Atmadharma magazine - Ank 119
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः २४७९ः २२९ः
दिव्यनाद वच्चे आवी स्वतंत्रतानो ढंढेरो भगवानना उपदेशमां आव्यो.
* अमोघ वाणी *
श्री तीर्थंकरभगवानना दिव्यध्वनिमां ज्यारे आवो स्वतंत्र वस्तुस्वभावनो उपदेश थयो त्यारे घणा पात्र
जीवो धर्म पाम्या; भगवाननी वाणीनो पवित्र धोध झीलीने अनेक जीवो पावन थया. भगवाननी अपूर्व वाणी
काने पडतां ज कोई जीवो तो अंदरमां उतरीने आत्मभान पाम्या, कोई जीवोए श्रावकदशा प्रगट करी अने कोई
जीवो तो अंतरमां एकाग्र थईने मुनि थया, तथा कोई स्त्रीओ अर्जिका थई. ए प्रमाणे भगवाननी छत्रछायामां
मुनि, अर्जिका, श्रावक अने श्राविका एम चारे तीर्थ स्थपाया. तीर्थंकरभगवाननी अमोघ देशना नीकळे अने ते
वखते धर्म पामनारा जीवो न होय–एम कदी बने नहि. भगवाननी देशना वखते ते देशना झीलीने धर्मवृद्धि
करनारा पात्र जीवो होय ज. कोई एम कहे के ‘वैशाख सुद दसमे महावीर भगवानने केवळज्ञान थतां
भगवाननी वाणी नीकळी, पण ते वखते कोई जीवो धर्म न पाम्या तेथी भगवाननी पहेली देशना निष्फळ
गई’–तो ते वात यथार्थ नथी; अमुक वखत सुधी तीर्थंकर भगवाननी वाणी न छूटे ते वात जुदी छे, परंतु
वाणी छूटे अने निष्फळ जाय एम तो कदी बने ज नहि. भगवाननी दिव्यवाणी तो ‘अमोघ वाणी’ छे, ते कदी
खाली जाय नहीं. वैशाख सुद दसमे महावीर भगवानने केवळज्ञान थयुं पण वाणी न छूटी, वाणी तो छांसठ
दिवस पछी अषाढ वद एकमे छूटी. पहेलां अहीं वाणीनी लायकात न हती तेम ज सामे पण वाणी झीलनार
उत्कृष्ट पात्र जीव कोई न हता. ज्यां अहीं वाणी छूटवानो काळ आव्यो त्यां सामे गौतम– स्वामीनी पण
गणधरपद माटे तैयारी थई गई;–बंनेनो सहज मेळ थई जाय छे. भगवाननी वाणी नीकळे अने ते झीलीने
धर्म समजनार पात्र जीव कोई न होय–एम बने नहि, एटले के त्यां निमित्त–नैमित्तिकनो मेळ कदी तूटे नहीं.
आम छतां, भगवाननी वाणीने लीधे सामो धर्म समजी जाय छे–एवी पराधीनता पण नथी.
भगवान पोते पूर्वे ज्यारे साधक भूमिकामां हता त्यारे पोतामां धर्मवृद्धिना विकल्पथी तीर्थंकर नामकर्म
बंधायुं अने तेना उदयथी दिव्यवाणी छूटी; तो ते वाणी वखते तेने झीलीने धर्मनी वृद्धि करनारा जीवो पण जरूर
होय ज छे, न होय एम बने नहि.
–एज प्रमाणे, अहीं भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव पोते कहे छे के–जगतना जीवोने सत्य समजाववानो
विकल्प ऊठतां आ काळे अमारी वाणी रचाय छे, तो ते वाणी झीलीने सत् समजनारा पण आ काळे न होय–
एम बने नहि. जुओ, पांचमी गाथामां तेओश्री कहे छे के–
तं एयत्तविहत्तं दाएहं अप्पणो सविहवेण।
जदि दाएज्ज पमाणं चुक्किज्ज छलं ण धेत्तव्वं।।
–आ समयसारमां हुं मारा आत्माना निजवैभवथी शुद्ध आत्मानुं स्वरूप दर्शावुं छे. ‘हुं देखाडुं छुं ने तमे
प्रमाण करजो’ एम कह्युं तो त्यां प्रमाण करनारा जीवो न होय एम बने नहि. शुद्ध आत्माने कहेनारी अमारी
वाणी नीकळी ने सामे शुद्धात्माने समजनारा न होय एम त्रणकाळमां न बने. अमे आत्मानी जे वात कहेवा
मागीए छीए ते वातने झीलनारा पात्र जीवो पण छे तेने अमे कहीए छीए के ‘तुं तारा स्वानुभवथी प्रमाण
करजे.’ सामे प्रमाण करनारा पात्र जीवोने भाळीने ए वाणी नीकळी छे. ‘हुं कहुं छुं माटे तुं मानी लेजे.’ एम
आचार्यदेव नथी कहेता, पण हुं मारा आत्मवैभवथी कहुं छुं ने तुं तारा स्वानुभवथी प्रमाण करजे–एम कह्युं छे
एटले सामा उपर जवाबदारी नांखी छे, तेमां प्रमाण करवानी लायकात पण आवी जाय छे.
अहीं उपादान निमित्तनी अपूर्व संधिथी आचार्यदेव कहे छे के अमारी शुद्धात्माने दर्शावनारी वाणीने जे
जीवे निमित्त तरीके स्वीकारी छे ते जीवना उपादानमां पण शुद्धात्माने समजवानी पात्रता छे. ‘अरे! आ दुषम
पंचमकाळमां मारी आवा शुद्धात्माने कहेनारी वात प्रमाण करनारा नहि मळे’–एम आचार्यदेव नथी कहेता,
पण ‘हुं दर्शावुं ते प्रमाण करजो’ एम कहीने आचार्यदेव एम कहे छे के ‘अमे सीधो तीर्थंकर भगवाननो दिव्य
उपदेश सांभळीने झील्यो छे, तो भगवाननी जेम अमारा उपदेशने झीलीने समजनारा भरतक्षेत्रमां न होय
एम बने नहि. जेम भगवाननी अमोघ वाणी नीकळे अने ते समजनारा न होय एम बने नहि तेम अमारो
आ शुद्धात्मानो उपदेश होय अने ते समजनारा न होय–