रहे छे. पर द्रव्यो पोतपोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप सत् छे एटले तेमां आत्मा कांई करतो नथी. अने आत्मा पोते
पण समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप सत् छे, ते समय–समयना सत्मां कांई फेरफार करवानुं के ग्रहण–त्याग
करवानुं रहेतुं नथी, एकलुं ज्ञातापणुं रहे छे. आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप सत्स्वभावना निर्णयमां ज्ञान अने
वीतरागता आवी जाय छे.
आत्मामां पूर्वनी अवस्थाओ तो वीती गई छे–एटले तेने शुं छोडवी? तेनो व्यय थई गयो छे एटले तेने
छोडवापणुं रहेतुं नथी.
भविष्यनी पर्याय हजी थई ज नथी एटले तेमां पण शुं छोडवुं?
अने वर्तमानमां जे अवस्था उत्पादरूप विद्यमान छे तेने पण शुं छोडवी? केमके वर्तमानमां तो ते ‘छे’,
विद्यमान कहेवी अने ते ज समये तेने छोडवानुं कहेवुं–ए बंने एक साथे बनी शके नहि. अने बीजा समये तो ते
अवस्थानो व्यय थई ज जशे, एटले बीजा समये पण तेने शुं छोडवी? अने ध्रुव तो सदा विद्यमान छे तेमां कांई
ग्रहण–त्याग नथी.
आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप सत् वस्तु जेम छे तेम छे, तेमां कांई छोडवापणुं छे ज नहि, आवुं वस्तुस्वरूप
ज्ञानमां आव्युं त्यां वीतरागभाव ज रही जाय छे. वीतरागभाव वखते विकारनी उत्पत्ति थती नथी ते अपेक्षाए
विकारने छोडयो एम कहेवाय छे. परंतु आ राग छे अने तेने हुं छोडुं–एवी बुद्धिथी राग छूटतो नथी.
पूर्वे जे राग थई गयो ते तो अत्यारे व्ययरूप छे एटले ते रागने छोडवानुं रहेतुं नथी. भविष्यनी पर्याय
हजी थई ज नथी एटले तेमांथी राग छोडुं ए वात पण रहेती नथी. अने वर्तमान पर्यायमां राग छे ते तो
उत्पादरूप वर्ते छे–ते सत् छे–तेने वर्तमानमां छोडी शकातो नथी. समय–समयना उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप आवा
वस्तुस्वभावनो निर्णय करतां ग्रहण–त्यागनो आकुळभाव छूटीने वीतरागी ज्ञानभाव प्रगटे छे. आ रीते उत्पाद–
व्यय–धु्रवरूप सत्स्वभावनी ओळखाण ते मोक्षमार्ग छे.
जगतना समस्त पदार्थोमां समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रव बताव्यां छे ते भगवाननी सर्वज्ञतानुं चिह्न छे,
सर्वज्ञ सिवाय समय–समयना उत्पाद–व्यय–ध्रुवने बीजो जाणी शके नहि. स्वयंभू स्तोत्रमां आचार्य समन्तभद्र
स्वामी कहे छे के हे नाथ!
स्थिति–जनन–निरोध–लक्षणं
चरमचरं न जगत् प्रतिक्षणम्।
इति जिन! सकलज्ञ–लांछनं
वचनमिदं वदतांवरस्य ते।। ४।।
जनन–व्यय–ध्रौव्य लक्षणं जगत् प्रतिक्षणं,
चित–अचित आदि से पूर्ण यह हरक्षणं;
यह कथन आपका चिह्न सर्वज्ञ का
है वचन आपका आप्त उत्कृष्ट का.
हे मुनिसुव्रत जिन! आप वदतांवर हैं–प्रवक्ताओं में श्रेष्ठ हैं, आपका यह वचन कि ‘चर और अचर
जगत् प्रतिक्षण स्थिति–जनन–निरोधलक्षण को लिए हुए है’–यह आपकी सर्वज्ञता का चिह्न है–जगतमां
जड–चेतन, सूक्ष्म स्थूळ के मूर्त–अमूर्त समस्त पदार्थोमां प्रतिक्षण उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यने एकसाथे लक्षित करवा ते
सर्वज्ञता वगर बनी शकतुं नथी, तेथी हे भगवान! आपना आवा परम अनुभूत वचनथी स्पष्ट सूचित थाय छे के
आप सर्वज्ञ छो.
आ प्रमाणे सर्वज्ञ भगवाननी ओळखाणपूर्वक, सर्वज्ञ भगवाने कहेला यथार्थ वस्तुस्वरूपनो पोताना
ज्ञानमां निर्णय करवो ते धर्मी थवा माटेनुं प्रथम कर्तव्य छे.
(–प्रवचनमांथी)
मागशरः २४८०ः ३३ः