अमाराथी जुदो रही जाय–ए केम बने? हे मित्र! अमारो उपदेश सांभळीने, अमारी जेम तुं
पण तरत ज चैतन्यस्वरूपमां उग्रपणे तारुं वलण कर. चैतन्यनुं उग्र अवलंबन करतां तने
पण अमारा जेवी दशा प्रगटी जशे, ने अल्पकाळमां मोक्ष थई जशे.
निरुपम सहज परमानंदरूप चैतन्यतत्त्वनो अमे तने उपदेश आप्यो, ते समजीने हे मित्र! तुं तरत ज उग्रपणे तेमां
वलण कर.
संग्राह्यं तैर्निरूपममिदं मुक्तिीसाम्राज्यमूलम् ।
तस्मादुच्चैस्त्वमपि च सखे मद्वचःसारमस्मिन्
श्रुत्वा शीघ्रं कुरु तव मतिं चिच्चमत्कार मात्रे ।। १३३।।
चमत्कारमात्र प्रत्ये तारुं वलण कर.
चैतन्यस्वरूपमां तारुं वलण कर. अध्यात्मउपदेशनो अमारो आवो गुंजारव सांभळीने अंतरमां कोण वलण न करे?
उपदेश सांभळीने आ ज करवा जेवुं छे. डाह्या पुरुषो एटले के आत्मार्थी जीवोनुं आ एक ज कर्तव्य छे के अंतर्मुख
थईने चैतन्यस्वरूपनुं एकनुं ज अवलंबन करवुं. हे मित्र! तुं शीघ्र एम कर, एम मुनिराजे प्रेरणा करी छे.
समज्यो छे. मुनिराज कहे छे के हे सखा! हे बंधु! तुं मारा उपदेशनो सार सांभळीने चैतन्यस्वरूपमां तारुं वलण
कर, तुरत ज कर. डाह्या पुरुषोए एटले के आत्मार्थी–ज्ञानी–मुमुक्षु जीवोए एक सहज परमानंदमय आत्मानुं ज
सम्यक् प्रकारे ग्रहण करवा जेवुं छे. आत्मानुं सहज स्वरूप अनुपम छे, ते ज मुक्ति–साम्राज्यनुं मूळ छे. निरुपम
अने सहज परमानंदमय चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा छे, अंतर्मुख थईने तेनी भावना करतां मोक्षदशा थई जाय
तेथी ते ज मोक्षनुं मूळ छे, अने ते एक ज मोक्षार्थी जीवनुं आलंबन छे. अध्यात्म–उपदेश सांभळीने जे जीव आवा
चैतन्यस्वरूप आत्माने एकने ज सम्यक्प्रकारे ग्रहण करे छे, ने रागादि परभावो के निमित्त वगेरे परद्रव्योना
ग्रहणनी बुद्धि छोडे छे ते ज खरेखर डाह्या एटले मोक्षार्थी छे. मारा चैतन्यनुं शुद्धस्वरूप पुण्य–पापरहित छे, पुण्य–
पाप ते मारुं स्वरूप नथी–एम ओळखीने