Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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श्री गुरुचरणनो उपासक
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श्री पद्मप्रभ–मुनिराज नियमसारनी टीकामां कहे छे के–
को नाम वक्ति विद्वान् मम च परद्रव्यमेतदेव स्यात्।
निजमहिमानं जानन् गुरुचरणसमर्च्चना समुद्भूतम् ।। १३२।।
गुरुचरणोना समर्चनथी (एटले के सम्यक्भक्तिथी) उत्पन्न थयेला निज महिमाने
जाणतो कोण विद्वान ‘आ परद्रव्य मारुं छे’ एम कहे?
श्री गुरुना विनयपूर्वक जेणे पोताना आत्मस्वभावने जाण्यो छे अने परद्रव्यना एक
अंशने पण पोतानुं मानतो नथी ते ज साचो विद्वान छे. अने एवा जीवने ज प्रत्याख्यान होय
छे. जेने परथी भिन्न पोताना चैतन्य स्वरूपनुं भान नथी अने पर द्रव्यने पोतानुं माने छे–
परनी क्रिया हुं करुं छुं एम माने छे तेणे खरेखर गुरुना चरणनी साची उपासना करी नथी, अने
तेने प्रत्याख्यान होतुं नथी.
साचा गुरु केवा होय ते पण आमां आवी जाय छे. समस्त पर द्रव्योथी भिन्न पोताना
चिदानंद स्वरूपना महिमाने जे जाणता होय अने पर द्रव्यना अंशने पण पोतानुं न मानता होय
तेम ज उपदेशमां पण तेम न कहेता होय ते साचा गुरु छे; अने एवा गुरुनी भक्तिपूर्वक जेणे
पोताना निज महिमाने जाण्यो छे–स्वपरनुं यथार्थ भेदज्ञान कर्युं छे ते ज गुरुना चरणनो साचो
उपासक छे. आ सिवाय जेमणे पोते आत्म स्वरूपना महिमाने जाण्यो न होय, ने पर द्रव्यने
पोतानुं मानता होय, शरीरादिनी क्रिया आत्मा करे छे एम उपदेशता होय ते साचा गुरु नथी
पण कुगुरु छे. अने ‘कोई पण द्रव्य मारुं छे, तेनी क्रिया हुं करुं छुं अथवा ते मने कांई लाभ करे
छे’–एम जे जीव माने छे ते जीव गुरुना चरणनो साचो उपासक नथी, ते गमे तेटलां शास्त्रो
जाणतो होय तोपण ज्ञानीओ तेने विद्वान कहेता नथी अने तेने साचुं प्रत्याख्यान होतुं नथी.
(–प्रवचनमांथी)
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ः ३४ः आत्मधर्मः १२२