवीने सिद्धपदनां निधान
प्रगटे. माटे त्रिकाळी शक्तिनी शोभानो महिमा करवो ते ज सम्यग्दर्शननो अने सिद्धपदनो उपाय छे.
अचिंत्य सामर्थ्यवाळुं ने विकल्प विनानुं एवुं पूर्ण शुद्धस्वभावरूप जे केवळज्ञान तेनो महिमा केटलो? अने जे
द्रव्यना आश्रये ते केवळज्ञान प्रगटयुं तेना अपार सामर्थ्यना महिमानी तो शुं वात!! केवळज्ञान थया पछी
एवी ने एवी पर्याय समये समये नवी नवी थया करे छे. केवळज्ञाननी एक पर्याय करतां बीजी पर्यायमां
जाणवानुं सामर्थ्य हीणुं के अधिक थतुं नथी, सामर्थ्य एटलुं ने एटलुं रहे छे, छतां तेमां पण अगुरुलघुगुणनुं
सूक्ष्म परिणमन तो समये समये थया ज करे छे–एवो ज कोई अचिंत्यस्वभाव छे, ते केवळीगम्य छे. जुओ, आ
केवळज्ञाननी गंभीरता! छद्मस्थना ज्ञानमां जो बधुं ज जणाई जाय तो पछी केवळज्ञाननुं माहात्म्य कयां रह्युं?
केवळज्ञानमां जेटलुं जणाय ते बधुंय छद्मस्थ न जाणी शके, परंतु पोताना आत्महितने माटे प्रयोजनभूत जे होय
तेने तो सम्यग्ज्ञानी छद्मस्थ पण बराबर निःसंदेहपणे जाणी शके छे. आत्माना अगुरुलघुस्वभावनुं कोई एवुं
अचिंत्य सूक्ष्म परिणमन छे ते केवळीगम्य छे.
आत्मानी साची समजण कदी करी नथी. आत्मानी साची समजण
अपूर्व छे, जो एक समय पण आत्माने ओळखे तो मुक्तिनो रस्तो
थया वगर रहे नहीं. आज समजे,....काले समजे के बे–पांच भवे
समजे,–पण आत्माने समज्ये ज भवथी छूटको थाय तेम छे, आत्माने
समज्या वगर कदी भवथी निवेडा आवे तेम नथी.
आ पण चैतन्य भगवान आत्मानी वार्ता ज छे; माटे आ समजवामां होंश
अने उत्साह आववो जोईए; आत्मानी साची समजण पूर्वे अनंत काळमां
करी नथी तेथी शरूआतमां नवुं लागे पण रुचि अने उल्लासथी समजवा
मांगे तो बधुं समजाय तेम छे–मारे हवे तो मारा आत्मानुं हित करवुं छे.
एम जेने अंतरमां दरकार जागे तेनी बुद्धि आत्मानी समजण तरफ वळ्या
विना रहे नहि.