भगवान जेवा पोताना आत्माने ओळखे छे, तेने भेदज्ञान थई जाय छे एटले ते
रागादिने पोतानुं खरुं स्वरूप मानतो नथी तेम ज शरीरादिनी क्रियाने पोतानी मानतो
नथी; राग रहित चैतन्यभावे तेनुं अंर्तपरिणमन थई जाय छे.
बंनेनी एक ज नात छे. जेवो मारो स्वभाव छे तेवो तारो स्वभाव छे. अमने
केवळज्ञानदशा प्रगटी ते बहारथी नथी प्रगटी पण आत्मामां शक्ति छे तेमांथी ज प्रगटी
छे; तारा आत्मामां पण मारा जेवी ज परिपूर्ण शक्ति छे. हे जीव! तारा आत्मानी
शक्तिने ओळख तो तारो मोह नाश थया वगर रहेशे नहीं.
तेमांथी मोर थाय छे, तेम आत्मामां आनंदमय केवळज्ञान प्रगटवानी शक्ति छे, तेमांथी
केवळज्ञान खीले छे.–जे आवी अंतरशक्तिनी प्रतीत करे तेने सम्यग्दर्शन थईने
अल्पकाळमां केवळज्ञान–कळा खीली जाय छे.
सुकाई जाय छे ने मोर थतो नथी; तेम जे जीव आत्माना स्वभावसामर्थ्यनो विश्वास करे
नहि, अने ‘अत्यारे आत्मा भगवान जेवो केम होय?–एम स्वभावमां शंका करे तो तेने
सम्यग्दर्शन थतुं नथी अने मोह टळतो नथी.
देखातो पण ज्ञानद्वारा ज ख्यालमां आवे छे; तेम आत्मामां केवळज्ञान थवानो जे
स्वभाव छे ते ईन्द्रियोद्वारा मनद्वारा के रागद्वारा पण जणातो नथी परंतु ते इन्द्रिय
वगेरेनुं अवलंबन छोडीने स्वभाव तरफ वळेला अतीन्द्रियज्ञानथी ज ते जणाय छे.
केवळज्ञान–ज्योति प्रगटवानुं सामर्थ्य छे. जेम दीवासळीमां भडको थवानुं सामर्थ्य छे ते
आंखथी नथी देखातुं पण ज्ञानथी ज जणाय छे तेम आत्मामां केवळज्ञान थवानुं
स्वभाव–सामर्थ्य छे ते पण अतीन्द्रियज्ञान द्वारा ज जणाय छे.
धर्म थाय. आवा स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत वगर गमे तेटला शास्त्रो भणी जाय, व्रत–
उपवास करे, पडिमा ल्ये, पूजा–भक्ति करे के द्रव्यलिंगी मुनि थाय–गमे तेटलुं करे तोपण
ते धर्म न गणाय अने ते करतां करतां धर्म थाय नहि.