
निर्णय थतां राग साथेनी एकत्वबुद्धि छूटीने स्वभाव साथे एकत्वबुद्धि थाय छे, एटले मोह टळीने
सम्यग्दर्शन थाय छे.
करवानी पण ताकात छे. त्रिकाळी वस्तुनो निर्णय करवामां त्रिकाळ जेटलो वखत नथी लागतो पण वर्तमान
एक पर्याय द्वारा त्रिकाळी वस्तुनो निर्णय थाय छे.
अर्थ ए थयो के अरिहंत भगवान जेवी दशारूपे पोताने थवुं छे. जेणे अरिहंत भगवानने ओळख्या होय
तेम ज पोताना आत्माने अरिहंत भगवान जेवो जाण्यो होय, ते ज अरिहंत भगवान जेवी दशारूपे
थवानी भावना करे. आ रीते, अरिहंत भगवानने ओळख्या विना सुखनो साचो उपाय बनी शकतो नथी.
छे–आम जेणे कबूल्युं. तेणे अरिहंत भगवान जेवा द्रव्य–गुण–पर्याय सिवाय बधुं पोतामांथी काढी नांख्युं–
एटले के ते मारुं स्वरूप नथी एम प्रतीत करी. आत्मा परनुं कांई करे, निमित्तथी लाभ नुकशान थाय के
शुभरागथी धर्म थाय–ए बधी मान्यता टळी गई, केम के अरिहंत भगवानना आत्मामां ते कांई नथी.
छे; ए प्रमाणे आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणीने, बधी पर्यायोने अने गुणोने एक चैतन्यद्रव्यमां ज
अंतर्गत करतां एकाकार चैतन्यद्रव्य ज लक्षमां रही जाय छे. ते क्षणे सर्वे विकल्पोनी क्रिया अटकी जाय छे,
अने मोहनो नाश थईने अपूर्व सम्यग्दर्शन थाय छे.
गुण–पर्यायोने एक परिणमता द्रव्यमां समावीने द्रव्यने अभेदपणे लक्षमां लई शके. अरिहंत जेवा पोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणीने, जेणे गुण–पर्यायोने एक द्रव्यमां संकेल्या तेणे पर्यायने अंतर्मुख करीने
आत्माने पोताना स्वभावमां ज धारी राख्यो, त्यां मोह कोना आधारे रहे?–एटले निराश्रय थयेलो मोह
ते क्षणे ज क्षय पामे छे. जेटली द्रव्य–गुण–पर्यायनी एकता थई तेटलो धर्म छे.