Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ८० : आत्मधर्म–१२४ : महा : २०१० :
मार्गनी शरूआत कोई रीते थती नथी, एटले के लेशमात्र धर्म थतो नथी.
अहो! अंतरमां चैतन्यस्वभावनुं महा शरण छे तेने तो जीवो ओळखता नथी, अने पुण्यमां
मूर्छाई गया छे. पूर्वे अनंतवार पुण्य कर्या पण ते जीवने शरणभूत थया नथी, ते पुण्यथी किंचित्
पण मोक्षमार्ग के हित थयुं नथी. हे भाई! हवे तारे तारा आत्मानो मोक्ष करवो होय, संसारनी
चार गतिना भ्रमणथी छूटवुं होय तो अंतरमां ज्ञाननुं शरण ले. अंतर्मुख एकाग्र थईने परिणमतुं
ज्ञान ज मोक्षनुं कारण छे. अंतरस्वभावमां एकाग्र थतां आत्माना परमानंदनो जे भोगवटो थाय
छे तेना स्वादने ज्ञानी ज जाणे छे, अज्ञानी ते ज्ञानना आनंदनो स्वाद नथी जाणतो.
अहो! जुओ तो खरा आ संत–मुनिओना अंतर अनुभवमांथी ऊठता भणकार! क्षणे क्षणे
निर्विकल्प आनंदना अनुभवमां झूलतां झूलतां वच्चे आ वाणी नीकळी गई. तेमां आचार्यदेव कहे
छे के अहो! अमने अमारा स्वभावनुं ज शरण छे, पुण्यनो विकल्प ऊठे तेने पण अमे शरणरूप
मानता नथी, ते विकल्पने पण तोडीने ज्ञानने अंतरमां एकाग्र करतां आत्माना परम आनंदनो
अनुभव थाय छे, ते ज अमने शरण छे. बीजा समकीति जीवोने पण आ ज शरण छे. ज्ञानमात्र
भाव सिवायना जेटला परभावो छे ते बधाय बंधनुं कारण छे, तो ते जीवने शरणरूप क्यांथी
थाय? कोई पण जीवने पोताना ज्ञानानंद स्वभाव सिवाय बीजा कोईनुं शरण नथी, बीजा कोईना
अवलंबने मोक्षमार्ग कदी थतो नथी. भगवान आत्मानी मोक्षदशारूपी मेडी उपर चडवा माटे सीडी
कई? –के आत्मस्वभावना अवलंबने जे सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान ने रमणतारूपी वीतरागीदशा प्रगटी ते
ज मोक्षनी सीडी छे, आ सिवाय पुण्य ते कांई मोक्षनी सीडी नथी, पुण्य ते धर्मनुं पगथियुं नथी,
पुण्य करतां करतां क्यारेक तेनाथी मोक्षमार्ग पमाई जशे एम कदी बनतुं नथी. पुण्य पोते बंधनुं
कारण छे, ते कदी पण मोक्षनुं साधन थतुं नथी.
अंतरमां पोताना स्वभावमां लीन थईने ज्ञान परिणमे ते ज मोक्षनुं कारण छे.
सम्यग्दर्शननी रीत पण आ ज छे, सम्यग्ज्ञाननी रीत पण आ ज छे ने सम्यक्चारित्रनी रीत पण
आ ज छे. ज्ञान बहारमां वळीने पुण्य–पापमां एकाग्रतारूपे परिणमे ते मिथ्यादर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं
कारण छे; तथा जे ज्ञान अंतरमां वळीने चिदानंद स्वभावमां एकाग्र थईने परिणमे ते सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्रनुं कारण छे, अने ते ज मुनिओने शरण छे. कोई बहारना निमित्तोने लीधे के
पंचमहाव्रत वगेरेना शुभरागने लीधे मुनिदशा टकती नथी, पण अंतरमां पुण्य–पाप रहित थईने
चैतन्यस्वभावमां जे ज्ञान लीन थयुं तेना आधारे ज मुनिदशा टके छे, तेथी ते ज्ञान ज मुनिओने
शरण छे. अहो! मारा चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थईने जे ज्ञान परिणमे ते ज मने शरणरूप छे, ए
सिवाय कोई पर चीज के पुण्य पण खरेखर मने शरणरूप नथी आम जाणीने चैतन्यस्वभावना
अवलंबने परिणमवुं ते ज मोक्षनो पंथ छे.
(–आसो वद चोथना दिवसे परम पूज्य सद्गुरुदेवना प्रवचनमांथी.)