Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 21

background image
: महा: २०१० : आत्मधर्म–१२४ : ७५ :
छूटयुं नथी.
अज्ञानी लोको अंतरनी द्रष्टिने ओळख्या वगर बहारथी वैराग्यनुं माप काढे छे; बहारमां
कांईक त्याग के मंदकषाय देखे त्यां तेने वैरागी मानी ल्ये छे; पण ते वैराग्यनुं साचुं स्वरूप नथी.
शुभराग करीने ‘हुं कंईक धर्म करुं छुं’ –एम जे माने छे तेणे तो रागने ज आत्मा मान्यो छे एटले
तेने तो अनंत रागनो अभिप्राय पड्यो छे. हजी राग शुं अने आत्मस्वभाव शुं तेना भेदनी पण
जेने खबर नथी, ने रागने ज पोतानुं स्वरूप माने छे तेने साचा वैराग्यनी गंध पण नथी.
चैतन्यस्वभावनुं अवलंबन थतां परनुं अवलंबन छूटी जाय तेनुं नाम वैराग्य छे. ज्ञान अंतरमां
वळीने स्वभावमां रत थयुं त्यां परभावोथी विरक्त थयुं–एनुं नाम वैराग्य छे. ज्ञान स्वभाव–
सन्मुख थयुं ते अस्ति, अने त्यां परभावोथी छूटयुं ते नास्ति, –ए रीते सम्यग्ज्ञानपूर्वक ज साचो
वैराग्य होय छे. समकीतिने वैराग्यनुं परिणमन सदाय वर्त्या ज करे छे.
हिंसा, जूठूं, चोरी, ब्रह्मचर्य ईत्यादि पापराग तो बंधनुं कारण छे, तेमज दया, सत्य, दान
वगेरेनो पुण्यराग ते पण बंधनुं कारण छे. कोई पण रागभाव ते बंधनुं ज कारण छे, तेने बदले
शुभरागने जे मोक्षनुं साधन माने छे ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे, ते जीव शुभराग वखते पण नवा
कर्मोथी बंधाय ज छे पण छूटतो नथी. जुओ, आमां ए वात पण आवी जाय छे के जीवने पोतानो
शुभ–अशुभ रागभाव ज बंधनुं कारण छे, परंतु बहारनी जडनी क्रियाने लीधे जीवने बंधन थतुं
नथी केमके ते तो परवस्तु छे. जे जीव परवस्तुने बंधनुं के मोक्षनुं कारण माने तेने परवस्तु उपर
राग–द्वेषनो अभिप्राय छे, अने ते राग–द्वेषना अभिप्रायने लीधे ते जीव बंधाय ज छे. बहारनी
जडनी क्रिया मारी नथी तेमज ते मने बंधनुं के मोक्षनुं कारण नथी, अने शुभ के अशुभ परिणाम
थाय ते मारा ज्ञानस्वभावथी भिन्न छे; हुं शरीरनी क्रियाथी तेमज शुभ–अशुभ परिणामथी जुदो
एक ज्ञायक–स्वभावरूप छुं, मारा अवलंबने ज मारी मुक्ति छे–आम जाणीने जे स्वसन्मुख
परिणम्यो ते ज साचो वैरागी छे ने ते जीव अवश्य कर्मथी छूटीने मुक्ति पामे छे.
जुओ, आ जिनेन्द्र भगवाननो उपदेश! तारा स्वभावना अवलंबनरूप वैराग्यभाव ते
मोक्षनुं कारण छे, ने परना अवलंबनरूप रागभाव ते बंधनुं कारण छे. आ सिवाय बहारनी
क्रियाने लीधे आत्माने मुक्ति के बंधन थाय–एम भगवाननो उपदेश नथी. संसारना वेपार–धंधानो
के हिंसा–जूठनो अशुभ भाव छोडीने अहिंसा, सत्य वगेरे शुभभाव करे अने एम माने के ‘आ
मने मोक्षनुं साधन छे’ –तो ते जीव वैरागी नथी पण रागी ज छे. अने ते छूटतो नथी पण बंधाय
ज छे. सम्यग्द्रष्टिने अमुक शुभ–अशुभ राग थतो होवा छतां अंतरनी द्रष्टिमां ते वैरागी ज छे ने
अंतरना ज्ञान–वैराग्यना बळने लीधे ते छूटतो ज जाय छे. रागी अने वैरागीनुं माप करवानी रीत
लोकोए मानी छे तेना करतां जुदी छे. राग उपर जेनी द्रष्टि पडी छे ते जीव रागी ज छे, ने
रागरहित चैतन्यस्वभाव उपर जेनी द्रष्टि पडी छे ते जीव वैरागी छे.
सर्वज्ञ वीतरागदेवनी आज्ञा छे के हे जीव! रागथी भिन्न तारा चैतन्यस्वभावने ओळखीने
तेनी प्रीति कर, ने रागनी प्रीति छोड. तारा चैतन्यस्वभावना अवलंबने ज तारी मुक्तिनो उपाय
छे. शरीर–मन–वाणीनी क्रिया हुं करुं छुं ने ते क्रिया मने मोक्षनुं साधन थाय छे–एम माननार प्राणी
तो महा मूढ छे, तेने साचो वैराग्य कदी होतो नथी. अने व्यवहाररत्नत्रय वगेरेमां शुभरागना
परिणाम थाय तेने मोक्षनुं