अरिहंत भगवानने ओळखो
[साचा जैन बनवा माटे अरिहंत भगवाननुं स्वरूप अवश्य ओळखवुं जोईए]
(प्रवचनसार गा. ८० उपर पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोमांथी तारवेलुं)
– आ लेखनो बीजो भाग आवता अंकमां वांचो –
*श्री अरिहंत भगवानने नमस्कार हो.
*
*अरिहंत भगवान आपणा इष्टदेव छे, तेथी तेमनुं स्वरूप बराबर ओळखवुं जोईए.
*
*अरिहंत भगवाननुं स्वरूप बराबर ओळखतां आत्मानुं साचुं स्वरूप ओळखाय छे, केम
के आपणा आत्मानुं स्वरूप पण खरेखर अरिहंत भगवान जेवुं ज छे.
*
*अनादि काळथी आत्मामां जे मिथ्यात्वभाव छे ते अधर्म छे. आ आत्मानो स्वभाव
अरिहंत भगवान जेवो ज, पुण्य–पाप रहित छे, तेने चूकीने पुण्य–पापने ज पोतानुं
स्वरूप मानवुं ते मिथ्यात्व छे. ते मिथ्यात्वनो नाश केम थाय? अने सम्यक्त्व केम प्रगटे?
तेनो उपाय कहे छे.
–जे कोई जीव अरिहंत भगवानना आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायने बराबर जाणे
छे ते जीव खरेखर पोताना आत्माने जाणे छे ने तेनो मिथ्यात्वरूप भ्रम चोक्कस नाश
पामे छे अने शुद्ध सम्यक्त्व प्रगटे छे.–अनादिना अधर्मनो नाश करीने अपूर्व धर्म प्रगट
करवानो आ उपाय छे.
*
*निश्चयथी अरिहंत भगवाननो अने आ आत्मानो स्वभाव सरखो छे, ते स्वभावने
जाणवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे, ते अपूर्व धर्म छे. सम्यग्दर्शन वगर त्रणकाळमां धर्म होतो नथी.
*
*जे जीव अरिहंत भगवाननुं स्वरूप ओळखे छे ते जीव स्वभावना आंगणे आव्यो छे; जे
जीव अरिहंत भगवानने ओळखतो नथी अने शरीरनी क्रियाथी के रागथी धर्म माने छे
ते तो स्वभावना आंगणे पण आव्यो नथी.
*
*अरिहंत भगवान जेवा पोताना आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायने जे जीव जाणतो नथी ते ज
कारतकः २४८०ः १पः