Atmadharma magazine - Ank 120
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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अम घेर प्रभुजी पधार्या
श्रावण वद दसमना शुभ दिवसे वांकानेर शहेरमां भगवान श्री
शांतिनाथ प्रभुना वीतरागी जिनबिंब पधार्या छे. प्रभुजी पधार्या ते
प्रसंगे त्यांना भक्तजनोए उल्लासपूर्वक प्रभुजीनुं स्वागत कर्युं हतुं.
(सोनगढमां मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे पूज्य गुरुदेवश्रीना
पावन हस्ते आ जिनबिंब प्रतिष्ठित थया हता.) वांकानेरना आंगणे
प्रभुजी पधार्या ए त्यांना मुमुक्षुओनां धनभाग्य छे.
अम घेर प्रभुजी पधार्या
श्रावण सुद बीजना शुभ दिवसे, बोटाद शहेरमां भगवान श्री
श्रेयांसनाथ प्रभु (मूळनायक) तथा भगवान श्री शीतलनाथ प्रभुनां
वीतरागी जिनबिंब पधार्या छे. प्रभुजी पधार्या ते प्रसंगे त्यांना
भक्तजनोए उल्लासपूर्वक प्रभुजीनुं स्वागत कर्युं हतुं. मूळनायक
श्रेयांसनाथ प्रभुनी मुद्रा अतिशय भव्य छे. आ बने जिनबिंबोनी
प्रतिष्ठा सोनगढमां मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे पूज्य
गुरुदेवश्रीना पावन हस्ते थई हती.) बोटादना आंगणे प्रभुजी पधार्या
ए त्यांना मुमुक्षुओनां धनभाग्य छे.
आत्मधर्मना ग्राहकोने
आ अंकनी साथे साथे आत्मधर्मनुं दसमुं वर्ष पूरुं थाय छे अने
सर्वे ग्राहकोनुं लवाजम पूरुं थाय छे. कारतक सुद एकम सुधीमां नवा
वर्षनुं लवाजम तुरत मोकलावी आपीने आत्मधर्मनी व्यवस्थामां सहकार
आपवा सर्वे ग्राहकोने विनंति छे. वी. पी. करवाथी अनेक प्रकारनी
तकलीफो पडे छे. पोते ग्राहक तरीके चालु रहीने तेम ज बीजा जिज्ञासुओने
नवा ग्राहक बनावीने आत्मधर्मना प्रचारमां सहाय करवानी दरेक जिज्ञासु
वाचकनी फरज छे. लवाजम नीचेना सरनामे मोकलवुं–
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)