Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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अभेद चैतन्यनो अनुभव करवो तेमां अपूर्व पुरुषार्थ छे.
* * *
*जुओ, आ ज्ञाननुं सामर्थ्य! अहो! एक समयनी ज्ञानपर्यायमां अनंत केवळी भगवंतोनो निर्णय करवानी
ताकात छे. जे ज्ञाने अरिहंत भगवानना केवळज्ञाननो निर्णय कर्यो ते ज्ञानमां पोताना स्वभावनो पण
निर्णय करवानी ताकात छे.
* * *
*वस्तुनुं वास्तविक स्वरूप जेवुं होय तेवुं माने तो वस्तुस्वरूप अने मान्यता बंने एक थतां सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान
थाय छे. आत्मानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते जाणवा माटे अरिहंत भगवानने ओळखवानी जरूर छे केमके
अरिहंत भगवान द्रव्य–गुण–पर्यायथी संपूर्ण शुद्ध छे. जेवा अरिहंत भगवान छे तेवो ज्यां सुधी आ
आत्मा न थाय त्यां सुधी तेनी पर्यायमां दोष छे–अशुद्धता छे. अरिहंत भगवान जेवी अवस्था कयारे
थाय? पहेलां अरिहंत भगवान जेवुं पोताना आत्मानुं शुद्धस्वरूप नक्की करे त्यारे सम्यग्दर्शन–ज्ञान प्रगटे
छे एटले के अरिहंत भगवान जेवो अंश प्रगटे छे, अने पछी ते शुद्ध स्वरूपमां लीन थतां सर्व मोहनो नाश
थईने साक्षात् अरिहंत भगवान जेवी दशा थई जाय छे.
* * *
*अरिहंत भगवान जेवुं ज मारुं स्वरूप छे–एम पोताना आत्माने भेळवीने, अरिहंतना स्वरूपने ओळखतां
पोताना स्वरूपमां पण निःशंकता थई जाय छे; जो पोताना स्वभावनी निःशंकता न थाय तो अरिहंतना
स्वरूपनो पण यथार्थ निर्णय नथी. जेणे अरिहंतनो अने अरिहंत जेवा पोताना स्वरूपनो निर्णय कर्यो तेणे
मोहक्षयनो उपाय मेळवी लीधो छे.
* * *
*अहो! अरिहंत भगवान जेवा पूर्णस्वरूपी आत्मानो साक्षात् अनुभव छे–तो पछी शुं नथी? भले
पंचमकाळ हो ने साक्षात् अरिहंत भगवाननो विरह हो, पण जेणे अंतरमां अरिहंत भगवान जेवा
पोताना स्वभावनो अनुभव कर्यो छे तेणे समस्त मोहनी सेनाने जीतवानो उपाय प्राप्त करी लीधो छे.–
आम धर्मीने निःशंकता होय छे के मारो स्वभाव मोहनो नाशक छे.
* * *
*अरिहंत भगवान सर्वथा मोहरहित थई गया छे अने ते अरिहंत भगवान जेवो आत्मानो स्वभाव छे एम
जेणे प्रतीत करी तेने पण अल्पकाळमां ज समस्त मोहनो नाश थई जाय छे. धर्मी जाणे छे के अरिहंत भगवान
जेवो मारो स्वभाव छे, ते स्वभाव मोहनो नाशक छे; अने ए स्वभावनी प्राप्ति तो मने थई छे, तेथी मोहनो
सर्वथा क्षय थशे–एमां शंका पडती नथी. अमारा आत्मामां बधुं ज सामर्थ्य छे–तेना जोरे दर्शनमोह तेम ज
चारित्रमोह बंनेनो सर्वथा क्षय करीने केवळज्ञान प्रगट करीने साक्षात् अरिहंतदशा प्रगट करशुं.
हे जीवो!
तमे अरिहंत भगवानने ओळखो अने
अरिहंत जेवा पोताना आत्माने ओळखो
*
मागशरः २४८० ः ४१ः