नहि होवाथी ते रागने ज पोतानुं स्वरूप मानीने तेनो कर्ता थाय छे, तेम ज ते रागने धर्मनुं साधन माने छे, –
एने भगवाने मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे. देव–गुरु–शास्त्र तो जगतमां सदाय छे, जो तेमने लीधे राग थतो होय तो
तो राग सदा थया ज करे! परने लीधे मने राग थाय छे–एम जेणे मान्युं तेना अभिप्रायमां राग सदाय रह्या
थाय, परंतु ते जाणे छे के आ राग मारी पर्यायनी कचाशथी थाय छे, मारी पर्यायमांथी हजी राग थवानी
लायकात सर्वथा टळी नथी तेथी राग थाय छे; परने लीधे राग थतो नथी तेम ज मारा स्वभावमां पण राग छे
नहीं; मारुं चिदानंदस्वरूप रागरहित छे तेमां एकाग्रताथी पर्यायनी सबळाई थतां ते राग टळी जशे. आ रीते
धर्मीने पोताना परिपूर्ण स्वभावनी ज भावना छे, परनी के रागनी भावना नथी. –आम धर्मी अने अधर्मी
जीवनी मान्यतामां मोटो फेर छे.
ज अनादिकाळथी भाव्या छे, पण चैतन्यस्वभावनी सन्मुख थईने सम्यग्दर्शनादि भावोने कदी सेव्या नथी;
एकवार पण जो सम्यग्दर्शनादि भावोने सेवे तो अल्पकाळमां मोक्ष थया विना रहे नहि. परद्रव्य मने लाभ करे
अथवा तो परद्रव्य मारा रागनुं कारण छे अने रागथी मने धर्म थशे–एवा प्रकारनी मान्यता ते बधी
मिथ्यात्वभावनी ज भावना छे. जो खरेखर परवस्तु ज तारा रागनुं कारण होय तो तो परवस्तु ज रागनी
कल्याण थवानो तो प्रसंग ज नहि रहे! –माटे तारो ए अभिप्राय छोड, ने परना कारणे राग थतो नथी पण
पोतानी पर्यायना अपराधथी ज राग थाय छे एम समज. –वळी जो रागथी धर्म थाय तो तो आत्मा
रागस्वरूप ज ठर्यो एटले ते मान्यतामां पण राग टाळीने कल्याण थवानो प्रसंग रहेतो नथी. –माटे हे जीव!
रागथी धर्म थवानी बुद्धि पण छोड ने धु्रव चैतन्यस्वभावनी श्रद्धा कर; चैतन्यस्वभावना अवलंबने जे
सम्यग्दर्शनादि भावो प्रगटे ते ज लाभनुं कारण छे अने ते ज धर्म छे–एम तुं समज. –आ ज तारा कल्याणनो
रस्तो छे.
समज्या सिवाय पंडिताई के त्यागीपणुं ते बधुं ‘रणमां पोक’ समान मिथ्या छे, तेनाथी कदाच पुण्य बंधाय पण
तेमां अत्मानुं शरण नथी, तेनाथी आत्माने शांति के कल्याण थतुं नथी.
परवस्तुने ते रागनुं कारण मानता नथी. –आम होवाथी ज्ञानीना रागनी पाछळ अभिप्रायनुं जोर तूटी गयुं छे
एटले ते राग लूलो थई गयो छे, चैतन्यनी अधिकतामां कदी रागनी अधिकता थती नथी. जे जीव रागना
यथार्थ कारणने समजतो नथी ने परद्रव्यने रागनुं कारण माने छे ते अज्ञानीने तो रागनी पाछळ ऊंधा
अभिप्रायनुं जोर होवाथी अनंतो राग छे, चैतन्यनी अधिकतानुं तेने भान नथी. यथार्थ वस्तुस्थितिना भान
खरेखर ते ज रागनुं कारण होय तो बधाय जीवोने ते प्रकारनो राग थवो जोईए अने केवळीने पण राग थवो
जोईए. –पण एम बनतुं नथी, माटे परद्रव्य रागनुं कारण नथी पण जे जीवोनी पर्यायमां ते प्रकारनो राग
थवानी लायकात छे तेमने ज तेवो राग थाय छे ने तेवा राग वखते ते निमित्तनो उपर लक्ष जाय छे. आ रीते