त्यारपछीनो बीजो भाग अहीं आप्यो छे. वीर सं. २४७प जेठ सुद ४ लाठी.)
छे.....तमे मुक्तिने लायक छो....आ मोक्षना मांडवा नंखाया छे, तमे
पण तमारी परमात्मदशा प्राप्त करवा माटे आ मोक्षना मांडवे
आवो! अंर्तअवलोकन वडे तमारा आत्माने ओळखीने तेनो
महिमा करो तो अल्पकाळमां सिद्धदशा प्रगटे.’
ज...वाणी काने पडतां ज पात्र श्रोताने तो एम थाय के अहो! मने
आवी अपूर्व वाणी मळी छे तो हुं नक्की मारी पात्रताथी समजीने
अल्पकाळमां मुक्त थईश....आ प्रमाणे जे ऊंडेथी हा पाडीने यथार्थ
वात समजी जाय तेवा ज श्रोता अहीं लीधा छे...एवो श्रोता धन्य
छे, तेनुं जरूर कल्याण थई जाय छे.
जोईती होय, तो वस्तुस्वरूपनी स्वतंत्रता जाणीने आत्मस्वभावनो आश्रय करो.
काळलब्धिनुं नाम लईने पराश्रयमां अटकी जाय छे, परंतु काळ तो परवस्तु छे, खरेखर आत्माना स्वभाव
तरफना पुरुषार्थनी दशा ते ज आत्मानी स्वकाळलब्धि छे. त्रिकाळी सत् अने समय समयनुं सत् स्वतंत्र छे;
बधा पदार्थो अने तेमनी वर्तमान पर्याय स्वतंत्र छे. आत्मा जडकर्मने लीधे रखडतो नथी अने जडकर्म आत्माने
विकार करावतुं नथी. जो जीवनी पर्यायनो कर्ता बीजो कहो तो जीवनी स्वतंत्रता ज क्यां रही? आ जीवनो कर्ता
बीजो छे एम कहो तो जीववस्तु ज स्वतंत्र सिद्ध थती नथी; जेनो कर्ता होय ते वस्तु कृत्रिम करे, त्रिकाळी
वस्तुनो कोई कर्ता न होय. अने जो त्रिकाळी वस्तुनो कोई कर्ता नथी तो तेना वर्तमाननो पण कर्ता कोण होय?
–कोई कर्ता नथी. जेम