Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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ज तेमनो आत्मा सुखरूपे परिणमी रह्यो छे, माटे सुख ते आत्मानुं ज स्वरूप छे. स्वभावथी ज स्वयमेव
सुखरूप थयेला अरिहंत भगवंतोने आहार, पाणी, दवा के वस्त्र वगेरेनी जरूर पडती नथी; आ प्रमाणे
अरिहंतना आत्माने ओळखीने तेनी साथे पोताना आत्माने मेळवे तो पोतानो स्वतंत्र स्वभाव प्रतीतमां
आवे के अहो! कोई संजोगोमां मारुं सुख नथी, सुख तो मारो पोतानो स्वभाव छे, एकलो मारो स्वभाव
ज सुखनुं साधन छे. आवी समजण थतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
* * *
* अरिहंत भगवानने परिपूर्ण अतीन्द्रिय सुख छे; तेमनी ओळखाण थतां अतीन्द्रिय सुखनी ओळखाण थाय
छे ने ईन्द्रिय–विषयोमांथी सुखबुद्धि टळी जाय छे.
* * *
*अरिहंत भगवानने पूर्वे अज्ञानदशा हती पछी ज्ञानदशा प्रगटी; आ अज्ञान अने ज्ञान बंने दशामां
अरिहंतने जे टकी रहेल छे ते आत्मद्रव्य छे. जे आत्मा पहेलां अज्ञानदशामां हतो ते ज अत्यारे ज्ञानदशामां
छे–आवी पहेलां–पछीनी जोडरूप जे सळंग पदार्थ ते द्रव्य छे. पर्यायो पहेलां–पछीनी जोडरूप नथी पण छूटी
छूटी छे, पहेली अवस्था ते बीजी नथी, बीजी अवस्था ते त्रीजी नथी–आम अवस्थामां परस्पर जुदापणुं
छे. अने द्रव्य तो जे पहेला समये हतुं ते ज बीजा समये छे, बीजा समये हतुं ते ज त्रीजा समये छे–एम
द्रव्यमां सळंगपणुं छे,–आम ओळखे तो एकली पर्यायबुद्धि टळी जाय ने द्रव्यसन्मुखता थई जाय.
* * *
*कई अवस्था वखते द्रव्यसामर्थ्य नथी? बधी अवस्था वखते द्रव्यसामर्थ्य एवुं ने एवुं एकरूप छे. जेटलुं
अरिहंत भगवाननुं द्रव्यसामर्थ्य छे तेटलुं ज पोतानुं द्रव्यसामर्थ्य छे आ ओळखाण करतां एम प्रतीत थाय
छे के अत्यारे मारे अधूरी दशा होवा छतां अरिहंत भगवान जेवी पूर्णदशा पण मारामांथी ज प्रगटवानी छे
अने ते पूर्णदशामां पण हुं ज टकी रहेवानो छुं.
* * *
*द्रव्यनुं विशेषण ते गुण छे; जेमके सोनुं केवुं? के सोनुं पीळुं, सोनुं भारे, सोनुं चीकणुं; तेम आत्मद्रव्य केवुं?
आत्मा ज्ञानस्वरूप, आत्मा दर्शनस्वरूप, आत्मा चारित्रस्वरूप; आ प्रमाणे ज्ञानादि विशेषणो आत्मद्रव्यने
लागु पडे छे एटले ते आत्माना गुणो छे. जेटला गुणो अरिहंत भगवानना आत्मामां छे तेटला ज गुणो
आ आत्मामां छे. अरिहंतना अने आ आत्माना द्रव्य–गुणमां फेर नथी. पर्यायमां जे फेर छे ते द्रव्यना
अवलंबने टळी जाय छे.
* * *
*अरिहंत जेवा थवानो उपाय शुं?–के अरिहंत भगवान जेवा ज पोताना द्रव्य–गुण छे एम ओळखीने तेनुं
अवलंबन करवुं ते अरिहंत जेवा थवानो उपाय छे.
* * *
*जेटला अरिहंतो थया ते बधाय अरिहंत भगवंतोए पोताना द्रव्यनुं अवलंबन करीने ज अरिहंतदशा
प्रगट करी छे. तेम सर्वे जीवोने माटे पोताना द्रव्यनुं अवलंबन करवुं
ः ३८ः आत्मधर्मः १२२