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पोताना ज्ञानमां अरिहंत भगवानना स्वरूपनो (–द्रव्य–गुण–पर्यायनो) खरो निर्णय कर्यो छे अने तेवुं ज
पोतानुं स्वरूप छे एम जाण्युं छे तेओने माटे तो अरिहंत भगवान साक्षात् मोजूद बिराजे छे.
आ क्षेत्रे अरिहंत नथी, पण अरिहंतने नक्की करनारुं तारुं ज्ञान तो छे ने! ते ज्ञानना जोरे अरिहंतनो
निर्णय करीने क्षेत्रभेद नडतो नथी.–अहो! अरिहंत प्रभुना विरहने भूलावी द्ये एवी आ वात छे.
भावमां भगवानने दूर कर्या (–एटले के भगवानने न ओळख्या) तेने भगवान दूर छे,–पछी क्षेत्रथी भले
नजीक हो.
अरिहंत भगवानने पूर्ण निर्मळदशा प्रगटी ते कयांथी प्रगटी? ज्यां सामर्थ्य हतुं तेमांथी प्रगटी. स्वभावमां
पूर्ण सामर्थ्य हतुं तेनी सन्मुखताथी ते दशा प्रगटी. मारो स्वभाव पण अरिहंत भगवान जेवो परिपूर्ण छे,
स्वभावसामर्थ्यमां कांई फेर नथी. बस! आवी स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत करतां ज मोह टळे छे ने सम्यक्त्व
थाय छे.–आ समकीतनो उपाय छे.
मोह पण तेमने नथी, तेम मारो आत्मा पण तेवो ज जाणनार स्वरूपी छे;–आम ज्ञानस्वभावनी प्रतीत
करवी ते मोहक्षयनुं कारण छे.
ओळख्या नथी अने ते अरिहंत भगवाननो साचो भक्त नथी.
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा छे, ते ज साचो जैन छे, ते जिनेश्वरदेवनो लघुनंदन छे. प्रथम जिनेन्द्रदेव जेवो पोतानो
स्वभाव छे एवो निर्णय करवो ते जैनपणुं छे अने पछी स्वभावना अवलंबने पुरुषार्थ द्वारा तेवी पूर्णदशा
प्रगट करवी ते जिनपणुं छे. अरिहंतने ओळख्या विना, अने तेमना जेवा पोताना निज स्वभावने जाण्या
विना साचुं जैनपणुं होई शके नहि, एटले धर्म थाय नहि.