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अहो सर्वज्ञतानो महिमा!
[पू. गुरुदेवना प्रवचनोमांथी तारवेलुं]
• सर्वज्ञदेवने नमस्कार हो.
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• धर्मनुं मूळ सर्वज्ञ छे.
मोक्षमार्गना मूळउपदेशक श्री सर्वज्ञदेव छे; तेथी जेने धर्म करवो होय तेणे सर्वज्ञने ओळखवा जोईए.
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• निश्चयथी जेवो सर्वज्ञभगवाननो स्वभाव छे तेवो ज आ आत्मानो स्वभाव छे; तेथी सवर्ज्ञने
ओळखतां पोतानो आत्मा ओळखाय छे; जे जीव सर्वज्ञने न ओळखे ते पोताना आत्माने पण
ओळखतो नथी.
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• समस्त पदार्थोने जाणवाना सामर्थ्यरूप सर्वज्ञत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे, पण परमां कांई फेरफार
करे एवी शक्ति आत्मामां कदी नथी.
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• अहो! समस्त पदार्थोने जाणवानी ताकात आत्मामां सदाय पडी छे, तेनी प्रतीत करनार जीव धर्मी छे.
• ते धर्मी जीव जाणे छे के हुं मारी ज्ञानक्रियानो स्वामी छुं पण परनी क्रियानो स्वामी हुं नथी.
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• आत्मामां सर्वज्ञशक्ति छे, ते शक्तिनो विकास थतां पोतामां सर्वज्ञपणुं प्रगटे; पण आत्मानी
शक्तिनो विकास थतां ते परनुं कांई करी दे–एम बनतुं नथी.
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• साधकने पर्यायमां सर्वज्ञता प्रगटी न होवा छतां ते पोतानी सर्वज्ञशक्तिनी प्रतीत करे छे;
• ते प्रतीत पर्यायनी सामे जोईने करी नथी पण स्वभाव सामे जोईने करी छे. वर्तमानपर्याय तो पोते
ज अल्पज्ञ छे, ते अल्पज्ञताना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत केम थाय?
• अल्पज्ञपर्याय वडे सर्वज्ञतानी प्रतीत थाय, पण अल्पज्ञताना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत न थाय;
त्रिकाळी स्वभावना आश्रये ज सर्वज्ञतानी प्रतीत थाय छे.
• प्रतीत करनारी तो पर्याय छे, पण तेने आश्रय द्रव्यनो छे.
• द्रव्यना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत करनार जीवने सर्वज्ञतारूपे परिणमन थया वगर रहे नहि.
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• अल्पज्ञपर्याय वखते पण पोतामां सर्वज्ञत्वशक्ति होवानो जेणे निर्णय कर्यो तेनी रुचिनुं जोर
अल्पज्ञपर्याय उपरथी खसीने अखंड स्वभावमां वळी गयुं छे, एटले ते जीव ‘सर्वज्ञ भगवाननो
नंदन’ थयो छे.
• हजी पोताने सर्वज्ञपणुं प्रगट्या पहेलांं पण ‘मारो आत्मा त्रणेकाळे सर्वज्ञतापणे परिणमवानी
ताकातवाळो छे’ –एम जेणे स्वसन्मुख थईने नक्की कर्युं ते जीव अल्पज्ञताने, रागने के परने पोतानुं
स्वरूप न माने, पोताना पूर्ण ज्ञानस्वरूप उपर ज तेनी द्रष्टि होय.
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