Atmadharma magazine - Ank 121
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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आ त्म ध र्म
अगियारमा वर्षना प्रारंभे.....
* भगवान श्री सीमंधरादि पंच परमेष्ठी भगवंतोने, परम पूज्य श्री कहान गुरुदेवने, अने भगवती
जिनवाणी–माताने अत्यंत भक्तिपूर्वक आ नूतनवर्षना प्रारंभमां नमस्कार हो......
* आजे आपणुं “आत्मधर्म” मासिक पहेलो दसको पूरो करीने, नवीन उत्साह अने नवीन
भावनाओ साथे बीजा दसकामां प्रवेश करे छे.
* आत्मधर्मनी संपादन–शैली बाबतमां के आत्मधर्मना विकास बाबतमां कांई नवीन सूचना होय
तो जिज्ञासु पाठको पोतानी सूचना मोकले.
* दरेक गामना मुमुक्षु–मंडळने खास सूचना छे के पोतपोताना गाममां चालती धार्मिक प्रवृत्ति
वगेरेना जाणवायोग्य समाचारो आत्मधर्ममां छापवा माटे दर महिनानी पूनम सुधीमां सोनगढ मोकली
आपे.
*आ “आत्मधर्म” मासिक दर महिने सुद बीजे प्रसिद्ध थाय छे. तेनुं वार्षिक लवाजम रूा. ३–०० छे.
आत्मधर्म हिंदी भाषामां पण बहार पडे छे. गुजराती आत्मधर्ममां छपायेला लेखोनुं ज हिंदी भाषांतर करीने
ते हिंदी आत्मधर्ममां छपाय छे. हिंदी आत्मधर्मनुं वार्षिक लवाजम पण रूा. ३–०० छे.
* आत्मधर्मनुं प्रिन्टिींग अने प्रकाशन वल्लभविद्यानगर (गुजरात) थी थाय छे. परंतु तेनुं संपादन
अने व्यवस्था सोनगढथी थाय छे. पत्र व्यवहार नीचे प्रमाणे सोनगढना सरनामे करवो–
“संपादक–आत्मधर्म”
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर सोनगढ (सौराष्ट्र)
* पहेला दसका दरमियान आत्मधर्मनी ग्राहक संख्या तद्न शरूआतमां ४०० हती अने वधीने त्रीजा
वर्षे लगभग २२०० थई हती. हवेना वर्षमां ग्राहकोनी संख्या एथी पण वधे एवी भावना छे. ए
भावनाने मूर्त स्वरूप आपवा माटे, आत्मधर्मना जे जूना ग्राहको बंध थई गया होय तेओ फरी चालु थाय
अने जे ग्राहको चालु ज छे तेओ विशेष ग्राहको बनाववा प्रयत्न करे, तो अढी हजार जेटली ग्राहकसंख्या
तो सहेलाईथी थई जाय.
* जिज्ञासुओए ए वात लक्षमां राखवी जरूरी छे के “आत्मधर्म” नी शोभा अने विकास माटे तेम
ज जिज्ञासु वाचकोने उपयोगी साहित्य विशेष प्रमाणमां मळे ते माटे श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी
दर वर्ष मोटी रकम ‘आत्मधर्म’ पाछळ खर्चवामां आवे छे. आत्मधर्मनुं लवाजम त्रण रूपिया होवा छतां
ग्राहक दीठ खर्च लगभग चार रूपिया उपरांत थाय छे.
*आ ‘आत्मधर्म’ मासिक जैनधर्मनुं शुद्ध आध्यात्मिक पत्र छे; आमां मुख्यपणे परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्रीना परमकल्याणकारी शुद्ध आध्यात्मिक उपदेशनो सार आपवामां आवे छे......अने ए– द्वारा
जिज्ञासु पाठकोने जगतना किलष्ट वातावरणथी दूर लई जईने आत्मिक शांतिना मार्ग तरफ आंगळी चींधे
छे. जिज्ञासु जीवोनुं महान सौभाग्य छे, के संसारमां चारे तरफ ज्यारे अत्यंत किलष्ट अने हळहळतुं
वातावरण गाजी रह्युं छे त्यारे पण, आत्माने जगतथी जुदो पाडीने आत्मिक शांति प्राप्त करवानो अपूर्व
कल्याणकारी राह परमपूज्य गुरुदेवश्री बतावी रह्या छे. हे भव्य साधर्मी बंधुओ! पूज्य गुरुदेवश्रीए
बतावेला आ पावन पंथने ओळखो अने संसारना हळहळता वातावरणथी छूटीने आत्मिकशांति प्राप्त
करवा माटे ते पंथने अनुसरो........