Atmadharma magazine - Ank 122
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 21

background image
एक समयमां बे
[मोक्ष अने बंधना कारणरूप भावो]
धर्मी जीवने एक ज समयमां सम्यग्दर्शनादि शुद्ध भावथी निर्जरा, अने ते ज समयमां शुभरागथी बंधन,–
एम एक साथे बंने होय छे.
–परंतु, एक ज भावथी निर्जरा अने बंध थाय नहि; जे सम्यग्दर्शनादि शुद्धभाव छे ते तो निर्जरानुं ज
कारण छे, तेनाथी बंधन थतुं नथी. तेम ज शुभराग ते बंधनुं ज कारण छे, तेनाथी निर्जरा थती नथी.
–आ रीते मोक्षना कारणरूप भावने अने बंधना कारणरूप भावने जुदा जुदा ओळखवा जोईए.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप वीतरागभाव तो मोक्षनुं ज कारण छे. अने मिथ्यात्व तथा रागादिभाव बंधनुं ज
कारण छे.
जे भावो मोक्षनुं कारण होय ते ज भावो बंधनुं कारण थाय नहि अने जे भावो बंधनुं कारण होय ते ज
भावो मोक्षनुं कारण थाय नहि.
पुरुषार्थसिद्धिउपायमां अमृतचंद्र–आचार्यदेवे कह्युं छे के–
येनांशेन सुद्रष्टिस्तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति ।
येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ।।
येनांशेन ज्ञानं तेनांशेनास्य बन्धन नास्ति ।
येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ।।
येनांशेन चरित्रं तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति ।
येनांतशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ।। [–२१२–२१३–२१४]
आ आत्माने जे अंशथी सम्यग्दर्शन छे ते अंशथी बंधन नथी, तथा जे अंशथी तेने राग छे ते अंशथी
बंधन थाय छे;
जे अंशथी तेने ज्ञान छे ते अंशथी बंधन थतुं नथी, अने जे अंशथी तेने राग छे ते अंशथी बंधन थाय छे;
वळी जे अंशथी तेने चारित्र छे ते अंशथी बंधन थतुं नथी, अने जे अंशथी राग छे ते अंशथी तेने बंधन
थाय छे.
ए रीते, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भाव के जे मोक्षनुं कारण छे, तेनाथी कदी बंधन थतुं नथी, रागथी ज
बंधन थाय छे.
रत्नत्रयमिह हेतुर्निर्वाणस्यैव भवति नान्यस्य
आस्रवति यत्तु पुण्यं शुभोपयोगोऽयमपराधः ।। २२०।।
आ जगतमां रत्नत्रयरूप धर्म निर्वाणनो ज हेतु थाय छे, अन्यनो नहि; अने जे पुण्यनो आस्रव थाय छे ते
आ शुभोपयोगनो अपराध छे.
जे भावे मोक्ष थाय ते भावे कदी बंधन न थाय.
जे भावे बंधन थाय ते भावे कदी मोक्ष न थाय.
माटे मोक्षना कारणरूप भावोने अने बंधना कारणरूप भावोने भिन्न भिन्न स्वरूपे ओळखवा जोईए.
(–प्रवचन उपरथी.)
*