ते भेद अभूतार्थ छे; ए ज प्रमाणे अंतर्मुख थईने शुद्ध द्रव्यनो अनुभव कर्यो त्यां अशुद्धतानो
अनुभव न रह्यो तेथी शुद्ध द्रव्यमां अशुद्धता अभूतार्थ छे; द्रव्यना स्वभावमां अशुद्धतानो प्रवेश
नथी, माटे द्रव्यना स्वभावनी द्रष्टिथी शुद्ध आत्मानो अनुभव थाय छे.
मानीने त्यां ज रोकाई जाय छे ते जीव वस्तुस्वभावथी दूर छे. गुणभेदना विकल्पथी अखंड
वस्तुस्वभावमां पहोंचातुं नथी. भेदना अवलंबने रागनी उत्पत्ति थाय छे, ने रागथी लाभ माने
तो मिथ्यात्व थाय छे. अशुद्धता के भेदना आश्रये लाभ मानतां शुद्ध स्वभावरूप आखी वस्तुनो
अनादर थाय छे. जेनो आश्रय करतां सम्यग्दर्शनादिनो लाभ थाय छे एवा शुद्ध द्रव्यने अज्ञानी
जीव जाणतो नथी ने पर्यायनी हीनाधिकता जेटलो ज ते पोताने अनुभवे छे, एटले
पर्यायबुद्धिमां तेने अशुद्धता ज भासे छे पण आत्मानो शुद्ध स्वभाव तेने भासतो नथी. एवा
जीवोने आचार्य भगवान समजावे छे के अरे जीव! क्षणिक रागादि पर्याय जेटलो ज तुं नथी,
तारो भूतार्थस्वभाव परिपूर्ण सामर्थ्यनो पिंड छे. ते अशुद्ध थई गयो नथी, माटे ते भूतार्थ
स्वभावनी सन्मुख थईने तुं आत्माना शुद्ध–स्वभावनी प्रतीत कर. आवा पोताना शुद्ध
स्वभावनी निर्विकल्प प्रतीति अने अनुभव थया पछी पण धर्मीने साधक दशामां गुणभेदनो
विचार आवे छे, पर्यायनी हीनाधिकताना अनेक प्रकारोने जाणे छे पण भेदना आश्रयथी
लाभनी बुद्धि तेने कदी थती नथी, शुद्ध द्रव्यनी द्रष्टि छूटीने बीजा कोईनी मुख्यता तेने थती नथी.
आ रीते स्वभावनी द्रष्टि राखीने गुणभेदनो जे विचार आवे छे तेमां अस्थिरतानो राग छे, ते
फक्त चारित्रनो दोष छे, पण तेमां श्रद्धानो दोष जरापण नथी. आत्माना शुद्धस्वभावनी द्रष्टि करे
नहि ने एकला भेदना विचारमां ज रोकाईने लाभ माने तेने तो श्रद्धानो दोष छे, तेणे तो रागने
ज वस्तु मानी लीधी छे तेथी तेने मिथ्यात्व छे. चैतन्यना भूतार्थ स्वभावनुं अवलंबन ते एक
ज कल्याणनो मार्ग छे. भूतार्थ स्वभाव सिवाय गुणभेदना विचारथी लाभ माने तो ते पण
संसारनुं ज कारण (–मिथ्यात्व) छे, तो पछी बीजा स्थूळ रागथी के बाह्यमां शरीर वगेरे जडनी
क्रियाथी जे लाभ माने तेनी वात तो क्यां रही? जुओ, भेदनो विकल्प आवे ते कांई मिथ्यात्व
नथी पण ते विकल्पना अवलंबनथी धर्म मानवो ते मिथ्यात्व छे. धर्मीजीव गुणभेदना विकल्पनो
कामी नथी, तेनी द्रष्टिमां तो शुद्ध अभेदस्वभाव एक ज भूतार्थ छे. ने भेद तथा अशुद्धता
अभूतार्थ छे; भूतार्थ द्रष्टिमां तो शुद्धआत्मा सदाय समीप वर्ते छे ने विकल्पो तेनी द्रष्टिमांथी दूर
थई गया छे. जे जीव अशुद्धता अने भेदना विचारमां ज अटकयो छे ने एकाकार
ज्ञायकस्वभावमां वळतो नथी तेने रागनी समीपता छे ने शुद्धआत्मा दूर छे. भेदद्रष्टिमां
भगवान आत्मा समीप नथी पण दूर छे, अने अभेदद्रष्टिथी देखे तो अंतरमां चैतन्यभगवान
हाजराहजूर समीप ज छे. अभेदस्वभावनी समीपतामां रागनी उत्पत्ति थती नथी पण
शुद्धतानी ज उत्पत्ति थाय छे; अने अभेदस्वभावनी समीपता छोडीने जो भेदनी के रागनी
मुख्यता थाय तो त्यां मिथ्यात्व थाय छे अने तेने शुद्धआत्मा दूर छे. विकल्पना अवलंबन वडे
शुद्धआत्माना अनुभव सुधी पहोंची