सुखरूप थयेला अरिहंत भगवंतोने आहार, पाणी, दवा के वस्त्र वगेरेनी जरूर पडती नथी; आ प्रमाणे
अरिहंतना आत्माने ओळखीने तेनी साथे पोताना आत्माने मेळवे तो पोतानो स्वतंत्र स्वभाव प्रतीतमां
आवे के अहो! कोई संजोगोमां मारुं सुख नथी, सुख तो मारो पोतानो स्वभाव छे, एकलो मारो स्वभाव
ज सुखनुं साधन छे. आवी समजण थतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
अरिहंतने जे टकी रहेल छे ते आत्मद्रव्य छे. जे आत्मा पहेलां अज्ञानदशामां हतो ते ज अत्यारे ज्ञानदशामां
छे–आवी पहेलां–पछीनी जोडरूप जे सळंग पदार्थ ते द्रव्य छे. पर्यायो पहेलां–पछीनी जोडरूप नथी पण छूटी
छूटी छे, पहेली अवस्था ते बीजी नथी, बीजी अवस्था ते त्रीजी नथी–आम अवस्थामां परस्पर जुदापणुं
छे. अने द्रव्य तो जे पहेला समये हतुं ते ज बीजा समये छे, बीजा समये हतुं ते ज त्रीजा समये छे–एम
द्रव्यमां सळंगपणुं छे,–आम ओळखे तो एकली पर्यायबुद्धि टळी जाय ने द्रव्यसन्मुखता थई जाय.
अरिहंत भगवाननुं द्रव्यसामर्थ्य छे तेटलुं ज पोतानुं द्रव्यसामर्थ्य छे आ ओळखाण करतां एम प्रतीत थाय
छे के अत्यारे मारे अधूरी दशा होवा छतां अरिहंत भगवान जेवी पूर्णदशा पण मारामांथी ज प्रगटवानी छे
अने ते पूर्णदशामां पण हुं ज टकी रहेवानो छुं.
आत्मा ज्ञानस्वरूप, आत्मा दर्शनस्वरूप, आत्मा चारित्रस्वरूप; आ प्रमाणे ज्ञानादि विशेषणो आत्मद्रव्यने
लागु पडे छे एटले ते आत्माना गुणो छे. जेटला गुणो अरिहंत भगवानना आत्मामां छे तेटला ज गुणो
आ आत्मामां छे. अरिहंतना अने आ आत्माना द्रव्य–गुणमां फेर नथी. पर्यायमां जे फेर छे ते द्रव्यना
अवलंबने टळी जाय छे.
अवलंबन करवुं ते अरिहंत जेवा थवानो उपाय छे.
प्रगट करी छे. तेम सर्वे जीवोने माटे पोताना द्रव्यनुं अवलंबन करवुं