Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म: १२०: : २५३ :
राग थाय छे–एम मानीने ते राग करे छे एटले पोताना स्वभावनुं बहुमान ते चूकी जाय छे, तेने स्वभावद्रष्टि
नहि होवाथी ते रागने ज पोतानुं स्वरूप मानीने तेनो कर्ता थाय छे, तेम ज ते रागने धर्मनुं साधन माने छे, –
एने भगवाने मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे. देव–गुरु–शास्त्र तो जगतमां सदाय छे, जो तेमने लीधे राग थतो होय तो
तो राग सदा थया ज करे! परने लीधे मने राग थाय छे–एम जेणे मान्युं तेना अभिप्रायमां राग सदाय रह्या
ज करे छे, परथी पाछो खसीने स्वमां ठरवानुं तेने रहेतुं नथी, एटले के तेने धर्म थतो नथी. राग तो धर्मीनेय
थाय, परंतु ते जाणे छे के आ राग मारी पर्यायनी कचाशथी थाय छे, मारी पर्यायमांथी हजी राग थवानी
लायकात सर्वथा टळी नथी तेथी राग थाय छे; परने लीधे राग थतो नथी तेम ज मारा स्वभावमां पण राग छे
नहीं; मारुं चिदानंदस्वरूप रागरहित छे तेमां एकाग्रताथी पर्यायनी सबळाई थतां ते राग टळी जशे. आ रीते
धर्मीने पोताना परिपूर्ण स्वभावनी ज भावना छे, परनी के रागनी भावना नथी. –आम धर्मी अने अधर्मी
जीवनी मान्यतामां मोटो फेर छे.
• कल्यणन रस्त •
शांतिनाथ भगवाननो दिव्यध्वनि कहे छे के हे भाई! तुं भावना तो स्वभावनी कर! स्वभावनी
भावना करवा माटे पहेलांं यथार्थ वस्तुस्थिति नक्की कर. यथार्थ वस्तुने ओळख्या वगर मिथ्यात्वादिक भावोने
ज अनादिकाळथी भाव्या छे, पण चैतन्यस्वभावनी सन्मुख थईने सम्यग्दर्शनादि भावोने कदी सेव्या नथी;
एकवार पण जो सम्यग्दर्शनादि भावोने सेवे तो अल्पकाळमां मोक्ष थया विना रहे नहि. परद्रव्य मने लाभ करे
अथवा तो परद्रव्य मारा रागनुं कारण छे अने रागथी मने धर्म थशे–एवा प्रकारनी मान्यता ते बधी
मिथ्यात्वभावनी ज भावना छे. जो खरेखर परवस्तु ज तारा रागनुं कारण होय तो तो परवस्तु ज रागनी
खाण थई; अने एम थतां तो, परवस्तु त्रिकाळ होवाथी पण राग त्रणेकाळ थया ज करशे, एटले राग टळीने
कल्याण थवानो तो प्रसंग ज नहि रहे! –माटे तारो ए अभिप्राय छोड, ने परना कारणे राग थतो नथी पण
पोतानी पर्यायना अपराधथी ज राग थाय छे एम समज. –वळी जो रागथी धर्म थाय तो तो आत्मा
रागस्वरूप ज ठर्यो एटले ते मान्यतामां पण राग टाळीने कल्याण थवानो प्रसंग रहेतो नथी. –माटे हे जीव!
रागथी धर्म थवानी बुद्धि पण छोड ने धु्रव चैतन्यस्वभावनी श्रद्धा कर; चैतन्यस्वभावना अवलंबने जे
सम्यग्दर्शनादि भावो प्रगटे ते ज लाभनुं कारण छे अने ते ज धर्म छे–एम तुं समज. –आ ज तारा कल्याणनो
रस्तो छे.
• रागनुं कारण कोण? •
हे जीवो! तमारो मूळ चैतन्यस्वभाव सिद्धभगवान जेवो शुद्ध छे, ते स्वभाव रागनुं कारण नथी, तेम
ज कोई परवस्तु पण रागनुं कारण नथी. –आवुं वस्तुस्वरूप समजीने चैतन्यस्वभावनी भावना करो. आ
समज्या सिवाय पंडिताई के त्यागीपणुं ते बधुं ‘रणमां पोक’ समान मिथ्या छे, तेनाथी कदाच पुण्य बंधाय पण
तेमां अत्मानुं शरण नथी, तेनाथी आत्माने शांति के कल्याण थतुं नथी.
ज्ञानी–धर्मात्माने पर्यायनी नबळाईथी अल्प रागादि थाय छे पण चैतन्यस्वभावनी भावना छोडीने ते
रागनी भावना कदी पण करता नथी एटले के ते पर्यायना रागने द्रव्यस्वभावमां स्वीकारतां नथी, तेम ज
परवस्तुने ते रागनुं कारण मानता नथी. –आम होवाथी ज्ञानीना रागनी पाछळ अभिप्रायनुं जोर तूटी गयुं छे
एटले ते राग लूलो थई गयो छे, चैतन्यनी अधिकतामां कदी रागनी अधिकता थती नथी. जे जीव रागना
यथार्थ कारणने समजतो नथी ने परद्रव्यने रागनुं कारण माने छे ते अज्ञानीने तो रागनी पाछळ ऊंधा
अभिप्रायनुं जोर होवाथी अनंतो राग छे, चैतन्यनी अधिकतानुं तेने भान नथी. यथार्थ वस्तुस्थितिना भान
वगर अनंतो राग–द्वेष टळी शके ज नहि.
सर्वज्ञभगवाननी भक्तिनो, जिनमंदिर बंधाववानो वगेरे प्रकारनो शुभराग थाय ते जुदी वात छे,
परंतु त्यां समजवुं जोईए के आ रागनुं कारण खरेखर सर्वज्ञ–भगवान के जिनमंदिर वगेरे परद्रव्य नथी. जो
खरेखर ते ज रागनुं कारण होय तो बधाय जीवोने ते प्रकारनो राग थवो जोईए अने केवळीने पण राग थवो
जोईए. –पण एम बनतुं नथी, माटे परद्रव्य रागनुं कारण नथी पण जे जीवोनी पर्यायमां ते प्रकारनो राग
थवानी लायकात छे तेमने ज तेवो राग थाय छे ने तेवा राग वखते ते निमित्तनो उपर लक्ष जाय छे. आ रीते
पोतानी पर्यायनी लायकात सिवाय बीजुं कोई कारण छे ज नहि,