Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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ज्ञानतत्त्व
ज्ञानतत्त्वथी विपरीत एवा राग वडे
धर्म मानवो ते तो, मींदडीने
बोलावीने तेने दूध पाई देवा जेवुं छे.
*
त्मा ज्ञानतत्त्व छे. ते ज्ञानतत्त्व रागथी तेम ज देहथी क्रियाथी जुदुं छे. ज्ञानतत्त्वमां
राग के देहनी क्रिया नथी, अने रागवडे के देहनी क्रियावडे ज्ञानतत्त्व पमातुं नथी. आवा
ज्ञानतत्त्वने जाण्या विना अज्ञानीओ शुभरागने धर्म माने छे. राग तो आत्माना वीतरागी
धर्ममां विघ्नरूप छे तेने बदले अज्ञानी जीवो ते रागने धर्मनुं कारण मानीने तेनो आदर करे छे.
ज्ञानी तो पोताना ज्ञानतत्त्वने रागथी जुदुं जाणे छे एटले ते रागने धर्मनुं कारण कदी मानता
नथी. वच्चे शुभराग थई जाय ते जुदी वात छे, पण रागने धर्मनुं कारण मानीने तेनो आदर
करवो ते तो मोटी भूल छे. रागनो आदर करनारने आत्माना निर्दोष ज्ञानतत्त्वनी प्रीति नथी.
जेम दूधनो कटोरो भर्यो होय त्यां मींदडी आवीने दूध पी जाय–ते जुदी वात छे ने मींदडीने
बोलावीने दूध पाई देवुं ते जुदी वात छे; दूधपाक करवा माटे पांच शेर दूध लई राख्युं होय, ने
मींदडी आवे त्यां तेनो आदर करीने तेने दूध पाई द्ये, तो तेने दूधपाक करवानी होंश ज नथी, ते
दूधपाक करशे शेमांथी?
तेम जे जीव धर्म करवा मांगे छे ते जीव, जो शुभरागथी धर्म मानीने तेनो ज आदर करशे
तो तेनुं बधुंय ज्ञानतत्त्व शुभभावना आदररूपी मींदडी पी जशे, रागथी जुदुं ज्ञानतत्त्व तो तेनी
द्रष्टिमां न रह्युं, तो ते जीव रागरहित धर्म शेमांथी करशे? खरेखर तेने धर्म करवानी रुचि ज
नथी. शुभभावरूपी मींदडीनो आदर करीने ज्ञानतत्त्वने रागथी ज ढांकी दीधुं, तो हवे शेमां रहीने
ते जीव धर्म करशे? वच्चे शुभराग आवी जाय ते जुदी वात छे पण तेने धर्म मानीने आदर न
करवो जोईए, केम के राग तो ज्ञानतत्त्वथी विपरीतभाव छे, रागना आधारे कदी धर्म थतो नथी.
धर्म तो ज्ञानतत्त्वना ज आधारे थाय छे. माटे चैतन्यमूर्ति ज्ञानतत्त्वनो आदर, तेनी रुचि, तेनुं
बहुमान, तेना प्रत्ये होंश अने तेनुं अवलंबन करवुं ते ज धर्म करवानी रीत छे.
(–रात्रिचर्चा उपरथी)
ः ४२ः आत्मधर्मः १२२