संयोगरूप असमानजातीय पर्याय छे, ते आत्मानुं स्वरूप नथी. मनुष्यपर्याय ते हुं नथी, हुं तो ज्ञानस्वरूप आत्मा
छुं–एम समजवुं ते आत्मानी पहेली फरज छे, ने ते पहेलो धर्म छे. मनुष्यभव पामीने करवा जेवुं होय तो ए ज छे.
आ सिवाय ‘हुं मनुष्य ज छुं’ एम मानीने जे कांई क्रियाकलाप करवामां आवे ते बधोय व्यवहार मूढ अज्ञानी
जीवोनो व्यवहार छे.
आत्मा ते हुं छुं’ –एम न मानतां, ‘मनुष्य पर्याय ते ज हुं छुं’ मनुष्यदेह ते हुं छुं’ शरीरनी क्रियाओ मारी छे’–
एम मानीने पर्यायबुद्धिमां लीन थयेला मूढ जीवो परसमय छे, तेओ जैन नथी. ‘मानवधर्म’ ना नामे अज्ञानीओ
शरीर साथेनी एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्वनुं ज पोषण करे छे. ज्ञानीओ तो एम कहे छे के हे भाई! मनुष्यपर्यायथी
आत्मानुं भेदज्ञान करवुं–एटले के मनुष्यपर्याय ते हुं नहि पण देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा ते हुं–एवुं भान
करवुं ते तारी पहेली फरज छे. अने ए ज प्रथम धर्म छे.
(–अर्थात् ते असमानजातीय द्रव्यपर्याय प्रत्ये ज जोरवाळा छे,) तेओ–जेमने निरर्गळ एकांतद्रष्टि ऊछळे छे–एवा
‘आ हुं मनुष्य ज छुं, मारुं ज आ मनुष्यशरीर छे’ एम अहंकार–ममकार वडे ठगाता थका,
अविचलितचेतनाविलासमात्र आत्मव्यवहारथी च्युत थईने, जेमां समस्त क्रियाकलापने छातीसरसो भेटवामां आवे
छे एवा मनुष्यव्यवहारनो आश्रय करीने रागी अने द्वेषी थता थका परद्रव्यरूप कर्म साथे संगतपणाने लीधे खरेखर
परसमय थाय छे.”
होवाने लीधे पर्यायमात्र प्रत्येनुं बळ दूर करीने आत्माना स्वभावमां ज स्थिति करे छे, तेओ–
ः प२ः