Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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*–एवी एकाग्रतानी क्रिया कोण करे? जेणे प्रथम अरिहंत भगवानने ओळख्या होय अने अरिहंत जेवुं
पोताना आत्मानुं स्वरूप ख्यालमां लीधुं होय ते जीव पर्यायनी अशुद्धता टाळीने शुद्धता प्रगट करवा माटे
पोताना शुद्ध स्वभावमां एकाग्रतानो प्रयत्न करे. परंतु जे जीव अरिहंत भगवानने ओळखतो नथी,
अरिहंत जेवा पोताना स्वरूपने ओळखतो नथी अने पुण्य–पापने ज पोतानुं स्वरूप मानी रह्यो छे ते जीव
अशुद्धता टाळीने शुद्धता प्रगट करवानो प्रयत्न करे नहि. माटे सौथी पहेलां आत्मानुं शुद्ध–स्वरूप ओळखवुं
जोईए अने ते माटे अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळखवा जोईए.–आ धर्मनी रीत छे.
* * *
*अत्यारे आ भरतक्षेत्रे अरिहंत भगवान विचरता नथी, परंतु अहींथी थोडे दूर महाविदेह क्षेत्रमां सीमंधर
भगवान वगेरे तीर्थंकरो अरिहंतपणे साक्षात् विचरे छे. क्षेत्रथी अमुक अंतर होवा छतां भावथी पोते
पोताना ज्ञानमां अरिहंत भगवानना स्वरूपनो निर्णय करे तो तेमां क्षेत्रनुं अंतर नडतुं नथी. जेणे अरिहंत
भगवान जेवा पोताना आत्मस्वभावनो निर्णय कर्यो तेने तो पोताना भावमां अरिहंत भगवान सदाय
नजीक ज वर्ते छे. ‘जेवा अरिहंत तेवो हुं’ एवी प्रतीतना जोरे भावमांथी तेणे अरिहंत भगवान साथेनुं
अंतर तोडी नाख्युं छे.
* * *
*कोईने एम शंका थाय के अत्यारे तो अरिहंत नथी तो तेमनुं स्वरूप कई रीते नक्की थाय?–तेनुं समाधानः
अहीं अरिहंतनी हाजरीनी वात नथी करी पण अरिहंतनुं स्वरूप जाणवानी वात करी छे. अहीं अरिहंतनी
साक्षात् हाजरी होय तो ज तेमनुं स्वरूप जाणी शकाय–एम नथी. अत्यारे आ क्षेत्रे अरिहंत भगवान नथी
पण महाविदेह क्षेत्रे तो अत्यारे पण अरिहंत भगवान साक्षात् बिराजे छे, अने ज्ञानद्वारा तेमना स्वरूपनो
निःसंदेह निर्णय थई शके छे.
* * *
*सामे अरिहंत भगवान साक्षात् बिराजता होय त्यारे पण ज्ञानद्वारा ज तेमनो निर्णय थाय छे.
परमऔदारिक शरीर, समवसरण, दिव्यध्वनि, ते कांई खरेखर अरिहंत भगवाननुं स्वरूप नथी, ए बधुं
तो आत्माथी जुदुं छे. चैतन्यस्वरूप आत्मा ते द्रव्य, ज्ञान–दर्शनादि तेना गुणो, अने केवळज्ञान–अतीन्द्रिय
आनंद वगेरे पर्याय,–आवा द्रव्य–गुण–पर्यायथी अरिहंत भगवाननुं स्वरूप ओळखे तो अरिहंतने
ओळख्या कहेवाय.
* * *
*क्षेत्रथी नजीक अरिहंतनी हाजरी होय के न पण होय तेनी साथे संबंध नथी पण पोताना ज्ञानमां तेमना
स्वरूपनो निर्णय छे के नहि तेनी साथे संबंध छे. क्षेत्रथी नजीक अरिहंतप्रभु बिराजता होय परंतु ते वखते
जो ज्ञानवडे जीव तेमना स्वरूपनो निर्णय न करे तो ते जीवने आत्मानुं स्वरूप जणाय नहि अने तेना माटे
तो अरिहंत भगवान घणा दूर छे.
––अने अत्यारे क्षेत्रथी नजीक अरिहंतप्रभु न होवा छतां पण जो पोताना ज्ञानवडे अरिहंत प्रभुना
स्वरूपनो निर्णय करे तो तेने माटे अरिहंतप्रभु नजीक हाजराहजूर छे.
* * *
ः ३६ः आत्मधर्मः १२२