Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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अरिहंत भगवाने ओळखो
(अनादिना मोहनो क्षय करीने अपूर्व सम्यग्दर्शन पामवानी रीत)
(श्री प्रवचनसार गा. ८० उपर पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी तारवेलुंः लेखांकः २)
*श्री अरिहंत भगवानने नमस्कार हो.
*जेणे पोताना आत्मानुं अपूर्व हित करवुं होय तेणे पोताना आत्मानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते ओळखवुं
जोईए; अने ते ओळखवा माटे अरिहंत भगवाननुं स्वरूप ओळखवुं जोईए. अरिहंत भगवानने
ओळखतां आत्मानुं वास्तविक स्वरूप ओळखाय छे.
* * *
*अरिहंत भगवानना आत्माने जाणतां अनुमान प्रमाणथी पोताना शुद्धस्वरूपनुं ज्ञान थाय छे के अहो!
मारा आत्मानुं स्वरूप तो आवुं सर्व प्रकारे शुद्ध छे, पर्यायमां विकार ते मारुं खरुं स्वरूप नथी, अरिहंतमां
जे नथी ते मारुं स्वरूप नथी, जेटलुं अरिहंतमां छे तेटलुं ज मारा स्वरूपमां छे, निश्चयथी मारांमां अने
अरिहंतमां कांई फेर नथी,–आवी आत्मप्रतीति थतां, अज्ञान अने विकारनुं कर्तृत्व छूटीने जीव पोताना
स्वभाव तरफ वळ्‌यो एटले स्वभावमां पर्यायनी एकता थतां सम्यग्दर्शन थयुं. हवे पुरुषार्थ द्वारा ते
स्वभावना ज आधारे रागद्वेष सर्वथा क्षय करी, अरिहंत भगवान जेवी ज पूर्ण दशा ते जीव प्रगट करशे.
* आ वात खास समजवा जेवी छे, आमां एकला परनी वात नथी. अरिहंत भगवानने जाणवानुं कह्युं तेमां
खरेखर तो आत्माना पूर्ण शुद्धस्वरूपने जाणवानुं कह्युं छे. अरिहंत भगवान जेवा ज आ आत्माना पूर्ण
शुद्ध स्वभाव स्थापीने तेने जाणवानी वात करी छे. जे जीव पुरुषार्थ वडे शुद्धस्वभावने जाणे तेने धर्म थाय,
जे जीव आवुं जाणवानो पुरुषार्थ न करे तेने धर्म थाय नहि. आ रीते आमां यथार्थ ज्ञान अने पुरुषार्थ बंने
साथे छे; अने सत् निमित्त तरीके अरिहंतदेव छे–ते वात पण आवी जाय छे. अरिहंत भगवान सिवाय
बीजा कुदेवादिने जे मानतो होय तेने मोहक्षय थतो नथी.
* * *
* ध्यान राखजो, आ अपूर्व वात छे; आमां एकला अरिहंतनी वात नथी पण पोताना आत्माने भेळवीने
वात छे. अरिहंत भगवान साथे पोताना आत्मानी एम मेळवणी करवी जोईए केः ‘अहो! आ आत्मा
तो केवळज्ञानस्वरूप छे, तेमने पूर्ण ज्ञानसामर्थ्य छे ने विकार जरापण नथी, मारो आत्मा पण अरिहंत
जेवा ज स्वभाववाळो छे.’
* –आवी प्रतीत जेणे करी तेने हवे स्वद्रव्य तरफ ज वळवानुं रह्युं, पण निमित्तो तरफ वळवानुं न रह्युं, केम के
पोतानी पूर्णदशा पोताना स्वभावमांथी आवे छे, निमित्तमांथी आवती नथी; तेम ज तेने पुण्य–पाप तरफ
के अधूरी दशा तरफ पण जोवानुं न रह्युं केम के ते पण आत्मानुं वास्तविक स्वरूप नथी, तेमांथी पूर्णदशा
आवती नथी. जेमां पूर्णदशा प्रगटवानुं सामर्थ्य छे एवा पोताना द्रव्य–गुणमां ज पर्यायनी एकाग्रता
करवानुं रह्युं, आवी एकाग्रतानी क्रिया करतां करतां पर्याय–शुद्ध थई जाय छे ने मोह टळी जाय छे.
मागशरः २४८० ः ३पः