Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: २५४ : : आसो: २४७९
बीजा जे कोई कारणो कहेवाता होय ते बधाय मात्र उपचारथी ज छे–एम समजवुं.
‘श्री महावीर भगवाननी हयातीने कारणे गौतमस्वामीने राग हतो, ने भगवाननुं निर्वाण थतां ते
राग टळ्‌यो’ –ए मान्यता अज्ञानीनी छे. खरेखर गौतमस्वामीने महावीर भगवानना कारणे राग न हतो पण
तेमनी पोतानी तेटली नबळाईथी ज ते राग रह्यो हतो ते तेमनी सबळाईथी ते राग टळ्‌यो. वळी, पोताना
निर्वाण वखते भगवाने गौतमस्वामीने दूर मोकल्या ने पाछळथी गौतमस्वामीए विलाप कर्यो–ए वात पण
कल्पित अने जूठ्ठी छे. अहो! गौतमगणधर ते कोण छे? –ए तो केवळज्ञान लेवानी तैयारीमां झूलता महान
संत छे, एने ते वळी रुदन होय? अनंत आनंदनुं धाम एवी मुक्तिने साधनारा मुनिवरो परम प्रसन्न होय छे,
तेओने कदी रुदन होतुं नथी.
• दिव्यध्वनिमां मुक्तिपंथनो ढंढेरो •
दुदुंभीना नाद वच्चे भगवानना दिव्यध्वनिमां एवी घोषणा थई के जगतमां दरेक द्रव्य स्वतंत्र छे, तेना गुणो
स्वतंत्र छे ने तेनी पर्यायो पण स्वतंत्र छे. द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता समजीने, पर्याय अंतर्मुख थईने पोताना
द्रव्यनो आश्रय ल्ये ते ज मुक्तिनो पंथ छे, ए सिवाय क्यांय बहारना आश्रये मुक्तिनो पंथ नथी. सर्वे भगवंतो आ
रीते ज मुक्ति पाम्या अने आवो ज मोक्षनो मार्ग तेमणे जगतने उपदेश्यो. जेम भगवान मोक्ष पाम्या तेम तेमनी
वाणीमां कहेला आ मार्गने समजीने जगतना जीवो मोक्ष न पामे एम बने नहीं. द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता
समजतां निर्विकारी द्रव्य–गुणना–आश्रये पर्यायनो विकार टळीने निर्मळानंदी मुक्तदशा थई जाय छे. जे समजीने
स्वाश्रय करे ते जरूर मोक्ष पामे. जे समजे तेनी बलिहारी छे... न समजे तेवानी अहीं वात नथी.
दिव्यध्वनि ए मुक्त जीवनी वाणी छे ने ते दिव्यध्वनिनुं फळ मुक्ति छे. समवसरणमां भगवाननो
उपदेश सांभळीने ते काळे घणा जीवो मुनि थया... श्रावक थया... धर्म पाम्या. अत्यारे पण ते वाणीना प्रवाहथी
जीवो धर्म पामे छे ने भविष्यमां पण अनेक जीवो धर्म पामशे. आ रीते शांतिनाथ भगवाने बतावेलो शांतिनो
मार्ग शाश्वत छे.
“श्रमणो, जिनो, तीर्थंकरो आ रीत सेवी मार्गने सिद्धि वर्या; नमुं तेमने, निर्वाणना ते मागने.”
कल्याण माटे क्यां जवुं?
हे भाई! कोई परनी सामे जोये तो तारुं
कल्याण थाय तेम नथी, केमके तारुं कल्याण
परमां नथी; अने तारा आत्मामां पण राग
सामे के भेदनी सामे जोये तारुं कल्याण नहि
थाय. आखो आत्मा एक समयमां परिपूर्ण जेवो
छे तेवो अखंड प्रतीतमां लईने तेनी सन्मुख थवुं
ते ज कल्याणनुं मूळ छे. तारी शुद्धनयरूपी
आंखथी अंतरमां भगवान कारणपरमात्माने
देखवो अने तेनी सन्मुख थईने एकाग्रता करवी
ते ज कल्याण छे.