मने ‘मरीने पण आत्मानो अनुभव करवानुं कहे छे तो जरूर मारे पण ए ज करवा जेवुं छे, गमे तेम करीने पण
मारे मारा चैतन्यनो अनुभव करवो ते ज मारुं कर्तव्य छे.–आवो शिष्य अंतरमां अपूर्व प्रयत्नवडे अल्पकाळमां ज
चैतन्य तत्त्वनो अनुभव जरूर करशे.
[१०]
जेने अंतरमां चैतन्यतत्त्व जाणवानुं कुतूहल जाग्युं अने ते माटे शरीरनो नाश थवा सुधीनी प्रतिकूळताने
पण सहन करवा तैयार थयो, ते जीव पोताना प्रयत्नवडे चैतन्यमां वळ्या वगर रहेशे नहि. शरीरने जतुं करीने पण
मारे आत्माने जोवो छे–एम लक्षमां लीधुं तेमां ए वात आवी ज गई के हुं शरीरथी जुदो छुं, मारे शरीरादि पर
वस्तु वगर ज चाले छे. शरीर छोडीने पण चैतन्य तत्त्वनो अनुभव करवा माटे जे तैयार थयो तेने शरीरमां
पोतापणानी बुद्धि तो सहेजे टळी जाय छे, शरीर जतां पण मने मारा आत्मानो अनुभव रही जशे–एवुं
भिन्नतत्त्वनुं लक्ष तेने थई गयुं छे.
हे जीव! तारो आत्मा चैतन्यस्वरूप छे ते संसाररहित छे, आवा संसाररहित चैतन्यतत्त्वनो अनुभव
करवा माटे, आखाय संसारपक्षनी दरकार छोडीने तुं चैतन्य तरफ वळ; आम करवाथी आखा संसारथी भिन्न एवा
तारा परम चैतन्यतत्त्वनो तने अनुभव थशे, अने तारुं परम कल्याण थशे.
आ प्रमाणे आचार्यदेवे आत्मकल्याणनी अद्भुत प्रेरणा करी.
“अहो! महा उपकारी संतो सिवाय आत्मकल्याणनी आवी वात्सल्यभरी अद्भुत प्रेरणा कोण आपे?”
*
जगतना समस्त पदार्थोमां समये समये उत्पाद–व्यय–ध्रुव बताव्यां छे ते
भगवाननी सर्वज्ञतानुं चिह्न छेः सर्वज्ञ भगवाननी ओळखाणपूर्वक, सर्वज्ञ
भगवाने कहेलां यथार्थ वस्तुस्वरूपनो पोताना ज्ञानमां निर्णय करवो ते धर्मी
थवा माटेनुं प्रथम कर्तव्य छे.
*
दरेक वस्तुनुं स्वरूप उत्पाद–व्यय–ध्रुव–स्वरूप छे. उत्पाद एटले उपजवुं, व्यय एटले नाश थवो; अने ध्रुव
एटले टकी रहेवुं. वस्तुमां आवा उत्पाद–व्यय–धु्रव त्रणे एक समयमां एक साथे छे.
वस्तु पोताना मूळ स्वरूपमां ध्रुव रहीने, तेनामां समये समये नवी नवी अवस्थानो उत्पाद थाय छे अने ते
ज समये तेनी जुनी अवस्थानो व्यय थाय छे.
आ उत्पाद–व्यय–धु्रवमां मोटो सिद्धांत छे के जे समये जे अवस्थानो उत्पाद थाय ते ज समये ते अवस्थानो
व्यय न थाय. तेम ज जे पर्यायनो उत्पाद थयो ते बीजा समये टके नहि एटले के एक ने एक पर्याय लंबाईने बे
समय टके नहि, बीजा समये तेनो व्यय थई जाय. त्यारे धु्रवस्वभाव तो उत्पाद–व्यय वगर सदाय एवो ने एवो
एकरूप टकी रहे छे. ते ध्रुवस्वभावनुं लक्ष करतां सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्यायनो उत्पाद अने मिथ्यात्वादि पर्यायनो
व्यय थई जाय छे.
उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप जे सत् छे तेमां कांई ग्रहवा–छोडवानुं रहेतुं नथी पण ज्ञातापणुं ज